लखनऊ : उत्तर प्रदेश में पनप रहे प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के नेटवर्क पर एक बार फिर एंटी टेरेरिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) ने ताबड़तोड़ कार्रवाई कर कमर तोड़ने का काम किया है. एटीएस इस संगठन पर पैनी नजर रखता है और जैसे ही कोई सूचना मिलती है इस संगठन पर कार्रवाई की जाती है. यह संगठन युवाओं में नफरत पैदा करके उनसे समाज विरोधी कार्य लेना चाहता है. बनारस में हुई युवाओं की गिरफ्तारी में भी कुछ ऐसी ही बातें निकलकर सामने आई हैं. यह संगठन लोगों को गुमराह करने और उन में नफरत भरने के लिए सोशल मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल करता है. हाल ही में प्रयागराज में अतीक अहमद और उसके भाई के साथ हुई वारदात को लेकर भी इस संगठन के लोग युवाओं को भड़काने में लगे हैं. पीएफआई इसी तरह सुरक्षा एजेंसियां रोहिंग्या मुसलमानों पर भी पैनी नजर रख रही हैं. सुरक्षा एजेंसियों की तत्परता का ही नतीजा है कि देश में आतंकी वारदातों पर काफी हद तक लगाम लग चुकी है और प्रदेश में सांप्रदायिक संघर्ष या तनाव की घटनाओं में भी काफी कमी आई है.
पीएफआई नेटवर्क की कमर तोड़ी रहीं सुरक्षा एजेंसियां, रोहिंग्या भी निशाने पर. गौरतलब है कि सोमवार को यूपी एटीएस ने 20 जिलों में संदिग्धों की तलाश में छापे मारी की थी. इस दौरान वाराणसी में 50-50 हजार के इनामी दो लोगों को गिरफ्तार किया गया. सीएए और एनआरसी आंदोलन के दौरान यह दोनों काफी सक्रिय थे और पहले जेल भी जा चुके हैं. यह दोनों असम और अन्य राज्यों के पीएफआई नेताओं के संपर्क में थे और संगठन से युवाओं को जोड़ने के लिए हर संभव प्रयास करते थे. एटीएस ने अपनी कार्रवाई में 70 लोगों को कस्टडी में लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है. वाराणसी से गिरफ्तार आरोपियों ने कबूल किया है कि उनका नेटवर्क प्रदेश भर में फैला हुआ है और वह कई जिलों में युवाओं को संगठन से जोड़ने का काम करते थे. बताया जा रहा है कि वाराणसी पीएफआई का अड्डा बनता जा रहा है. पिछले 8 महीनों में यहां से पीएफआई के पांच सदस्य गिरफ्तार किए जा चुके हैं. राजधानी लखनऊ में भी इस संगठन का नेटवर्क बताया जा रहा है. मिश्रित आबादी वाले कई इलाकों को चिन्हित किया गया है और निगरानी की जा रही है. एजेंसियां पीएफआई से जुड़े लोगों की सोशल मीडिया पर गतिविधियों की निगरानी कर रहा है और कुछ भी संदिग्ध सामग्री मिलने पर कार्यवाही की जाती है.
पीएफआई नेटवर्क की कमर तोड़ी रहीं सुरक्षा एजेंसियां, रोहिंग्या भी निशाने पर. पिछले काफी दिनों से एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जिसमें समुदाय विशेष के युवाओं को गुमराह किया जाता है कि उनके साथ अन्याय और कौम के साथ अत्याचार हो रहा है. इस तरह का नेटवर्क फैलाने में सोशल मीडिया सबसे ज्यादा कारगर साबित हो रहा है. पीएफआई के सदस्य सोशल मीडिया पर कट्टर विचारधारा वाले लोगों को चुनकर ग्रुप बनाते हैं और फिर धीरे-धीरे उनके मन में घृणा और नफरत का बीज बोते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस नेटवर्क के लिए फंडिंग खाड़ी देशों से हो रही है और देश अथवा प्रदेश में समुदाय विशेष के साथ होने वाली किसी भी घटना को बढ़ा-चढ़ा कर गुमराह युवकों के सामने रखा जाता है, जिससे उनके मन में घृणा बढ़े और बदले की भावना पैदा हो. सुरक्षा एजेंसी इस तरह के नेटवर्क को तोड़ने में अब तक कामयाब रहे हैं. एजेंसी पीएफआई ही नहीं, बल्कि रोहिंग्याओं पर भी नजर रखती है और मौका मिलते ही उनकी गिरफ्तारी की जाती है. इसी कड़ी में सोमवार को कानपुर से सात गिरफ्तारियां हुईं. यह सभी अवैध रूप से बांग्लादेश सीमा पारकर भारत में आए थे और अवैध गतिविधियों में लिप्त थे.सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी और विश्लेषण आदित्य प्रकाश गंगवार कहते हैं पिछले एक दशक में सुरक्षा एजेंसियों ने खुद को बहुत ही सक्षम बनाया है. वह सूचना तकनीक का भरपूर उपयोग करते हैं. साथ ही अपना अच्छा नेटवर्क बनाने में भी कामयाब रहे हैं, जिससे उन्हें समय-समय पर खुफिया सूचनाएं मिलती रहती हैं और वह कार्रवाई कर नेटवर्क तोड़ने में कामयाब होते हैं. सुरक्षा एजेंसियों की मुस्तैदी के कारण ही देश और प्रदेश में आतंकी घटनाओं में व्यापक कमी आई है, जबकि देश विरोधी ताकते और युवाओं को गुमराह करने वाले पीएफआई जैसे संगठन पहले की अपेक्षा ज्यादा शिद्दत से काम कर रहे हैं. इसके बावजूद एजेंसियां उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दे रही हैं. गंगवार कहते हैं सूचना तकनीक के इस युग में एजेंसियां खुद को जितना ही सक्षम बना लेंगे घटनाओं पर अंकुश लगाना आसान होता जाएगा.