लखनऊ : यूपी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सभी बीमारियों से पीड़ितों को भर्ती किया जाए. अभी लगभग 90 फीसदी गर्भवती महिलाओं को भर्ती कर इलाज मुहैया कराया जा रहा है. बाकी बीमारी से पीड़ितों को बड़े अस्पतालों में भेजा जा रहा है. इसमें सुधार की जरूरत है. यह निर्देश बुधवार को उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने दिए.
Deputy Chief Minister of UP : ब्रजेश पाठक बोले, सीएचसी में मरीज को भर्ती करने में न बरतें लापरवाही
प्रदेश सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर लगातार व्यवस्थाओं में सुधार के निर्देश दे रही है. यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि सभी बीमारियों से पीड़ित मरीजों को भर्ती किया जाए.
प्रदेश के सभी सीएमओ व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारियों को व्यवस्था में सुधार के निर्देश दिए हैं. प्रदेश में करीब 873 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. इनमें लगभग 26 हजार बेड हैं. उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि 'सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगातार सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं. डॉक्टरों की संख्या में वृद्धि हुई है. नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के तहत पैरामेडिकल स्टाफ व अन्य श्रेणी के कर्मचारी भर्ती किए जा रहे हैं. इसके बावजूद 30 बेड के अस्पताल में भर्ती रोगियों की संख्या नाकाफी है. ज्यादातर अस्पताल गर्भवती महिलाओं को भर्ती कर उपचार उपलब्ध करा रहे हैं. बुखार, उल्टी-दस्त, डेंगू, मलेरिया व दूसरे संक्रामक रोगियों को भर्ती किया जाए.' उन्होंने बताया कि 'सांस के रोगियों को भी भर्ती किया जाए. अब तक ज्यादातर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऑक्सीजन की सुविधा को सुदृढ़ किया जा चुका है. ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पर्याप्त मात्रा में अस्पतालों में उपलब्ध हैं. ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट भी कई अस्पतालों में लगाए गए हैं. पाइप लाइन के माध्यम से हर बेड पर ऑक्सीजन की सुविधा की गई है. बच्चों को भर्ती करने की भी सुविधा में इजाफा हुआ है. सुविधाएं बढ़ी हैं. ऐसे में रोगियों को बेवजह दूसरे अस्पताल न भेजें. यदि मरीज गंभीर है तो भी उसे भर्ती कर कम से कम प्राथमिक इलाज उपलब्ध कराएं.'
उप मुख्यमंत्री ने बताए फायदे : उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि 'सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में यदि भर्ती मरीजों की संख्या बढ़ेगी तो इसका फर्क प्रदेश के बड़े अस्पतालों में नजर आएगा. वहां छोटी व सामान्य बीमारियों का इलाज कराने कम लोग आएंगे. रोगियों को घर के निकट इलाज मिल सकेगा. गरीब मरीजों के आने जाने का खर्च बचेगा. समय पर इलाज मिलेगा. मर्ज के गंभीर होने की आशंका कम होगी. बड़े अस्पतालों में मरीजों का दबाव भी कम होगा.'
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