लखनऊ :केंद्र सरकार राज्यों के सहयोग से तालाबों को पुनर्जीवित (Tikait Rai Talab) करने, उन्हें कब्जों से मुक्त कराने और उनका सुंदरीकरण कराने को लेकर 'अमृत सरोवर योजना' चला रही है. पर्यावरण और भूगर्भ की दृष्टि से यह पहल बहुत ही सराहनीय है. यह योजना जल संचयन और संरक्षण को बढ़ावा तो देती ही है, साथ ही लोगों के सामने रोजगार के अवसर भी पैदा करती है. इस योजना के क्रियान्वयन में उत्तर प्रदेश देश में पहले नंबर पर है. बावजूद इसके राजधानी लखनऊ के दो ऐतिहासिक तालाबों की ओर किसी का ध्यान नहीं गया है, हालांकि अतीत में इन दोनों तालाबों (Bakshi Ka Talab) के सुंदरीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं. इसके बावजूद इन विशाल तालाबों की तलहटी में पानी की एक बूंद भी दिखाई नहीं देती. प्रदेश के जिम्मेदार अधिकारी भी इससे बेखबर हैं.
प्रदेश में जैसे-जैसे समृद्धि आ रही है, लोगों के जीवन स्तर में भी सुधार हो रहा है. गांवों में भी विकास के खूब काम हो रहे हैं. अब गांवों में भी कच्चे मकान विरले ही दिखाई देते हैं. ज्यादातर गांवों में पक्के भवन, बिजली और पेयजल की अच्छी व्यवस्था है. हालांकि इस व्यवस्था का एक नुकसान भी हुआ है. पहले गांवों में जब कच्चे मकान बनते थे, तब तालाबों से मिट्टी निकाल कर उनका निर्माण और मरम्मत का काम होता था. पक्के मकानों के निर्माण के साथ धीरे-धीरे तालाबों से मिट्टी निकलनी बंद हुई और वह पटने लगे. स्थानीय लोग अतिक्रमण के लिए इनमें कूड़ा-करकट भी डालने लगे. तालाबों के आसपास की भूमि पर भी खूब कब्जे हुए, जिसका दुष्प्रभाव यह रहा कि प्राकृतिक बहाव रुका और बारिश के मौसम में भी तमाम तालाब सूखे ही रहने लगे. यही हाल राजधानी के टिकैत राय तालाब और बख्शी का तालाब का भी है. यह तालाब में बारिश के दिनों में भर नहीं पाते, क्योंकि आसपास बहुत अतिक्रमण है और प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो चुका है. यदि राज्य सरकार इन तालाबों का चयन अमृत सरोवर योजना के तहत करती, तो संभव है कि इनमें कुछ काम हो पाता. दुखद यह है कि इस ओर सरकारी तंत्र का कोई ध्यान नहीं है और कभी पानी से सराबोर रहने वाले यह ऐतिहासिक तालाब सूखे पड़े हैं.