लखनऊ: यूपी में खेतों और सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं और अपनी फसल को बचाने में लगे किसानों के बीच एक जंग छिड़ी हुई है. सूबे में जो सरकार किसानों ने चुनी थी, वह पूरे कार्यकाल में आवारा पशुओं का बचाव और किसानों पर कार्रवाई करती रही है. रबी की तबाह होती फसल को बचाने के लिए जाड़े की रात में किसान पहरा दे रहे हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के पहले चरण का मतदान होने में महज दो दिन बचे हैं. ऐसे में गांवों का सबसे बड़ा मुद्दा छुट्टा जानवर बनता जा रहा है. ऐसे में क्यों उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं का आतंक एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है? छुट्टा जानवरों ने उत्तर प्रदेश के किसानों का क्या हाल किया है? और छुट्टा जानवर का मुद्दा चुनाव को कितना प्रभावित करेगा? ये जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम गांव में किसानों के बीच पहुंची.
राजधानी लखनऊ का एक गांव गौरा, जहां के किसानों की हालत अजीब है. वो न रात को सोते हैं न दिन को. बस 24 घंटे हाथ में लाठी और खेतों में दौड़ हो रही है. ये नूरा कुश्ती पिछले साढ़े 4 साल से चली आ रही है. इस गांव के रहने वाले 70 साल के दुलारे बताते है कि उन्होंने अपने 4 बीघे के खेत में सरसों व आधे में रबी की बुआई की थी, लेकिन आवारा पशुओं ने उनकी फसल बर्बाद कर दी है. दुलारे कहते है कि ये सिर्फ इस साल की फसल की बात नहीं है, बल्कि पिछले 5 साल से उनकी आधी फसल छुट्टा जानवर चट कर रहे हैं. उनका कहना है कि फसल की देखभाल करते व पशुओं को भगाते हुए इस ठंड में हमारे जैसे आधे बुजुर्ग किसान मर जाएंगे.
इसी गांव के किसान सुमेर लोधी बताते है कि जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और उन्होंने गाय को बचाने के लिए मुहिम चलाई तो उन्हें बड़ी खुशी हुई कि किसी ने तो गाय के लिए सोचा, लेकिन एक साल बाद रात में सड़क पर बैठे सांड से मोटरसाइकिल भिड़ने से उनका बड़ा बेटा उन्हें छोड़कर चला गया तो वो टूट गए. यही नहीं इसी साल उनकी आधी से ज्यादा फसल भी ये जानवर बर्बाद कर गए हैं. ऐसे में वो कहते है कि वो कैसे इस सरकार को वोट दें.
ये सिर्फ इन किसानों की पीड़ा नहीं है. पिछले पांच सालों में उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में लावारिस पशुओं ने जो तांडव मचाया है उसने न सिर्फ किसानों को बल्कि पशुओं की वजह सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों से न जाने कितनों घरों को तबाह किया है। यूपी सरकार बनने के बाद 2017 में योगी सरकार ने वादा किया था कि वह राज्य में छुट्टा पशुओं की बेहतर देख-रेख के लिए गौशालाएं बनाएगी और बेहतर प्रबंधन करेगी. लेकिन राज्य के किसानों की लाठी लेकर जानवरों को भगाने की तश्वीरों ने इन दावों पर कई बार सवाल उठाए थे. हालांकि सरकार ने भारी भरकम बजट गोवंश की देखभाल के लिए जारी किया है, उसके बावजूद हालात हर साल खराब होते गए हैं. खेत की रखवाली करता किसान. गोवंश के लिए योगी सरकार ने उठाए कदम
छुट्टा गोवंश जानवरों के आतंक से परेशान किसानों की नाराजगी से सूबे की सरकार भलीभांति वाकिफ थी. 2019 के लोक सभा के चुनाव में किसानों की नाराजगी भारी न पड़े इसी को लेकर योगी सरकार ने लावारिस पशुओं के आतंक से निजात दिलाने के लिए एक लंबा चौड़ा बजट जारी किया. 2019-20 वित्तीय वर्ष में प्रदेश के तत्कलीन वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत बजट में गो कल्याण के लिए करीब 500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था, जिसमें ग्रामीण इलाकों में गौशाला के रख-रखाव और निर्माण के लिए 247.60 करोड़ रुपये, शहरी क्षेत्र में कान्हा गौशाला और आवारा पशु आश्रय योजना में 200 करोड़ रुपये और आवारा पशुओं की देख-रेख के लिए 165 करोड़ रुपये शामिल थे, ये 165 करोड़ प्रदेश में शराब की बिक्री पर विशेष शुल्क लगाने से मिलने वाली राशि थी.
