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यूपी निकाय चुनाव में छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी कर सकते हैं बड़ा खेल

चुनावों में अक्सर छोटे दल बड़ा खेल करते रहे हैं. यही कारण है कि यूपी में हो रहे निकाय चुनाव में इनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. साथ ही निर्दल उम्मीदवारों के वर्चस्व से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस बार चुनाव में कई दलों ने स्वतंत्र रूप से प्रत्याशी उतारे हैं. ऐसे में निकाय चुनाव में मुकाबले दिलचस्प और करीबी हो सकते हैं.

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Published : Apr 25, 2023, 3:43 PM IST

लखनऊ : चुनावों में अक्सर छोटे दल बड़ा खेल करते रहे हैं. तमाम बड़े प्रत्याशी छोटे दलों के प्रत्याशियों के वोट काटने से चुनाव हार जाते हैं. कई बार इन्हीं छोटे दलों के प्रत्याशियों की जीत भी हो जाती है. इस बार निकाय चुनाव में छोटे दल पिछली बार के चुनाव की तरह ही बड़ी भूमिका निभाने को तैयार हैं. राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा, अपना दल (कमेरावादी), आम आदमी पार्टी जैसे कई दल इस बार पूरे जोर-शोर के साथ चुनावी मैदान में हैं. हालांकि छोटे दल से ज्यादा निकाय चुनाव में निर्दल प्रत्याशियों का दबदबा रहा है, लेकिन इन्हीं छोटी पार्टियों में से कई पार्टियां अब ऐसी हैं जो या तो सरकार के साथ सत्ता में भागीदार हैं या फिर विपक्ष की बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन में हैं और कई विधायक भी हैं. इनमें राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा, अपना दल हैं. इन पार्टियों के नेता निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशियों के जीत का दम भर रहे हैं, लेकिन वर्ष 2017 के निकाय चुनाव के नतीजे इन पार्टियों को हतोत्साहित भी करने वाले रहे हैं.



नगर पंचायत में रहा छोटे दलों और निर्दल का दबदबा

महापौर के चुनाव में भले ही छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी नाकामयाब होते हों, लेकिन नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों में इनका परफॉर्मेंस काफी मायने रखता है. वर्ष 2017 के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो भारतीय जनता पार्टी ने 16 महापौर की सीटों में से 14 सीटें जीती थीं. बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली थीं, लेकिन नगर पंचायतों के अध्यक्ष और नगर पालिका परिषद की कुल 636 सीटों में से 225 सीटों पर छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी ने दबदबा कायम किया था. अगर तीनों श्रेणी के निकायों में पार्षद की बात करें तो कुल 11 हजार 995 सीटों में से तमाम सीटों पर निर्दलीय के साथ ही छोटे दलों के प्रत्याशियों ने चुनाव जीतकर बड़े दलों को आईना दिखाया था. इन दलों ने पार्षद की 7304 सीटों पर अपना झंडा फहराया था.

