लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 10 राज्यसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में एक दिलचस्प मोड़ आ गया है. नौ सीटों पर जीत सुनिश्चित करने की क्षमता रखने वाली भारतीय जनता पार्टी ने सुरक्षात्मक रास्ता अख्तियार करते हुए केवल आठ सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे हैं. एक सीट जीतने के लिए आवश्यक विधायकों की संख्या से काफी दूर बहुजन समाज पार्टी ने भी एक उम्मीदवार राम जी गौतम का नामांकन करा दिया है. इस घटनाक्रम को सियासी गलियारे में भाजपा और बसपा के बीच बढ़ रही मिठास के रूप में देखा जा रहा है.
राज्यसभा की 10 सीटों के लिए 11 उम्मीदवार
नामांकन के आखिरी दिन 27 अक्टूबर को भारतीय जनता पार्टी से अरुण सिंह, हरदीप सिंह पुरी, हरद्वार दुबे, बीएल वर्मा, बृजलाल, नीरज शेखर, गीता शाक्य और सीमा द्विवेदी ने नामांकन किया है. निर्दल प्रत्याशी के रूप में प्रकाश बजाज ने नामांकन किया है. इससे पहले समाजवादी पार्टी से रामगोपाल यादव और बहुजन समाज पार्टी से राम जी गौतम का नामांकन हुआ है. कुल मिलाकर 10 सीटों के लिए 11 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. 28 अक्टूबर को स्क्रूटनी होगी और दो नवम्बर को नाम वापसी की अंतिम तिथि है.
प्रत्याशी कम नहीं हुए तो होगा मतदान
यदि इनमें से किसी प्रत्याशी का नामांकन नाम वापस या अन्य कारणों से खारिज नहीं हुआ, तो मतदान होना तय है. ऐसे में निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश बजाज और बसपा के रामजी गौतम को जीत हासिल करने के लिए विधायकों की संख्या जुटा पाना बेहद जटिल होगा. बहुजन समाज पार्टी के पास केवल 18 विधायक हैं. जीत के लिए कम से कम 36 विधायकों की आवश्यकता होगी. संपूर्ण विपक्ष के एक होने के बाद भी बसपा की जीत होती नहीं दिख रही थी, लेकिन भाजपा के प्रत्याशी नहीं उतारने से बसपा की राह आसान होती दिख रही है.
आठ उम्मीदवार घोषित करने के पीछे भाजपा की दलील
भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि उसने संख्या बल के आधार पर आठ प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो वाजपेयी ने कहा कि भाजपा जोड़तोड़ की राजनीति नहीं करती. विधायकों की संख्या के आधार पर हम आठ सीटें जीत सकते हैं. इसीलिए केवल इतने ही प्रत्याशी उतारे हैं. पार्टी का दावा जितना सच है, उतना ही यह भी सच है कि भाजपा के इस कदम से बहुजन समाज पार्टी को पूरा बल मिला है और बसपा उम्मीदवार राम जी गौतम के राज्यसभा जाने की राह आसान हुई है. भाजपा के इस कदम को बसपा के साथ उसकी बढ़ती नजदीकियों के रूप में देखा जा रहा है.
बसपा के भविष्य पर पड़ेगा असर
बहुजन समाज पार्टी निरंतर अपना जनाधार खोती जा रही है. लगता है कि चुनाव दर चुनाव पार्टी की पराजय ने मायावती को भाजपा से हाथ मिलाने के लिए मजबूर कर दिया है. घोषित तौर पर भले ही दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हुआ है, लेकिन इसे देखा इसी रूप में जा रहा है. बहुजन समाज पार्टी भारतीय जनता पार्टी संजीवनी रूपी सहयोग लेकर अपना अस्तित्व बचाना चाह रही हैं. लेकिन जानकार इस संजीवनी को बसपा के लिए जीवनदायिनी नहीं, बल्कि नुकसानदायक मान रहे हैं.
भाजपा साध रही एक तीर से कई निशाने
भारतीय जनता पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. पार्टी लोगों के बीच जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं करने का संदेश देना चाहती है. इसके साथ ही मायावती को पर्दे के पीछे से समर्थन देकर बिहार में हो रहे चुनाव में बसपा का मूक समर्थन भी हासिल करना चाह रही है. बिहार चुनाव के साथ-साथ भाजपा के लिए मध्य प्रदेश का उपचुनाव भी "नाक" का सवाल बन गया है.
भाजपाई संजीवनी की आस में सियासी दम तोड़ रही बसपा !
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में सरगर्मी काफी बढ़ गई है. बीजेपी ने केवल आठ सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे हैं. एक सीट जीतने के लिए बसपा ने भी एक उम्मीदवार का नामांकन करा दिया है. इस घटनाक्रम को राजनैतिक जानकार एक अलग तरीके से देख रहे हैं.
शिवराज सरकार को बचाने के लिए भाजपा की बढ़त जरूरी
शिवराज सरकार को बचाए रखने के लिए उपचुनाव में भाजपा की बढ़त बेहद जरूरी है. ऐसे में यदि बहुजन समाज पार्टी पर्दे के पीछे से ही सही, लेकिन मध्य प्रदेश के चुनाव में यदि भाजपा को मदद करती है, तो भाजपा की सियासी सेहत के लिए उसकी राज्यसभा चुनाव में यह चाल अच्छी साबित होगी. भाजपा के साथ नजदीकी बढ़ने की बात स्थापित होने से बहुजन समाज पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा. माना जा रहा है कि दलित के अलावा बसपा के साथ जुड़े मुस्लिम मतदाता उससे दूरी बनाएंगे.