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Social Welfare Department में मंत्री, प्रमुख सचिव और निदेशक को लेकर यह बात आ रही सामने

समाज कल्याण विभाग में मंत्री, प्रमुख सचिव और निदेशक (Social Welfare Department) के एक ही जाति को लेकर राजनीतिक दल और राजनीतिक विश्लेषक कई मायने तलाश रहे हैं. विश्लेषक संयोग के साथ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं.

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Published : Feb 16, 2023, 4:55 PM IST

जानकारी देते राजनीतिक विश्लेषक.

लखनऊ :उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के समाज कल्याण विभाग जैसे महकमे में विभागीय मंत्री से लेकर प्रमुख सचिव और निदेशक तक एक ही जाति से संबंधित हैं. विभाग से लेकर शासन सत्ता में इस बात की भी खूब चर्चा है कि आखिर क्या वजह है कि विभागीय मंत्री प्रमुख सचिव और निदेशक एक ही जांच से संबंधित हैं और दलित जाति को बिलॉन्ग करते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि हो सकता है ये महज एक संयोग हो या फिर सोची समझी रणनीति. वजह कुछ भी हो, लेकिन आजकल इसकी चर्चा समाज कल्याण निदेशालय में खूब हो रही है. ऐसा इसको लेकर तमाम तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं छात्रों की छात्रवृत्ति से लेकर तमाम अन्य तरह के काम समाज कल्याण विभाग के स्तर पर होते हैं.


वर्तमान समय में समाज कल्याण विभाग के विभागीय मंत्री के रूप में असीम अरुण राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार हैं जबकि राज्यमंत्री के रूप में संजीव गोंड काम कर रहे हैं. असीम अरुण अनुसूचित जाति से आते हैं जबकि संजीव गोंड अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. हरिओम भी अनुसूचित जाति से हैं और विभाग के जो निदेशक पवन कुमार हैं वह भी अनुसूचित जाति से ही हैं. ऐसे में विभागीय कर्मचारियों का कहना है कि सभी प्रमुख पदों पर दलित समाज के लोग काम कर रहे हैं. सभी समाज के हितों के लिए जो योजनाएं हैं उनके क्रियान्वयन में बेहतर ढंग से काम नहीं हो पाता और एससी जाति के लोगों को ज्यादा तवज्जो विभागीय योजनाओं में मिलती है. हालांकि कर्मचारियों की तरफ से इसके बारे में कोई तथ्य या अन्य जानकारी नहीं दी जा सकी है.


राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मनीष सिंघवी कहते हैं कि वैसे तो यह एक इत्तेफाक हो सकता है और इसको कह सकते हैं कि सरकार की मंशा भी हो सकती है कि समाज कल्याण विभाग में एक ही वर्ग एक ही जाति के अधिकारी और मंत्री रखे जाएं. इसको सियासी नजरिए से भी देखा जा सकता है. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर भी यह महत्वपूर्ण माना जा सकता है. वर्ष 2022 के चुनाव में ओबीसी समाज पर भाजपा का आधिपत्य पूरा हो चुका है अब भाजपा की नजर दलित वोटों पर नजर है. बीजेपी चाह रही है कि दलित वोट पर भी उसका आधिपत्य हो जाए. बीजेपी की कोशिश है कि इस वोट बैंक पर भी पूरी तरह से कब्जा कर लिया जाए. दूसरी बात किसी जाति धर्म का व्यक्ति किसी पद पर रहे उसे सरकार के नियमों के अनुरूप काम करें, लेकिन अमूमन यह होता नहीं हम अपने पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियमों के अनुरूप काम करें.


वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि देखिए किसी महकमे में अलग-अलग जाति एक ही जाति के लोग हैं या अनुसूचित जाति से कोई हैं, बहुत बड़ा विषय नहीं है. आरक्षण के बाद जिन्हें नौकरिया मिली है वह किसी ने किसी डिपार्टमेंट में काम करेंगे. यह संयोग हो सकता है, लेकिन अगर ऐसा है तो मुझे लगता है कि अच्छी बात है. अगर ऐसा है तो मुझे लगता है कि अच्छी बात है कम से कम रिजर्वेशन लेकर नौकरिया पाई है. उस वर्ग के भले के लिए जो नौकरिया है उस विभाग के क्रियान्वयन और बेहतर ढंग से बेहतर हो सकता है. जिस वर्ग जाति से अधिकारी आते हैं तो उस वर्ग के बारे में ज्यादा समझ कर उसे दूर कर सकेंगे, लेकिन किसी भी महकमे में कौन व्यक्ति है उसकी जाति क्या यह देखने के बजाय उसकी परफॉर्मेंस ज्यादा महत्वपूर्ण है और कितना अच्छा काम कर सकता है. धरातल पर योजनाओं को कैसे ले जा सकता है. यह ज्यादा महत्वपूर्ण होता है.

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