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यूपी निकाय चुनाव में धरे रह गए बसपा सुप्रीमो के दांव-पेंच, 15 मेयर प्रत्याशियों की जमानत जब्त

उत्तर प्रदेश के नगर निकाय के चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती का दलित-मुस्लिम प्रयोग पूरी तरह से धड़ाम हो गया है. इससे यह भी लगने लगा है कि दलित वर्ग बसपा की झोली से छिटक गया है. ऐसे में वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए वजूद बचाने जैसा साबित होने वाला होगा.

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Published : May 15, 2023, 5:10 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश नगर निकाय के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के सारे दांव पेंच फेल हो गए. पार्टी को अपनी पिछली मेयर सीटें भी गंवानी पड़ गईं. मेरठ सीट हाथ आई और न ही अलीगढ़. 17 मेयर प्रत्याशियों में से 15 तो अपनी जमानत ही जब्त करवा बैठे. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की स्थिति कैसी होती जा रही है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अगर मायावती ने अपनी राजनीति नहीं बदली तो यह पार्टी कहीं की नहीं बचेगी. उनका मानना है कि पार्टी का प्रदर्शन चुनाव दर चुनाव खराब ही होता जा रहा है. नगर निकाय में पार्टी के बदतर प्रदर्शन को लेकर अब बहुजन समाज पार्टी के मुखिया अपने कई नेताओं पर कार्रवाई कर सकती हैं.

यूपी निकाय चुनाव में धरे रह गए बसपा सुप्रीमो के दांव-पेंच.
बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सभी 17 नगर निगम में चुनाव लड़ा था. सभी 17 सीटों पर मेयर प्रत्याशी उतारे थे. इस बार बीएसपी मुखिया मायावती ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए ब्राह्मणों को दरकिनार कर दलित-मुस्लिम कांबिनेशन बनाया था. 17 में से 11 मेयर प्रत्याशी मुस्लिम ही थे. शेष दलित और पिछड़ा वर्ग से, लेकिन जनता को मायावती का यह प्रयोग बिल्कुल भी रास नहीं आया. हश्र ये हुआ कि जब चुनाव परिणाम आए तो 17 महापौर प्रत्याशियों में से मायावती की पार्टी के 15 प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए. दो प्रत्याशी किसी तरह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को टक्कर देने में सफल हुए. नगर पालिका और नगर पंचायत में भी बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन दोयम दर्जे का रहा.
यूपी निकाय चुनाव में धरे रह गए बसपा सुप्रीमो के दांव-पेंच.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की ही बात कर ली जाए तो यहां पर भी मायावती ने शाहीन बानो को मेयर प्रत्याशी बनाया था. उम्मीद जताई जा रही थी मुस्लिम कैंडिडेट देने से लखनऊ के ज्यादातर मुस्लिम शाहीन बानो को समर्थन देंगे, लेकिन नतीजों में ऐसा कुछ नहीं दिखा. भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के महापौर प्रत्याशी की तुलना में बहुजन समाज पार्टी को काफी कम वोट मिले. ऐसे में मायावती का यह प्रयोग पूरी तरह असफल ही कहा जाएगा.


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