लखनऊ : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों में अभी से ही, सभी छोटे-बड़े दल जी-जीन से जुट गए हैं. चुनाव में फायदे को देखते हुए गठबंधन का दौर भी चल रहा है. सभी बड़ी पार्टियां छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरना चाह रही हैं. लेकिन ऐसे में कांग्रेस के साथ कोई छोटा या बड़ा दल गठबंधन करने को तैयार नहीं है. मजबूरी में कांग्रेस के नेता अकेले ही मैदान में उतरने की बात कर रहे हैं.
दो युवराजों का साथ यूपी को नहीं आया था रास
साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया था. राहुल गांधी और अखिलेश यादव साथ में हाथ पकड़ कर '27 साल यूपी बेहाल' और 'यूपी को साथ पसंद है' के नारे के साथ उतरे थे, लेकिन जनता को इन दोनों युवाओं का साथ पसंद नहीं आया. 2017 के चुनाव परिणाम जब आए तो फिर से सत्ता पाने की अखिलेश की उम्मीद चकनाचूर हो गई. वहीं कांग्रेस पार्टी महज सात विधानसभा सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में एक छोटे दल जैसी स्थिति में आ गई. 2012 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी बेहतर प्रदर्शन करने में नाकामयाब रही थी.
यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ देने में कतरा रहे दल. 2007 में आई थीं 21 सीटें
2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की 21 सीटें आई थीं. हालांकि तब पार्टी की स्थिति कुछ ठीक थी, लेकिन साल दर साल कांग्रेस पार्टी नीचे की तरफ गिरती चली जा रही है.
लोकसभा चुनाव में किया था छोटे दलों से गठबंधन
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जब उम्मीद के मुताबिक बड़े दल से गठबंधन करने में कामयाबी नहीं मिली, तो 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने छोटे दलों को अपने साथ मिलाकर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया. लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने कृष्णा पटेल की अपना दल और बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी को अपने साथ लिया. कुछ अन्य छोटी पार्टियां भी कांग्रेस के साथ मैदान में उतरीं, लेकिन हश्र ये हुआ कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी अपनी अमेठी सीट हार गए. यहां पर कांग्रेस की लाज सिर्फ पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रायबरेली सीट जीतकर बचाई. ऐसे में लोकसभा चुनाव में छोटे दलों से गठबंधन करना भी कांग्रेस को भारी पड़ गया.
2022 के लिए फिर छोटे दलों की ओर रुख
2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर जब कांग्रेस पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ तो 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने एलान किया कि किसी भी बड़े दल से गठबंधन नहीं करेंगे. छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव मैदान में उतरेंगे, लेकिन वर्तमान हालात ये हैं कि छोटे दल समाजवादी पार्टी से मिलने को लालायित हैं. अखिलेश यादव लगातार छोटे दलों से संपर्क कर उन्हें अपने साथ ले रहे हैं, वहीं कांग्रेस पार्टी की स्थिति यह है कि यहां पर छोटे दलों के नेता भी झांकने तक नहीं आ रहे हैं. अब कांग्रेस पार्टी के नेता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में स्थिति ऐसी हो गई है कि जैसे वह राष्ट्रीय पार्टी न होकर क्षेत्रीय पार्टी से भी गई गुजरी हो. छोटे दल भी कांग्रेस को इतना छोटा मान रहे हैं कि वे चाहते हैं कि कांग्रेस ही उनके पास गठबंधन के लिए हाथ बढ़ाने आए, वह कांग्रेस पार्टी के पास नहीं जाएंगे.
कृष्णा पटेल की पार्टी भी सपा की शरण में
2019 के लोकसभा चुनाव में कृष्णा पटेल की अपना दल कांग्रेस के साथ थी, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए अपना दल भी कांग्रेस को पराया कर रही है. सपा की साइकिल पर सवार होने को अपना दल बेताब है. हाल ही में अपना दल की नेता पल्लवी पटेल ने सपा मुखिया अखिलेश यादव से संपर्क भी स्थापित किया है और उम्मीद जताई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में अपना दल समाजवादी पार्टी के साथ नजर आएगी. यानी 2019 का लोकसभा चुनाव का गठबंधन 2022 के विधानसभा चुनाव तक आते-आते बिखर गया.
