लखनऊ :प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार का विस्तार बहुत जल्द होने वाला है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस संबंध में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत हो गई है. विपक्ष के जातीय जनगणना के दांव की काट भी इस मंत्रिपरिषद विस्तार में दिखाई देगी. विस्तार में पिछड़ी जाति के मंत्रियों की संख्या इस बार सवर्ण मंत्रियों से अधिक हो सकती है. अभी तक यह संख्या सवर्णों की तुलना में कम है. भाजपा पहले से भी पिछड़ी जातियों को लेकर बहुत सतर्क है और पार्टी के साथ ही सरकार में इनके नेतृत्व को लेकर संवेदनशील रही है. केंद्र की सरकार के साथ ही सांसद, विधायकों और अन्य पदों पर भी इसका बखूबी ध्यान रखा जाता है. इस विस्तार में भी भाजपा के कुछ विधायकों को भी मंत्री बनाए जाने की सूचनाएं मिल रही हैं. सरकार लोकसभा चुनावों में जाने से पहले सभी मोर्चों पर मजबूत होना चाहती है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल की सरकार में इस समय कुल 52 मंत्री हैं. इनमें से 18 कैबिनेट स्तर के मंत्री, 14 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और बीस राज्य मंत्री शामिल हैं. यदि इसे जातीय समीकरणों के आधार पर देखें तो इनमें सबसे ज्यादा 21 सवर्ण मंत्री हैं, जबकि 19 ओबीसी और नौ दलित हैं. वहीं मुस्लिम और सिख समाज से भी एक-एक नेता को मंत्री पद से नवाजा गया है. 21 सवर्ण मंत्रियों में आठ क्षत्रिय, सात ब्राह्मण, तीन वैश्य समाज से, दो भूमिहार और एक कायस्थ नेता हैं. इस विस्तार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान को मंत्री बनाए जाने की उम्मीद है. राजभर और चौहान दोनों ही पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन दोनों के मंत्रिपरिषद में शामिल होते ही सवर्ण और पिछड़ी जाति के मंत्रियों की संख्या बराबर हो जाएगी.
सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का पूर्वांचल के कुछ जिलों में अच्छा प्रभाव माना जाता है. यही कारण हैं कि भाजपा ने इन्हें दोबारा गठबंधन में शामिल किया और अब दूसरी बार मंत्रिपरिषद में भी शामिल करने की तैयारी है. इससे पहले वह 19 मार्च 2017 से 20 मई 2019 तक योगी सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री के पद पर कार्यरत थे. जब उन्होंने मंत्रिपद छोड़ा था, उससे पहले अपने बेटों को समायोजित करने को लेकर भाजपा पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर खूब बयानबाजी की थी, जिसके बाद भाजपा ने भी इन्हें तवज्जो नहीं दी. 27 अक्टूबर 2002 को अपनी पार्टी का गठन करने वाले राजभर को लंबे संघर्ष के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में सफलता मिली. इस चुनाव में राजभर की पार्टी से पहली बार चार सदस्य चुनकर विधानसभा पहुंचे. 2022 का विधानसभा चुनाव उन्होंने सपा और राष्ट्रीय लोकदल के साथ मिलकर लड़ा, जिसमें उनके छह सदस्य चुनकर विधानसभा पहुंचे. हालांकि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कुछ अपने नेताओं को सुभासपा के टिकट पर उतारा था. चुनाव के कुछ दिन बाद ओमप्रकाश राजभर की अखिलेश यादव के साथ ज्यादा दिन तक नहीं निभी और उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला किया और बाद में दोबारा भाजपा के साथ लौट आए.