वाराणसी: सनातन धर्म में अलग-अलग तिथि अलग-अलग महत्व की होती है और जब अलग मास में पड़ने वाली तिथियां आती है तो इनका आती है तो इनका व्रत एवं पूजन जीवन के तमाम कष्टों से मुक्ति और मनोवांछित फल पाने के लिए किया जाता है. इनमें भी एकादशी अलग-अलग रूप में मनाई जाती है. श्री हरि विष्णु के आराधना के रूप में एकादशी का व्रत अलग-अलग रूप में किया जाता है और आज 26 अप्रैल यानी मंगलवार को ऐसी ही एक अलग एकादशी की तिथि है, जिसे वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है.
ज्योतिषाचार्य कर्मकांडी एवं श्री काशी विश्वनाथ न्यास परिषद के सदस्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि एकादशी व्रत करने से भगवान श्रीहरि अत्यंत प्रसन्न होते हैं. इसलिए यह व्रत सभी को चाहिए. एकादशी व्रत करके भगवान विष्णु का कृपा पात्र अवश्य बनते हैं. व्रत, उपवास, नियम तथा शारीरिक तप के द्वारा सभी वर्ण के मनुष्य पाप मुक्त होकर पुण्य प्रभाव से उत्तम गति प्राप्त करते हैं.
पंडित प्रसाद दीक्षित का कहना है कि वैशाख मास की कृष्ण पक्ष तिथि को पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि को सूर्य मंडल द्वारा 11 कलाओं का प्रभाव जीव पर पड़ता है. चंद्रमा का प्रभाव शरीर मन सभी पर रहने से इस स्थिति में शरीर की स्वास्थ्य और मन की चंचलता स्वभाविक रूप से बढ़ सकती है. इसी कारण उपवास द्वारा शरीर को संभालना और इष्टपूजन द्वारा मन को संभालना एकादशी व्रत विधान का मुख्य रहस्य है. विष्णु पूजा पारायण होकर शुक्ल तथा कृष्ण दोनों पक्षों की एकादशी में उपवास करना चाहिए.