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तीसरे दिन समाप्त हुआ विधानसभा का शीतकालीन सत्र, कुछ ही घंटे चली कार्यवाही - लखनऊ की खबर

उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सदन की कार्रवाई तीसरे दिन कुल 4 घंटे 26 मिनट ही चली. वहीं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इसके लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया है.

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उत्तर प्रदेश विधानसभा.

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Published : Dec 19, 2019, 7:48 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र का समापन महज तीसरे दिन ही हो गया. 17 दिसम्बर की सुबह 11 बजे शुरू हुई विधानसभा की कार्रवाई 19 दिसम्बर को सुबह 11:30 बजे स्थगित हो गई. इन तीन दिनो में सदन की कुल समयावधि सात घंटे 37 मिनट रही, जिसमें तीन घंटे 11 मिनट विधानसभा का सदन स्थगित रहा. वहीं चार घंटे 26 मिनट निर्वाध रूप से विधानसभा की कार्यवाही चली. यह सत्र 20 दिसम्बर तक चलना था, लेकिन समय से पहले ही सदन स्थगित किए जाने को लेकर सरकार ने विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया है.

तीसरे दिन ही समाप्त हुआ विधानसभा का शीतकालीन सत्र.

सदन स्थगित करने का कारण विपक्ष का गैर जिम्मेदाराना बर्ताव
संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि हमने सदन चलाने की पूरी कोशिश की, लेकिन विपक्ष के गैर जिम्मेदाराना बर्ताव के चलते सदन स्थगित करना पड़ा. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि नागरिकता कानून के साथ ही कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष ने पहले दिन से ही हंगामा शुरू कर दिया, जिस पर सरकार ने विपक्ष के सवालों का जवाब दिया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में इस विषय पर अपनी बात रखते हुए हर प्रश्न का जवाब दिया. बावजूद इसके गुरुवार को उसी मुद्दे पर विपक्ष हंगामा कर रहा था.

सरकार ने की सदन चलाने की कोशिश
गुरुवार को विधानसभा की कार्यवाही के दौरान सपा और कांग्रेस के लोग वेल में आ गए, जबकि नियमानुसार सत्र के दौरान एक बार जो विषय आ जाए, उसे दोबारा नहीं लाया जा सकता है. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि विपक्ष के लोग सदन को चलने नहीं देना चाहते थे, जिसके चलते मजबूरी में हमें सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा.

सदन कम चलने के लिए दोनों पक्ष ही जिम्मेदार हैं. सत्ता पक्ष को चाहिए कि हर हाल में सदन को चलाने की पूरी कोशिश करें ताकि प्रदेश की समस्याओं और प्रदेश के विकास को लेकर चर्चा की जा सके. साथ ही विपक्ष को शालीनता से सरकार को घेरना चाहिए. कार्यवाही के दौरान सरकार से सवाल करने चाहिए, साथ ही सरकार के जवाब को सुनना चाहिए. इसे ही स्वस्थ परंपरा कहेंगे.
-अनिल भारद्वाज, राजनीतिक विश्लेषक

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