यूपी निकाय चुनाव में छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी कर सकते हैं बड़ा खेल.
राष्ट्रीय लोकदल : इस बार समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर निकाय चुनाव लड़ रहे राष्ट्रीय लोक दल के 2017 के नगर निकाय चुनाव पर नजर डालें तो पार्टी का सिर्फ एक पार्षद प्रत्याशी ही चुनाव जीतने में सफल हुआ था. इसके अलावा राष्ट्रीय लोक दल के गढ़ माने जाने वाले सिवालखास नगर पंचायत के अध्यक्ष पद पर भी पार्टी ने जीत हासिल की थी. करनावल नगर पंचायत अध्यक्ष का पद भी रालोद के हिस्से में आया था. अब इस बार पार्टी ने 30 सीटों से ज्यादा पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. आम आदमी पार्टी : वर्ष 2017 के नगर निकाय चुनाव की बात करें तो आम आदमी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़ा था और बेहतर प्रदर्शन करके दिखाया था. पार्टी ने तीन पार्षद, 17 नगरपालिका सदस्य और दो नगर पंचायत अध्यक्ष के पदों के साथ ही 19 पंचायत सदस्य के पदों पर जीत हासिल की थी. पहली बार निकाय चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी के नेताओं के लिए शुभ संकेत था. इस बार आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में चुनावी मैदान में उतरी है और सभी जगहों पर अपने प्रत्याशी लड़ा रही है. पार्टी के नेताओं को पूरी उम्मीद है कि इस बार प्रदर्शन बहुत ज्यादा बेहतर होगा. एआईएमआईएम : एआईएमआईएम की बात की जाए तो वर्ष 2017 के चुनावों में इस पार्टी ने भी उत्तर प्रदेश में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था. छोटे दल के रूप में उतरी इस पार्टी ने निकाय चुनाव में 12 पार्षद, सात नगर पालिका सदस्य, एक नगर पंचायत अध्यक्ष और छह नगर पंचायत सदस्य की सीटों पर जीत दर्ज की थी. इससे यह साबित होता है कि एआईएमआईएम ने कई बड़े दलों के पार्षद प्रत्याशियों के साथ ही निकाय चुनाव के अन्य प्रत्याशियों को हराने में अहम भूमिका निभाई थी. इस बार भी असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम चुनाव लड़ा रही है और पार्टी के नेता उम्मीद जता रहे हैं कि पहले से ज्यादा प्रत्याशी चुनाव जीतेंगे. सुभासपा : ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने भी इस बार पूरे दमखम से निकाय चुनाव में उतरने का फैसला लिया. पार्टी ने ऐसी जगह पर अपने महापौर प्रत्याशी उतारे जहां पर पार्टी को लगा कि कुछ हो सकता है. 17 महापौर की सीटों में से छह सीटों पर पार्टी ने महापौर पद के प्रत्याशियों को उतारा है. इनमें लखनऊ, आगरा, मथुरा, वाराणसी, मेरठ और गाजियाबाद शामिल हैं. नगर पालिका परिषद के 62 और नगर पंचायतों के 102 अध्यक्ष पदों पर भी पार्टी ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. सभी प्रकार के निकायों में पार्टी की तरफ से 450 से अधिक पार्षद प्रत्याशियों को जंग के मैदान में भेजा गया है. अपना दल (कमेरावादी) : कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) पार्टी ने वर्ष 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था. इस चुनाव में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पल्लवी पटेल को जीत हासिल हुई थी. उन्होंने योगी सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सिराथू विधानसभा सीट से चुनाव हराया था. दावा था कि समाजवादी पार्टी के साथ ही मिलकर निकाय चुनाव भी लड़ा जाएगा, लेकिन अखिलेश ने कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल को भाव ही नहीं दिया. लिहाजा नाराज अपना दल (कमेरावादी) की तरफ से पार्षद और महापौर प्रत्याशी मैदान में उतार दिए गए. पूर्वांचल में पार्टी का दबदबा है. इसलिए बनारस में 20 पार्षद प्रत्याशी और इसी सीट पर महापौर प्रत्याशी भी घोषित किया गया है. पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि वाराणसी में अपना दल (कमेरावादी) निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी. 2017 के निकाय चुनाव में यह रही स्थिति राष्ट्रीय लोक दल को नगर निगम में 0.31, पालिका परिषद में 0.23 और पंचायत में 0.63 प्रतिशत ही वोट मिले थे. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने पिछली बार चुनाव लड़ा था तो नगर निगम में और पालिका परिषद पर प्रत्याशी नहीं उतार रहे थे, लेकिन पंचायत में 0.17 प्रतिशत मत ही प्रत्याशी प्राप्त करने में सफल हो पाए थे. शिवसेना को नगर निगम में 0.08, पालिका परिषद में 0.08 और पंचायत में 0.02% मत मिले थे. राष्ट्रीय जनता दल ने भी निकाय चुनाव में प्रत्याशी उतारे थे. नगर निगम में प्रत्याशियों का टोटा रहा. पालिका परिषद में 0.46% और पंचायत में 0.11 प्रतिशत वोट पार्टी को मिले थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी को 0.02% मत और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को 0.29 प्रतिशत मत हासिल हुए थे. वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन का कहना है कि अभी तक निकाय चुनाव में जो छोटे दलों का प्रदर्शन रहा है वह बहुत अच्छा तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इन दलों की तुला में निर्दलीय बड़े दलों के लिए ज्यादा सिरदर्द साबित हुए हैं. हां यह जरूर कहेंगे कि अब छोटे दलों के पास भी कई विधायक हैं तो उनका भी दबदबा कायम है. यही नहीं कई छोटे दल बड़े दलों के साथ समझौते में चुनाव लड़ रहे हैं तो निश्चित तौर पर इस बार उनका प्रदर्शन कुछ अच्छा जरूर हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से चुनाव परिणाम ही पलट कर रख देंगे, ऐसा लगभग असंभव है. यह भी पढ़ें : चारबाग का होटल माया होगा कुर्क, छापेमारी में पकड़ा गया था सेक्स रैकेट

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