लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) के आदेश के बावजूद आवास विभाग ने नामांतरण शुल्क को घटाकर अधिकतम ₹10000 कर दिया है. सगे संबंधियों के बीच नामांतरण होने की दशा में केवल ₹500 शुल्क लिया जा रहा है, लेकिन नगर विकास विभाग ने शुल्क नहीं घटाया है. नगर विकास विभाग एक प्रतिशत शुल्क पर ही अड़ा हुआ है. सरकार का आदेश होने के बावजूद लोगों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है.
उत्तर प्रदेश के करीब 17 नगर निगम में हर साल नामांतरण की संख्या 30 हजार के करीब है. जिनमें से अकेले लखनऊ में ही 10 हजार के करीब नामांतरण की पत्रावली की जाती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के मुताबिक, आवास विभाग ने प्राधिकरण के लिए जो शासनादेश किया है उसमें सगे संबंधियों के बीच होने वाले म्यूटेशन पर केवल ₹500 का शुल्क लग रहा है और बाकी सभी तरह के नामांतरण पर अधिकतम ₹10000 वसूले जा रहे हैं. इसी तरह का नामांतरण नगर विकास विभाग में भी होता है, जोकि नगरीय क्षेत्र में स्थित संपत्तियों को लेकर किया जाता है, लेकिन नगर विकास विभाग से ऐसा कोई शासनादेश नहीं किया गया है. इस दशा में सगे संबंधियों से तो भले ही ₹500 शुल्क लिया जा रहा हो, लेकिन इसके अतिरिक्त होने वाले नामांतरण पर एक प्रतिशत शुल्क की वसूली हो रही है. उदाहरण के तौर पर ₹3 लाख की प्रॉपर्टी पर करीब ₹30 हजार की शुल्क वसूली की जाती है, जबकि मुख्यमंत्री के आदेश के अनुसार यह वसूली केवल ₹10000 हो. इस वजह से लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. जैसे-जैसे संपत्ति महंगी होती है वैसे-वैसे ही है शुल्क बढ़ता जाता है. सरकार की मंशा यह है कि रजिस्ट्री के दौरान म्यूटेशन और अन्य शुल्क के तौर पर स्टांप ड्यूटी दे चुका होता है. ऐसे में उसे दोबारा अधिक शुल्क वसूली का कोई मतलब नहीं है.
लखनऊ नगर निगम की बात की जाए तो यहां म्यूटेशन को लेकर काफ़ी कश्मकश वाली स्थिति है. लखनऊ विकास प्राधिकरण जहां ₹10000 अधिकतम पर नामांतरण कर रहा है, वहीं इसी शहर की दूसरी एजेंसी 1 प्रतिशत पर अड़ी हुई है. हजारों लोग जब अपना आवेदन लेकर नगर निगम पहुंच रहे हैं तो उनसे भारी-भरकम शुल्क वसूला जा रहा है.