यही नहीं योगी सरकार ने 16 जिलों में 20 गोसंरक्षण केंद्रों को भी खेलने की शुरुवात की थी. छुट्टा जानवरों की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना की भी घोषणा की थी, जिसके तहत छुट्टा गोवंश को पालने वाले लोगों को प्रति पशु के हिसाब से 30 रुपये यानि महीने के 900 रुपये मिलेंगे. ये पैसे हर तीन महीने में दिए जाने वाले थे. इस पर 109.50 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया था.
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इन सब प्रयासों के बाद भी किसानों को इस समस्या से निजात नहीं मिल सकी है. आंकड़ों के मुताबिक 19वीं पशुगणना के अनुसार पूरे भारत में छ्ट्टा जानवरों की संख्या 52 लाख से भी ज्यादा है. राज्य के पशुपालन विभाग के सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं की संख्या 7 लाख 33 हज़ार 606 है. इनमें से लाखों पशुओं को यूपी सरकार द्वारा बनाई गई अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल में रखा भी गया है, वहीं कुछ अभी सड़कों और खेतों में समस्या बनी हुई हैं.
2022 के विधानसभा चुनाव में पहले से ही किसान कानून को लेकर बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकार और किसानों के बीच रार खींची हुई थी. अब इन लावारिस जानवरों की मुसीबत बीजेपी के लिए समस्या खड़ी कर सकती है. हालांकि समाजवादी पार्टी भी समय-समय पर इस समस्या का मुद्दा उठाते रहती है. हाल ही में अखिलेश यादव ने कहा था कि सरकार बनने पर सांड की वजह से हुई दुर्घटना में मरने वाले के परिवार को 5 लाख रुपये दिए जाएंगे. ऐसे में अब किसान किस ओर रुख करते हैं ये तो 10 मार्च की तारीख तय करेगी, लेकिन ये जरूर है कि किसान की नाराजगी बीजेपी 2019 में भले ही न झेलनी पड़ी हो, लेकिन इस चुनाव में उठानी पड़ सकती है.
क्या कहते है बुंदेलखंड के विशेषज्ञ
बुंदेलखंड के वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित बताते है कि पूरे बुंदेलखंड में अन्ना जानवरों की समस्या दशकों पुरानी है, लेकिन पिछले 4 सालों में एकाएक जानवरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. बुंदेलखंड में फसल एक फसली है, जिससे जानवरों की वजह से किसान रात-दिन खेत में पड़े होने के बाद भी अपनी फसल नहीं बचा पा रहे हैं. इससे लावारिस जानवरों की वजह से आज इन इलाकों के किसानों में भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
हालांकि सरकार ने गौशालाएं बनाई हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी जानवर बाहर सड़कों व खेतों में हैं. गोशाला में भूसा पहुंच नहीं रहा है. चुनावों में किसानों की नाराजगी की बात करते हुए अरुण बताते है कि इसी बुंदेलखंड में किसानों ने बीजेपी को 2017 के चुनाव में सभी 19 सीटें दी थीं, लेकिन इस बार के चुनाव में यहां के किसानों की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकती है.
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