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रावण के किरदार ने संतोष को बना दिया 'लंकेश', नवरात्र में करते हैं दशानन की स्थापना - सबसे बड़े रावण भक्त

रावण भक्त लंकेश की अपने ईष्ट के प्रति आस्था ही है कि उन्होंने अपने दोनों बेटों का नाम भी मेघनाद और अक्षय रखा है. वे पिछले 40 सालों से रावण की भक्ति कर रहे हैं. जिनकी पहचान अब लंकेश के रूप में होती है.

दशानन की पूजा करते संतोष.

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Published : Oct 8, 2019, 11:38 PM IST

जबलपुरः जबलपुर के पाटन निवासी लंकेश अनोखी आस्था के लिए अपनी अलग पहचान रखते हैं. जब लोग सुबह उठकर राम का नाम लेते हैं, तब लंकेश रावण की पूजा कर रहे होते हैं. संतोष नामदेव पेशे से टेलर हैं, लेकिन इनकी रावण भक्ति से हर कोई प्रभावित है. दशकों से रावण की पूजा करते आ रहे संतोष की पहचान ही लंकेश के रूप में बन चुकी है, नवरात्रि में जब वे रावण की प्रतिमा स्थापित करते हैं तो क्षेत्र के लोग भी उनका पूरा सहयोग करते हैं. उनके मोहल्ले में रावण की शोभायात्रा धूमधाम से निकाली जाती है.

रावण भक्त लंकेश की अपने ईष्ट के प्रति आस्था ही है कि उन्होंने अपने दोनों बेटों का नाम भी मेघनाद और अक्षय रखा है, जो रावण के पुत्रों के नाम थे. संतोष ने बताया कि वे पिछले 40 सालों से रावण की भक्ति कर रहे हैं. उनका मानना है कि जो कुछ भी उनके पास है, वह सब रावण की भक्ति से ही मिला है.

दशानन की पूजा करते संतोष.

रावण की पूजा करने वाले संतोष की भक्ति को देख अब उनके परिवार और पड़ोस के लोग भी उनका साथ देने लगे हैं. भले ही समाज रावण की बुराइयों की अनेक कहानियां सुनाता है, लेकिन लंकेश दशानन की अच्छाइयों से सीख लेकर आगे बढ़ रहे हैं. उनकी इस रावण-भक्ति के पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है. संतोष ने बताया कि बचपन में इन्होंने रामलीला में रावण की सेना में सैनिक का किरदार निभाया था. कुछ सालों बाद इन्हें रावण का किरदार निभाने का भी मौका मिला. उस किरदार से संतोष इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने रावण को ही अपना गुरु और ईष्ट मान लिया. तब से रावण-भक्ति का सिलसिला चला आ रहा है.

संतोष का मानना है कि रावण बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी थे. उनके अंदर कोई भी दुर्गुण नहीं था. उन्होंने जो भी किया, वह अपने राक्षस कुल के उद्धार के लिए किया था. रावण ने सीता का अपहरण करने के बाद उन्हें अशोक वाटिका में रखा, जहां किसी भी नर-नारी, पशु-पक्षी, जानवर या राक्षस को जाने की अनुमति नहीं थी. ये सीता माता के प्रति उसकी सम्मान की भावना ही थी.

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