लखनऊ :माइग्रेन का दर्द से पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक ग्रसित होती हैं. माइग्रेन (Migraine) में कई स्तर होते हैं. दिमागी काम करने वालों को माइग्रेन का खतरा ज्यादा है. कम पढ़े लिखे लोग भी इस समस्या से पीड़ित हैं, लेकिन उन्हें ज्यादा खतरा नहीं है. यह तथ्य केजीएमयू न्यूरोलॉजी विभाग के ओपीडी में आए मरीजों की स्टडी रिपोर्ट में सामने आए हैं. न्यूरोलॉजी विशेषज्ञों ने 500 मरीजों की केस स्टडी के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है.
वर्किंग वुमन पर दोहरा भार : केजीएमयू न्यूरोलॉजी ओपीडी में माइग्रेन पीड़ित 500 मरीजों पर सर्वे रिपोर्ट बनाई गई है. तीन माह के सर्वे में 250 पुरुष, 250 महिलाएं थीं. 50 से 55 फीसदी माइग्रेन के मरीज उच्च शिक्षित थे. 30 प्रतिशत मरीज कम पढ़े-लिखे 15 प्रतिशत मरीज निजी सेक्टर में नौकरी वाले थे. विशेषज्ञों के मुताबिक मौजूदा समय में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ही काम कर रही हैं या उनसे ज्यादा ही काम करती हैं. क्योंकि महिलाएं बाहर का काम करने के बाद भी घर के कामकाज में भी संलिप्त होती हैं. इसमें भी ज्यादातर वही महिलाएं माइग्रेन से पीड़ित है जो वर्किंग है. क्योंकि, वर्किंग वुमन को दोहरा काम करना पड़ता है. जिसके चलते वह खुद का ख्याल तक नहीं रख पाती हैं.
तनाव से समस्या : न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रवि उनियाल के मुताबिक शिक्षित लोगों में काम का तनाव अधिक होता है. घर परिवार से लेकर दूसरे कामों का तनाव अधिक होता है. तनाव से मरीज में माइग्रेन का अटैक बार-बार पड़ने का खतरा है. शिक्षित लोगों में एक महीने में सात से आठ बार माइग्रेन का अटैक पड़ने की शिकायत दर्ज कराई. कम पढ़े लिखे लोगों में कम असर है. इससे स्पष्ट है कि वर्किंग और नॉन वर्किंग लोगों में माइग्रेन का खतरा किस स्तर पर है. मेंटली वर्क करने वाले लोगों का अधिक से अधिक समय स्ट्रेस में गुजरता है. स्ट्रेस में होने के चलते वह अधिक माइग्रेन से पीड़ित होते हैं. माइग्रेन किसी भी उम्र वर्ग के लोगों को हो सकता है. 20 साल के युवा व 45 वर्ष के वयस्क व्यक्ति को भी हो सकता है.