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Indecency With Journalists : विधायकों के हंगामे में दब गया पत्रकारों से अभद्रता का मुद्दा - UP bureau chief Alok Tripathi

विधानसभा सत्र के पहले दिन जहां विपक्ष ने सदन (Indecency With Journalists) नहीं चलने दिया. वहीं कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों से मार्शल ने जो किया वह अप्रत्याशित और अभूतपूर्व था. पत्रकारों का अपमान करने के साथ उनके साथ हाथापाई भी की गई. यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Feb 20, 2023, 10:46 PM IST

लखनऊ :विधानसभा के बजट सत्र का पहला दिन विपक्षी विधायकों के हंगामे और पत्रकारों से की गई अभद्रता का मुद्दा छाया रहा. विपक्षी दलों के विधायकों का विरोध कोई नई बात नहीं है. सरकार कोई भी हो, किसी भी दल की हो, यह परंपरा बन गई है, लेकिन सत्र शुरू होने से पहले ही विधान भवन में कवरेज करने गए पत्रकारों के साथ मार्शल ने जो किया वह अप्रत्याशित और अभूतपूर्व था. कवरेज कर रहे पत्रकारों को न सिर्फ अपमान का सामना करना पड़ा, धक्के खाने पड़े, बल्कि मार्शल की हाथापाई में कुछ लोगों को चोट भी आईं. इस प्रकरण में पत्रकारों की गलती हो अथवा न हो, लेकिन यह चिंता का विषय है कि आखिर लगातार पत्रकारों की गरिमा क्यों गिरती जा रही है.

विधायकों के हंगामे में दब गया पत्रकारों से अभद्रता का मुद्दा
विधायकों के हंगामे में दब गया पत्रकारों से अभद्रता का मुद्दा

सोमवार को सोशल मीडिया पर पत्रकारों से अपमान का मुद्दा खूब चर्चा में रहा. ‌इस घटना से ठीक एक दिन पहले हमीरपुर जिले के पत्रकार का ऑडियो वायरल होता है, जिसमें वह खबर न चलाने के लिए किसी व्यक्ति से पैसा की मांग कर रहा है. यह दोनों ही घटनाएं शर्मनाक हैं. पहली बात तो यही है कि पत्रकारों ने खुद ही अपनी गरिमा का ध्यान नहीं रखा. वाकई अराजक गतिविधियों में लिप्त हो गए और पत्रकारिता कलंकित होते रही. बेशक ऐसे भ्रष्ट पत्रकारों की संख्या बेहद कम है, बावजूद इसके 'एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है' की कहावत भी चरितार्थ होती है. एक, दो या चार लोगों के भ्रष्ट और पेशे से इतर आचरण ने पूरी पत्रकारिता को बदनाम कर दिया है. यही कारण है कि खबरों की विश्वसनीयता कम हुई है. इसका दूसरा पहलू भी है. कई बड़े मीडिया संस्थानों की नीतियां निष्पक्ष न होकर राजनीतिक दलों से प्रेरित होती हैं. इसका खामियाजा भुगतते हैं पत्रकार, क्योंकि हर बार पत्रकारों की निष्ठा और ईमानदारी पर सवाल उठाए जाते हैं, जबकि वह अपनी पेशेगत विवशताओं के कारण बाध्य होते हैं. वहीं राजनीतिक दलों में भी अब लोक लाज कम ही बचा है. वह खुलकर अपना एजेंडा चलाते हैं और पत्रकारों का दमन और अपमान करने से हिचकते नहीं. सोशल मीडिया के कारण पत्रकारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. यह भी एक कारण है कि अधिकारी और नेता अच्छे और बुरे पत्रकार में अंतर ही नहीं कर पाते.

विधायकों के हंगामे में दब गया पत्रकारों से अभद्रता का मुद्दा
विधायकों के हंगामे में दब गया पत्रकारों से अभद्रता का मुद्दा
लखनऊ विधान भवन में पत्रकारों के साथ हुई घटना के बाद एक दल ने विधानसभा अध्यक्ष से मुलाकात की और इस दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराई. विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना घटना की निंदा करते हुए प्रकरण की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है. प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी घटना की निंदा करते हुए दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है. हालांकि ऐसी जांचों और दावों का नतीजा सदा सिफर ही रहता है. बावजूद इसके पत्रकार और कर भी क्या सकते हैं.इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर आलोक राय कहते हैं कि यूट्यूब और वेब मीडिया के लिए प्रदेश सरकार को स्पष्ट नीति बनाना चाहिए. गांव- गिरांव में भी यूट्यूब और वेब साइट चलाने वाले तमाम वह युवा खुद को पत्रकार बताते हैं और थाने, तहसीलों और ब्लॉक भवनों में इनका जमावड़ा देखा जा सकता है. यही स्थिति जिला और राज्य मुख्यालयों की भी है. सरकार को नियम बनाकर इस भीड़ को बांधना होगा. इसके साथ ही पत्रकार संगठनों और वरिष्ठ पत्रकारों को भी यह देखना होगा कि वह किस प्रकार पत्रकारिता के गिरती साख को रोकने के लिए काम कर सकते हैं. फर्जी पत्रकारों अथवा पत्रकारिता के नाम पर गलत गतिविधियों में लिप्त लोगों के खिलाफ पहले पत्रकार संगठनों और वरिष्ठ पत्रकारों को ही लामबंद होना होगा. पहला सुधार तो अपने भीतर से ही होना चाहिए. इसके बाद ही दूसरों से अपेक्षा की जा सकती है.

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