यूनिफार्म सिविल कोड पर यूपी भाजपा को मिला 14 बिंदु का एजेंडा, जानिए आगे की रणनीति
मोदी सरकार शुरू से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड की समर्थक रही है. यह हमेशा से भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में रहा है. भाजपा का शुरू से ही मानना रहा है कि देश में समान कानून होना चाहिए और सबको समान रूप से आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए.
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Published : Jun 22, 2023, 6:03 PM IST
यूनिफार्म सिविल कोड पर यूपी भाजपा को मिला 14 बिंदु का एजेंडा. देखें खबर
लखनऊ : यूनिफार्म सिविल कोड पर यूपी भाजपा को केंद्र से 14 बिंदु का एजेंडा मिला है. जिसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड से जुड़ी महत्वपूर्ण बिंदु बताए गए हैं. आम लोगों और मीडिया के बीच में किस तरह से यूनिफॉर्म सिविल कोड का माहौल बनाना है यह 14 बिंदु के एजेंडे में समझाया गया है. भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं को हार्ड कॉपी, सॉफ्ट कॉपी के तौर पर एजेंडा दे दिया गया है. इसी आधार पर अगले महीने भाजपा का समान नागरिक सहिंता को लेकर अभियान चल रहा है.
यूनिफार्म सिविल कोड पर भाजपा की सियासत.
देश में कहां-कहां लागू है सिविल कोड
गोवा और पुडुचेरी में समान नागरिक संहिता लागू है. गोवा में वर्ष 1961 से समान नागरिक संहिता लागू है. जिसमें समय के साथ बदलाव भी किए गए. वर्ष 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में पुर्तगाल सिविल कोड 1867 को लागू करने का प्रावधान किया. जिसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई है. पिछले विधान सभा के पूर्व उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लगाने का वादा किया था. उत्तराखंड में भाजपा सरकार के गठन के पश्चात इसके लिए कमिटी बनाई गई. गुजरात ने भी इस पर कमिटी गठित की है. उत्तर प्रदेश में भी यूसीसी लागू करने को लेकर गहन विचार विमर्श किया जा रहा है.
यूनिफार्म सिविल कोड पर भाजपा की सियासत.
पिछले विधि आयोग ने 2016 में इस मुद्दे पर गहन विचार विमर्श प्रक्रिया शुरू की थी. 21वें विधि आयोग ने 2018 मार्च में जनता के साथ विमर्श के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि फिलहाल समान नागरिक संहिता यानी कॉमन सिविल कोड की जरूरत देश को नहीं है, लेकिन पारिवारिक कानून यानी फैमिली लॉ में सुधार की बात जरूर की थी. 22वें विधि आयोग को हाल ही में तीन साल का विस्तार मिला है. आयोग ने अपने बयान में कहा है कि पिछले परामर्श को जारी होने की तारीख से तीन साल से अधिक समय बीत चुका है. इस विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए तमाम अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए विधि आयोग ने इस मुद्दे पर नए सिरे से विचार-विमर्श करना उचित समझा.
यूनिफार्म सिविल कोड पर भाजपा की सियासत.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार UCC से संबंधित दाखिल याचिकाओं पर हलफनामा नरेन्द्र मोदी सरकार ने 18 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में समान नागरिक संहिता मामले पर एक हलफनामा दाखिल कर इसके इसके समर्थन में कई दलीलें पेश की थीं. तर्क दिया था कि अलग-अलग कानून देश की एकता का अपमान करते हैं. केन्द्र सरकार ने कहा कि संविधान में दिए गए नीति निर्देशक सिद्धांत किसी भी राज्य को इस बात के लिए बाध्य करते हैं कि सभी नागरिकों को बराबर कानूनी हक मिले. संविधान का अनुच्छेद 44 भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूत करने की बात कहता है और ऐसे में अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ भारत के लोग अपने अधिकारों का प्रयोग करते हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि कोर्ट संसद को कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती है. यह सरकार का नीतिगत निर्णय होता है.
यूनिफार्म सिविल कोड पर भाजपा की सियासत.
लोक सभा में UCC को लेकर प्रश्न
UCC को लागू करने को लेकर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने चार फरवरी 2022 को लोकसभा में सवाल पूछा था. तत्कालीन कानून मंत्री किरण रिजिजू ने दिसंबर 2022 में राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा था कि समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार दिया गया है.
भाजपा सरकार ने 2016 में यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले को 21वें विधि आयोग के पास भेजा था
किरण रिजिजू ने 04 फरवरी 2022 को कहा था कि UCC में शामिल विषय वस्तु के महत्व और संवेदनशीलता को देखते हुए और विभिन्न समुदायों को शासित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के प्रावधानों के गहन अध्ययन की आवश्यकता को देखते हुए, भारत के 21वें विधि आयोग में यूसीसी से संबंधित मुद्दों की जांच करने और सिफारिशें करने का प्रस्ताव भेजा गया था. 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया. इस मामले को भारत के 22वें विधि आयोग द्वारा उठाया जा सकता है.
अदालतों द्वारा इस संदर्भ में प्रयास
• शाह बानो ट्रिपल तलाक प्रकरण में उनका भरण-पोषण के लिए खर्चे के लिए दायर याचिका पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "दुख की बात है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 44 एक मृत पत्र बना हुआ है. एक समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी कानूनों के प्रति असमानता वाली निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण के उद्देश्य को पूरा करने में मदद करेगी."
• द्विविवाह में प्रसिद्ध केस सरला मुद्गल के फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता नहीं लाने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के रवैये पर निराशा व्यक्त की था.
• पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1954 में संसद में हिंदू कोड बिल लाया था. जिसके तहत हिंदू (बौद्ध, सिख, जैन आदि) के सिविल कानूनों को निर्धारित किया गया था.
• वर्ष 1985, 1995 के बाद 23 जुलाई 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्तिगत मामले में निर्णय देते हुए स्पष्ट कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 की भावना का सम्मान करते हुए सम्पूर्ण देश में एक समान नागिरक संहिता लागू की जानी चाहिए.
• भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता समीर सिंह ने बताया कि निश्चित तौर पर कॉमन सिविल कोड हमारा हमेशा से एजेंडा रहा है. देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान हम कभी नहीं सहेंगे. इसलिए भारतीय जनता पार्टी का उद्देश्य यही है कि हम कॉमन सिविल कोड को लागू करें.