लखनऊ : उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने कई साल पहले यह फैसला लिया था कि बिजली कर्मचारियों के घरों पर भी अनिवार्य रूप से मीटर लगाए जाएं. इसके लिए आयोग ने 31 मार्च 2023 की अवधि भी तय कर दी थी. कहा था कि इस अवधि तक सभी कर्मचारियों और पेंशनरों के यहां मीटर लगाकर आम उपभोक्ताओं की तरह बिलिंग शुरू कर दी जाए. उन्हें अब रियायती बिजली नहीं मिले, लेकिन आयोग के आदेश के बाबवजूद अब तक एक भी कर्मचारी के घर पर बिजली विभाग ने मीटर लगाने की जहमत नहीं उठाई है. गौर करने वाली बात ये भी है कि जब अधिकारियों से अब तक मीटर न लगाए जाने को लेकर सवाल किया जाए तो उधर से कोई जवाब भी नहीं आता है, बस टालमटोल शुरू हो जाती है.
एक लाख के करीब कर्मचारी और पेंशनर्स उठा रहे फायदा :लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के बिजलीकर्मियों और पेंशनरों को रियायती दर पर बिजली लेने की सुविधा विभाग की तरफ से दी गई थी. प्रदेश में ऐसे कर्मचारियों और पेंशनरों की संख्या करीब एक लाख है. पहले अलग-अलग स्तर के कर्मचारियों और पेंशनर्स के लिए 160 रुपये से 600 रुपये हर महीने फिक्स चार्ज लिया जाता था. इस तरह की सुविधा नियामक आयोग ने समाप्त कर दी थी. आयोग ने रियायती बिजली का प्रयोग कर रहे विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों के लिए घरेलू उपभोक्ताओं की तरह दर लागू करने का फैसला पिछले साल लिया था. आयोग की तरफ से 2022-23 के टैरिफ ऑर्डर में विभागीय कर्मचारियों को घरेलू उपभोक्ता की श्रेणी में रखा गया था. हालांकि आयोग की तरफ से विभागीय कर्मचारियों की वर्ष 2016-17 में ही अलग श्रेणी समाप्त कर दी गई थी, लेकिन छह साल बाद भी उनके यहां न मीटर लगा और न ही घरेलू उपभोक्ताओं की तरह पर वसूली ही हो रही है. रियायती दर पर बिजली बिल के एवज में हर साल 450 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं जिसका घाटा पाॅवर काॅरपोरेशन को उठाना पड़ रहा है.
31 मार्च तक की थी आखिरी अवधि :2017 के आदेश के बाद जब नियामक आयोग को लगा कि बिजली विभाग इसका पालन नहीं कर रहा है तो आयोग ने फिर 2022 में इस फैसले पर मुहर लगाई थी. हरहाल में 31 मार्च 2023 तक सभी विभागीय कर्मचारियों और पेंशनरों के यहां मीटर लगाकर आम उपभोक्ताओं की तरह बिलिंग शुरू कर दी जाए. मीटर लगने तक रियायती बिजली की सुविधा का दुरुपयोग मिलने पर कार्रवाई की जाए, लेकिन हकीकत यही है कि वर्षों पहले के फैसले का असर विभाग पर नहीं हुआ है और अभी तक एक भी कर्मचारी के यहां मीटर नहीं लग पाया है. बस कागजों पर कर्मचारियों को घरेलू उपभोक्ता की श्रेणी में शामिल कर दिया गया है.