महान दल ने भी दिया झटका
2019 से लोकसभा चुनाव में महान दल भी कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन में था, लेकिन हाल ही में 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए महान दल ने समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी कर ली है, ऐसे में कांग्रेस से महान दल भी दूर हो गया.
वामदल तक गठबंधन को तैयार नहीं
उत्तर प्रदेश में वाम दलों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. खाता खोलने तक को तरस रहे हैं, लेकिन जब बात यूपी में कांग्रेस से गठबंधन के लिए की जाए तो वामदल तक कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार नहीं है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वामदल साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के राज्य सचिव हीरालाल यादव का कहना है उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से वामदल गठबंधन कर सकते हैं, लेकिन कांग्रेस से नहीं. उनका मानना है कि कांग्रेस में कोई क्षमता नहीं बची है.
न होता गठबंधन तो इससे बेहतर होती स्थिति
कांग्रेस पार्टी के नेता मानते हैं कि अगर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी समाजवादी पार्टी से गठबंधन न करती तो कांग्रेस की स्थिति कहीं ज्यादा बेहतर होती. आज उसे गठबंधन के लिए छोटे दलों के हाथ पैर न जोड़ने पड़ते. 2017 में जब रणनीतिकार प्रशांत किशोर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को धार दे रहे थे, उसी समय पार्टी आलाकमान ने बड़ी गलती कर दी. रणनीतिकार पीके को दरकिनार कर अखिलेश से हाथ मिला लिया. यही फैसला पार्टी पर भारी पड़ गया.
कांग्रेस की विचारधारा वाले दल आएंगे साथ
कांग्रेस की प्रवक्ता शुचि विश्वास कहती हैं कि हम किसी भी दल को छोटा नहीं मानते हैं. सभी दल अपने में बड़े होते हैं. जहां तक कांग्रेस की बात है, कांग्रेस की अपनी विचारधारा है उस विचारधारा वाले दल ही कांग्रेस के साथ आते हैं. और अभी तो बहुत जल्दी है आगे आने वाले दिनों में स्थिति और साफ होगी. कांग्रेस पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव अकेले ही लड़ेगी और हमें प्रियंका गांधी के नेतृत्व में जीत की पूरी उम्मीद है.
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राजीव गांधी पंचायती राज विभाग के चेयरमैन शैलेंद्र तिवारी का मानना है कि कांग्रेस पार्टी अकेले विधानसभा चुनाव में उतर कर जीत हासिल करेगी. गठबंधन से कांग्रेस पार्टी को कभी भी फायदा नहीं हुआ है. जनता के मुद्दों को लेकर और सरकार की गलत नीतियों को जनता के बीच रखा जाएगा. पूरी उम्मीद है कि जनता कांग्रेस का साथ देगी. कांग्रेस लगातार इस दिशा में प्रयास कर रही है. उनका मानना है कि छोटे दल अगर कांग्रेस के साथ नहीं आ रहे हैं, तो इसका मतलब यही है कि वे भारतीय जनता पार्टी का साथ दे रहे हैं.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन का कहना है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बदतर होती जा रही है. इसके पीछे कांग्रेस नेताओं का पार्टी की तरफ ध्यान न देना है. अभी भी दिल्ली से ही बैठकर उत्तर प्रदेश की कांग्रेस को संचालित किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में छोटे दलों की अपनी ही हैसियत कुछ नहीं है तो वह कांग्रेस के साथ आकर भी क्या करेंगे ? और कोई भी दल खुद को मजबूत करने के लिए मजबूत पार्टी की तरफ ध्यान देता है, और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति तो जगजाहिर है. तो छोटे दल कांग्रेस की तरफ आएं भी तो क्यों ?