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सरकारी विद्यालयों के लिए मुसीबत बने बिना मान्यता के चल रहे स्कूल

योगी आदित्यनाथ की सरकार प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कई प्रयोग के साथ सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति भी सुनिश्चित करा रही है. इसके बावजूद निजी क्षेत्र के स्कूलों की रणनीति के आगे सरकारी विद्यालयों की हालत खराब ही है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : May 11, 2023, 9:22 AM IST

लखनऊ :प्रदेश सरकार प्राथमिक विद्यालयों में ज्यादा से ज्यादा दाखिले करना चाहते हैं. सरकार की मंशा शिक्षा का स्तर सुधारने, शिक्षकों को अनुशासित करने और जनता को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने की है. इसी के तहत जिला स्तर पर बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वह प्राथमिक शिक्षकों पर अपने विद्यालयों में ज्यादा से ज्यादा बच्चों का इनरोलमेंट करने का दबाव बनाएं. निश्चित रूप से इसके लिए शिक्षकों को गांव में जन संपर्क करना होगा. अभिभावकों को बताना होगा कि वह किस तरह शिक्षा में सुधार कर रहे हैं और सरकारी स्कूलों की स्थिति निजी स्कूलों से खराब नहीं है. हालांकि इस विषय में शिक्षकों की अपनी चुनौतियां और दावे हैं. कुछ शिक्षकों का कहना है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बिना मान्यता के विद्यालय संचालित हैं. जब तक इन विद्यालयों पर अंकुश नहीं लगेगा सरकारी स्कूलों में संख्या बढ़ा कठिन है.

सरकारी विद्यालयों के लिए मुसीबत बने बिना मान्यता के चल रहे स्कूल.
योगी आदित्यनाथ सरकार प्राथमिक शिक्षा में सुधार को लेकर काफी समय से प्रयासरत है. इस विषय में सरकार ने कई निर्णय किए हैं. शिक्षकों पर समय से विद्यालय पहुंचने का दबाव डाला गया है और इसके लिए तंत्र विकसित किया गया है कि यदि कोई शिक्षक विलंब से पहुंचे तो उस पर कार्रवाई की जाए. बावजूद इसके प्राथमिक शिक्षा में सुधार कोई आसान काम नहीं है. शिक्षकों के अनुशासित हो जाने से काम चलने वाला नहीं है. शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए जरूरी है कि शिक्षकों पर जवाबदेही की जिम्मेदारी भी डाली जाए। भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तमाम सरकारी स्कूलों में पांचवीं कक्षा के छात्र भी अपना नाम नहीं लिख पाते. यदि सरकार शिक्षकों पर जवाबदेही का दबाव डाले और इसके लिए कोई तंत्र बढ़ाए तो शिक्षकों के सामने मजबूरी होगी कि वह बेहतर रिजल्ट दें. इसके साथ ही सरकार को विद्यालयों में सुविधाएं भी बढ़ानी होंगी. बच्चों के लिए बैठने की अच्छी व्यवस्था, बिजली और अन्य सुविधाएं आज के समय की जरूरत है. तमाम विद्यालयों में अभी ऐसी सुविधाएं पहुंची ही नहीं हैं‌. सरकार को धीरे-धीरे इस विषय में भी काम करना पड़ेगा.
सरकारी विद्यालयों के लिए मुसीबत बने बिना मान्यता के चल रहे स्कूल.
ग्रामीण क्षेत्रों में फर्जी और बिना मान्यता वाले विद्यालय एक समस्या बन गए हैं. सरकार का ध्यान इस ओर शायद ही कभी जाता हो. अब जबकि शिक्षकों पर ज्यादा दाखिले करने का दबाव है तो वह यह विषय उठाने लगे हैं कि बिना मान्यता के चल रहे निजी विद्यालयों पर तत्काल प्रभाव से कार्यवाही हो. बिना इसके प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ाना बहुत बड़ी चुनौती होगा. जिला स्तर पर इन विद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई इसलिए नहीं हो पाती कि विद्यालय संचालकों की पैठ सरकारी तंत्र तक होती है. वह राजनीतिक संरक्षण भी पा रहे होते हैं. इसलिए ऐसे विद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकार को ही आगे आना होगा. यदि अभियान चलाकर ऐसे विद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई की जाए तो निश्चित ही सरकार की मंशा भी पूरी हो पाएगी.
सरकारी विद्यालयों के लिए मुसीबत बने बिना मान्यता के चल रहे स्कूल.
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े डॉ प्रदीप यादव कहते हैं राज्य सरकार प्राथमिक शिक्षा पर अच्छी खासी धनराशि खर्च करती है. प्रदेश के 1 लाख 13 हजार 249 प्राथमिक विद्यालयों में लगभग चार लाख प्राथमिक शिक्षक हैं. इनके वेतन पर ही बड़ी रकम खर्च होती है. इसके अलावा स्कूलों के रखरखाव, भवन निर्माण वह अन्य मदों में भी बजट का काफी हिस्सा खर्च होता है. ऐसे में यदि सरकार परिणाम चाहती है, तो इसमें गलत क्या है. हां, फर्जी और बिना मान्यता के चल रहे विद्यालयों पर कार्यवाही अनिवार्य है, क्योंकि यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है. शिक्षकों पर गुणवत्ता का दबाव डालना भी जरूरी है क्योंकि उन्हें आप निजी क्षेत्र से बेहतर वेतन भत्ते दिए जा रहे हैं. इसलिए कोई कारण नहीं है कि उनसे परिणामों की अपेक्षा की जा सके.

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