लखनऊ :पिछले तीन-चार दिनों ने प्रदेश में बारिश और ओलावृष्टि का दौर जारी है. इस बेमौसम की बरसात ने उन करोड़ों किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, जो इस बार बहतरीन फसल देखकर फूले नहीं समा रहे थे. ओलावृष्टि ने बागबानों को भी भारी नुकसान पहुंचाया है. उनके भी अच्छी फसल के ख्वाब काफूर हो गए हैं. अब समस्या यह है कि बड़ी संख्या में पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिल पाएगा, क्योंकि नीति के अनुसार सिर्फ उन्हीं लोगों को मुआवजा मिल सकता है, जिन्हें प्राकृतिक आपदा में 35 फीसद से ज्यादा नुकसान हुआ हो.
Compensation Policy For Farmers : किसानों को निराश कर रही मुआवजे की सरकारी नीति. किसानों का जीवन सबसे ज्यादा अनिश्चितता से भरा हुआ होता है. कई माह की कड़ी मेहनत से तैयार की गई फसल जब कटने वाली होती है, तो प्राकृतिक आपदा आ जाती है और किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. जैसा इस बार देखने को मिला. उम्मीद की जा रही थी कि इस बार प्रदेश का कृषि उत्पादन पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ देगा, लेकिन ऐन मौके पर खेल बिगड़ गया. पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के कुछ जिलों में बारिश और ओलावृष्टि हुई, फिर मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी बर्बादी की बारिश और ओलावृष्टि हुई. इस वक्त ज्यादातर स्थानों पर सरसों या तो कटकर उठाए चुके हैं या फिर कटने के बाद फसल खेत में ही पड़ी है. ऐसे में सरसों की जो फसल खेतों में पड़ी रह गई है, वह सड़कर खराब हो जाएगी. दूसरी ओर गेहूं में बालियां आ चुकी हैं. इसलिए तमाम स्थानों पर बारिश और हवा चलने से यह फसल खेत में गिर गई है. ऐसी फसल भी खराब हो जाती है. आलू और तमाटर को भी बारिश मामूली नुकसान है. रबी के सीजन में प्रदेश में सबसे ज्यादा गेहूं और सरसों की पैदावार होती है. इसलिए इस पैदावार पर सबसे ज्यादा असर होगा.
Compensation Policy For Farmers : किसानों को निराश कर रही मुआवजे की सरकारी नीति. फसल खराब होने से परेशान किसानों में सिर्फ ऐसे लोगों को ही मुआवजा मिल पाएगा, जिनकी क्षति 35 फीसद से ज्यादा आंकी जाएगी. स्वाभाविक है कि उन किसानों में इस नीति से निराशा है. जिन्हें इस नीति के कारण मुआवजा नहीं मिल पाएगा. प्रगतिशील किसान राजेश वर्मा कहते हैं कि नुकसान कितना हुआ है, इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है. बस अनुमान किया जा सकता है. प्राय: यह अनुमान या सर्वे वास्तविकता से दूर होता है. इस कारण असल पीड़ितों तक मुआवजा पहुंच ही नहीं पाता. किसानों और प्रधानों को भी इस सर्वे में शामिल किया जाए, तो शायद स्थिति कुछ बेहतर हो. वह कहते हैं कि सरकार किसान हितों की लाख बातें करती है, लेकिन उसे धरातल पर आकर देखना चाहिए कि वास्तव में किसानों को उसकी नीतियों से कितना लाभ मिल रहा है.
Compensation Policy For Farmers : किसानों को निराश कर रही मुआवजे की सरकारी नीति. इस संबंध में ग्राम प्रधान संघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ अखिलेश सिंह कहते हैं 'यह जो 35 प्रतिशत या जो सरकारी मानक हैं, उनके निर्धारण का तरीका व्यावहारिक होना चाहिए. पूरे राज्य में अट्ठावन हजार प्रधान किसानों के साथ हैं. किसानों की टीम के रूप में हमेशा काम करते हैं. संगठन की राय है कि जब भी इस तरह की आपदा आए, कहीं कोई मुआवजे की बात आए, तो उसी तरह से जैसे लाभार्थियों का चयन प्रधानों से कराया जाता है ग्राम पंचायतों के माध्यम से, तो मुआवजे का निर्धारण भी प्रधानों के माध्यम से कराया जाना चाहिए. एक और मान भी हो सकता है. रिमोट सेंसिंग अप्लीकेशन सेंटर राज्य सरकार संचालित कर रही है. वहां से सेटेलाइट इमेजनरी के माध्यम से वास्तविक नुकसान का आकलन किया जा सकता है. सरकार यह विकल्प भी रख सकती है. यदि टेक्निकल में जाना चाहें, तो वह विकल्प उपलब्ध है और यदि प्रेक्टिकल में जाना चाहें, तो किसान आपके साथ हैं.' डॉ अखिलेश सिंह कहते हैं 'जो मुआवजे की बात है, उसमें बीमा कंपनियां शामिल होती हैं. यह कंपनियां जब एग्रीमेंट करती हैं या पॉलिसी देती हैं, तो इतने सारे उनके छिपे हुए तथ्य होते हैं, जिनके विषय में किसान को मालूम ही नहीं होता. राज्य सरकार से अनुरोध है कि यह जो फसल बीमा योजना का प्रीमियम भरा जाता है, उसके नियम-शर्तों को दोबारा देख लिए जाने की जरूरत है और उनमें बलदाव करके व्यावहारिक बनाए जाने की आवश्यकता है.'
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