लखनऊ: राजधानी लखनऊ में करीब 3 महीने पहले 74 साल के रिटायर्ड बैंक अधिकारी की उनके घर में नृशंस हत्या कर दी जाती है. बुजुर्ग अपनी पत्नी के साथ घर पर अकेले रहते थे. यही नहीं राजधानी में ही पैदल टहल रही एक युवती की लुटेरे चेन खींच कर फरार हो जाते है. ये एक-दो घटना सिर्फ बानगी मात्र है, असल तश्वीर पूरे राज्य से हर रोज आ रही है. ऐसी ही घटनाओं को रोकने व बुजुर्गों व महिलाओं को सुरक्षा का भरोसा देने के लिए यूपी पुलिस ने 'सवेरा योजना', 'नमस्ते लखनऊ' समेत कई कार्य्रकम शुरू किए थे. जो अब गर्त में जा चुके है. नतीजन एक बार फिर बुजुर्ग व महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी है.
सुलखान सिंह ने शुरू की थी 'सवेरा योजना'
उत्तर प्रदेश के डीजीपी के रूप में सुलखान सिंह ने 22 अप्रैल 2017 को पद ग्रहण किया और 3 दिन बाद ही उन्होंने राज्य में 'सवेरा योजना' के तहत इलाके के बुजुर्गों और अकेले रहने वालों की थानेवार सूची बनाने व बीट के सिपाही उनका हालचाल लेते रहने का निर्देश दिया था. मकसद था उन बुजुर्गों से उनके घर जाकर समस्याओं को पुलिस द्वारा सुनना जो अकेले रहते है. यही नहीं 26 अक्टूबर 2019 को सीएम योगी आदित्यनाथ ने सवेरा योजना को पुलिस इमरजेंसी मैनेजमेंट डायल 112 के तहत भी जोड़ दिया. इसमें बुजुर्गों से पंजीकरण करने के लिए कहा गया था जिससे उनसे समय-समय पर डायल 112 के द्वारा उनका हाल चाल किया जा सके, लेकिन समय बदला और सुलखान सिंह रिटायर हो गए और उसके बाद कई डीजीपी आए, लेकिन इस योजना को प्रभावी रूप से लागू नहीं करा सके. वहीं, जिन थाना स्तर के अधिकारियों की जिम्मेदारी थी बुजुर्गों का हालचाल लेने की वो उनके घर झांकने भी नहीं गए.
ठंडे बस्ते में चला गया 'नमस्ते लखनऊ'
1 मार्च 2020 को ढोल नगाड़े के साथ लखनऊ में पुलिस का 'नमस्ते लखनऊ' कार्यक्रम शुरू किया गया था. इसकी शुरुवात लखनऊ के पहले पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने की थी. इस योजना का उद्देश्य था कि जो बुजुर्ग व महिलाएं सुबह शाम पार्कों में या रास्तों में टहलती थीं. उनसे नमस्ते कर उनका हालचाल पूछना व समस्याओं जानना था. शुरुवाती दौर में घने कोहरे में सुबह ही हर चौराहे व पार्कों में पुलिस पहुंच कर बैनर पोस्टर लगा कर तैयार रहती थी और महिलाओं व बुजुर्गों से उनका हाल चाल लेती थी व उनकी समस्याओं को सुनती थी, लेकिन जैसे-जैसे ठंड गई. यह योजना भी ठंडे बस्ते में चली गई.
क्या था इन योजनाओं का फायदा?
अगरबात 'सवेरा योजना' की हो या फिर नमस्ते लखनऊ की, दोनों ये कार्यक्रम बुजुर्गों व महिलाओं को ध्यान में रखते हुए शुरू किए गए थे. इन कार्यक्रमों की शुरुआत होने से महिलाओं व बुजुर्गों को पुलिस की मौजूदगी का एहसास होता था. बुजुर्ग जहां उन समस्याओं से पुलिस को रु-ब-रु कराती थी जो रोजना वो झेलते थे. वहीं महिलाएं भी पुलिस के आस पास होने से खुद को सुरक्षित महसूस करती थीं. लिहाज राजधानी में तेजी से चेन स्नेचिंग की घटनाओं में कमी आई थी. इनका शिकार खासतौर वही महिलाएं होती थी जो टहलने निकलती थी.
क्या कहते है रिटायर्ड अधिकारी?
लंबे समय तक यूपी पुलिस की सेवा करते हुए डीजीपी के पद से रिटायर होने वाले ए के जैन कहते है कि 'योजनाओं को जो लागू किया जाता है उन्हें चलता रहना चाहिए बल्कि उन योजनाओं को और कितना बेहतर कर सकते है उस पर काम किया जाना चाहिए. जैन के मुताबिक, अपराधियों के रडार पर ज्यादातर बुजुर्ग व महिलाएं ही रहती हैं. ऐसे में अगर उनका पुलिस से समन्वय बना रहेगा व पुलिस का बुजुर्गों के यहां आना-जाना रहेगा और पुलिस उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहेगी तो स्वाभाविक है कि बुर्जुगों से संबंधित होने वाली घटनाओं में गिरावट आएगी.