लखनऊ:कहा जाता है कि जिस पार्टी को पूर्वांचल में सफलता मिली, उसी की यूपी में सरकार बनती है. यही कारण था अबकी प्रदेश के पूर्वी अंचल में सत्ता की चाभी पाने को सभी सियासी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी थी. एक तरह भाजपा अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराने और यहां की अधिक से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने को पूरी तरह से बेताब नजर आ रही थी तो वहीं दूसरी ओर विपक्षीय पार्टियां खासकर सपा और कांग्रेस यहां जातीय समीकरण को साधने में लगे थे. इस बीच बसपा को अपने दलित-ब्राह्मण कार्ड से खासा उम्मीद थी. वहीं, परिणाम से पहले रूझानों में भाजपा को यहां बड़ी कामयाबी मिलती दिख रही है.
यूपी की सत्ता में काबिज होने के लिए पूर्वांचल काफी अहम माना जाता है और यहां कि 137 सीटें यह तय करती हैं कि आगे किसे सत्ता की चाभी सौंपनी हैं. इसलिए सभी पार्टियों का फोकस पूर्वांचल की ओर था. इधर, कोविड की दूसरी लहर के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी में अपने पहले दौरे की शुरुआत पूर्वांचल के वाराणसी से किए, जो कि उनका संसदीय क्षेत्र भी था. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद यहां भाजपा लगातार मजबूत होती गई और 2017 के विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर 2022 में यहां भाजपा को जनता का जबर्दस्त समर्थन मिलता दिख रहा है.
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हालांकि, पूर्वांचल के कुछ जिलों में समाजवादी पार्टी का अच्छा असर देखने को मिला तो कुछ सीटों पर बसपा ने सपा का बना बनाया खेल बिगाड़ने का काम किया. इस बीच यूपी की छोटी पार्टियों की प्रयोगशाला के तौर पर मशहूर पूर्वांचल में अपना दल (एस), निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और जनवादी पार्टी का भी प्रभावी असर रहा. ये पार्टियां कई बड़ी पार्टियों के नींव को कमजोर करने का काम की. वहीं, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) भाजपा के साथ गठबंधन में रहे तो जनवादी पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी सपा खेमे में शामिल थी.
वहीं, भाजपा में पूर्वांचल की कमान स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभाल रखी थी. लेकिन पार्टी की ओर से पंकज चौधरी और सहयोगी पार्टी अपना दल की अनुप्रिया पटेल के साथ ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को जिलेवार रणनीति व प्रचार में लगाया गया था. ताकि कोई भाजपा के इस मजबूत गढ़ में सेंधमारी न कर सके.
इधर, समाजवादी पार्टी भी पूर्वी यूपी के मजबूत नेताओं को अपने साथ जोड़कर यहां भाजपा को झटका देने की कोशिश में लगी रही. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अंचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी और उनके बेटों को सपा में शामिल कराया, ताकि यहां उन्हें ब्राह्मणों का वोट हासिल हो सके. इसके अलवा कई अन्य बड़े नेता सपा में शामिल हुए, जिसमें राम प्रसाद चौधरी, रमाकान्त यादव, बालेश्वर यादव, कालीचरण राजभर, उमेश पाण्डेय, इंद्रजीत सरोज, त्रिभुवन दत्त, जयनारायण तिवारी, विद्या चौधरी, दयाराम पाल, अंबिका चौधरी, हाकिम लाल बिंद, वीरेन्द्र सिंह, श्रीराम भारती और कमलेश गुप्ता का नाम अहम था. वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आजमगढ़ से लोकसभा सांसद हैं. सपा पिछली बार पूर्वी यूपी से 18 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.
ये हैं पूर्वांचल के जिले