लखनऊ: बसपा सरकार में लखनऊ और नोएडा में हुए 4,200 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले के आरोपी व पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा से शुक्रवार को विजलेंस ने दफ्तर में बुलाकर 3 घंटे पूछताछ की. पूछताछ में बाबू सिंह कुशवाहा ने अफसरों को ही पूरे मामले में दोषी ठहराया. उन्होंने तत्कालीन निदेशक खनिकर्म पर गंभीर दोष मढ़े. 50 सवालों के जवाब में बाबू सिंह ने सिर्फ 30 सवालों के जवाब दिये. बाकी पर वह चुप्पी साधे रहे.
पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को 3 अगस्त को नोटिस देकर पूछताछ के लिए विजलेंस ने बुलाया था. मगर, बीमारी का हवाला देकर बाबू सिंह तय तारीख पर विजलेंस के समक्ष पेश नहीं हुए. यह दूसरा मौका था जब वह तय तारीख पर विजिलेंस के सामने पेश नहीं हुए. बाबू सिंह ने दोनों ही बार मेडिकल सर्टिफिकेट भेजवाया दिया था, लेकिन तीसरी बार शुक्रवार को वह पेश हुए और अपना पक्ष रखा. दोपहर वह विजिलेंस मुख्यालय पहुंचे. जहां उनसे शाम 4 बजे तक पूछताछ की गई और उनका बयान दर्ज किया गया. जल्द लोक निर्माण विभाग, खनन विभाग व राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन अधिकारियों समेत 40 लोगों से पूछताछ की तैयारी है.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी से भी हो चुकी है पूछताछ
मायावती की बसपा सरकार में हुए 4,200 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले में विजलेंस ने बीते 19 जुलाई को पूर्व PWD मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी से पूछताछ कर बयान दर्ज किए थे. नसीमुद्दीन के जवाबों के आधार पर विजलेंस ने पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को नोटिस देकर पूछताछ के लिए बुलाया था. नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने शालीनता से विजिलेंस के सारे सवालों का जवाब दिया था. करीब 6 घंटे चली पूछताछ में नसीमुद्दीन सिद्दीकी कई बार बिजनेस के अफसरों के सवालों के सामने पसीने पसीने हो गए थे.
विजलेंस सूत्रों के मुताबिक, बाबू सिंह कुशवाहा से पूछताछ के लिए स्मारक घोटाले की विवेचना कर रहे अधिकारियों ने 50 से अधिक सवालों की लंबी फेहरिस्त तैयार की थी. विजिलेंस के अफसरों ने 9 जुलाई 2007 को मीरजापुर सैंड स्टोन के गुलाबी पत्थरों को स्मारकों में लगाने के लिए निर्देश के बारे में पूछा. बताया जाता है कि तत्कालीन खनन मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के निर्देश पर ही गुलाबी पत्रों को स्मारकों में लगाए गए थे. अफसरों ने इनके तय रेट के बारे में पूछताछ की. विजलेंस ने मिर्जापुर सैंड स्टोन के ब्लॉक खरीदने के लिए कंसोटियम बनाकर 150 रुपये प्रति घन फुट रेट तय किया. इसमें लोडिंग के लिए 20 रुपये प्रति घन फुट और जोड़कर सप्लाई के रेट तय कर दिए थे. इन दरों के अलावा रॉयल्टी और ट्रेड टैक्स का अतिरिक्त भुगतान किया गया था. जबकि उस समय इन पत्थरों का बाजार भाव 50 से 80 रुपए घन फुट से ज्यादा नहीं था. फिर तिगुने दामों में इनकी खरीदारी क्यूं की गई. ऐसे तमाम सवालों के जवाब पूर्व मंत्री बाबू सिंह से पूछे गए. कई सवालों के जवाब बाबू सिंह कुशवाहा नहीं दे सके. वह पूछताछ के दौरान कई बार नर्वस हो गए.
अब तक 23 हो चुके गिरफ्तार
बता दें कि, वर्ष 2013 से स्मारक घोटाले की जांच चल रही है और अब तक 23 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है. वहीं, 6 के खिलाफ अक्तूबर, 2020 में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है. विजिलेंस के साथ प्रवर्तन निदेशालय भी मामले में जांच कर रहा है. प्रवर्तन निदेशालय ने स्मारक घोटाले में प्रीवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट का मामला भी दर्ज किया था और लखनऊ में इंजीनियरों और ठेकेदारों की संपत्तियों को कुर्क किया था. बीते जुलाई माह में जेल में बंद वीके मुद्गल, एसके त्यागी और कामेश्वर शर्मा को कोर्ट ने जमानत दे दी थी. जबकि, कृष्ण कुमार की जेल में रहते हुए ही बीमारी से मौत हो गई थी. बताया जा रहा कि इतने बड़े घोटाले के कर्ताधर्ता इन पूर्व अफसरों के खिलाफ अभियोजन ने कोई ठोस साक्ष्य ही पेश नहीं किए. जिसकी वजह से इन्हें बेल मिल गई. हालांकि, जांच अफसरों का कहना है कि सभी आरोपियों को मेडिकल ग्राउंड पर जमानत मिली है.
लोकायुक्त जांच में हुआ था घोटाले का खुलासा
लखनऊ और नोएडा में स्मारकों के निर्माण में 1,400 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. इसकी शुरुआती जांच तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने की थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट 20 मई 2013 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपी थी. जिसमें उन्होंने पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी व बाबू सिंह कुशवाहा समेत 199 लोगों को जिम्मेदार ठहराया था. हालांकि, अखिलेश सरकार ने दोनों ही संस्थाओं को जांच न देकर विजिलेंस को जांच सौंप दी. विजिलेंस की जांच इतनी धीमी गति से चलती रही कि चार वर्षों में इसमें कोई प्रगति नहीं हुई. इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के दखल के बाद विजिलेंस ने जांच पूरी की और अभियोजन की स्वीकृति के लिए प्रकरण शासन को भेजा था, लेकिन कार्रवाई के नाम पर विजलेंस ने जांच ठंडे बस्ते में डाल दिया.
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