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फिरंगी महल में आयोजित दो दिवसीय उर्स संपन्न : मुफ्ती अबुल इरफान ने पेश की तकरीर

मुफ्ती आजम शाह अबुल कासिम मोहम्मद अतीक मियां कुदस सर्रहू के उर्स के सिलसिले में फिरंगी महल में दो दिवसीय उर्स का आयोजन किया गया. उर्स के समापन मौके पर हजरत पीर-ए-तरीकत मुफ्ती अबुल इरफान मोहम्मद नईमुल हलीम, हन्फी कादरी रज़्ज़ाक़ी फिरंगी महली ने अपनी बसीरत अफ़रोज़ तकरीर पेश की.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 25, 2023, 8:29 PM IST

लखनऊ : आस्ताना-ए-हमीदिया फिरंगी महल में मुफ्ती आजम शाह अबुल कासिम मोहम्मद अतीक मियां कुदस सर्रहू के उर्स के सिलसिले में दूसरी नशिस्त साढ़े आठ बजे हुई. जिसका आगाज हजरत पीर-ए-तरीकत मुफ्ती अबुल इरफान मोहम्मद नईमुल हलीम हन्फी कादरी रज़्ज़ाकी फिरंगी महली ने अपनी बसीरत अफ़रोज़ तकरीर से किया. उन्होंने बताया कि आज ही के दिन 28 मई 1977 में आठ जमादि उस्सानी को पीर-ओ-मुर्शिद और वालिद उस्ताद अतीक मियां कुदस सर्रहू फिरंगी महली की तजहीज व तकफीन हुई. जनाजा की दो जगह नमाज होने के बाद बाग मौलवी अनवार रकाबगंज लखनऊ में अपने वालिद हजरत अल्लामा शेख अबुल हमीद फिरंगी महली के पहलू में दफन हुए जो कि उस्ताज हिन्द शेख मुल्ला निज़ामुद्दीन बानी दर्से निजामी कुदस सर्रहू की पांचवी पुश्त में उनके सज्जादानशीन थे आप इदारा ए शर‌इया फिरंगी महल के संस्थापक, जुलूस ए मोहम्मदी लखनऊ के संस्थापक, मदरसा आलिया कदीमा फिरंगी महल के संस्थापक, फिरंगी महल का कदीम कुतुब खाना जिसमें लगभग 6000 दीनी बेशकीमती मेनू स्क्रिप्ट भी सम्मिलित हैं.

उर्स समापन के मौके पर मजलिश का आयोजन.

मुफ्ती इरफान मियां साहब ने फरमाया कि आप एक अजीम आलिम, फाजिल, कामिल, कारी, हाफिज व मुफ्ती थे. आपने तकरीबन 40 दिनी वा इल्मी किताबें लिखीं. जिससे लोग आज भी फैंज़याब हो रहे हैं. लिहाजा उनके रुहानी तसकीन के लिए इस वक्त जिक्रे इलाही व जिक्रे रसूल व अस्हाबे किराम करके अपने लिए भी जखीरा आखिरत बनाने के लिए थोड़ी कोशिश कर लें.

मुफ्ती इरफान मियां साहब ने फरमाया कि एक मोमिन की जिन्दगी उस शरियत का आईनादार होती है. जिंदगी जिंक्रे खुदा का नाम है. मुर्दा दिल दुनिया में डूबा शख्स है और खासतौर से औलिया अल्लाह और ओलेमा रब्बानी तो अपनी जिंदगी का कोई पहलू गफलतों में नहीं गुजारा करते थे और इल्म के हुसूल के बाद अमल आवरी और बकद्रे जरूरत दुनियादारी में करते थे मुफ्ती साहब ने फरमाया कि आज दुनिया तालीमे रसूल से गाफिल होकर आखिरत की जन्नत के बजाए दुनिया के फानी जन्नत, फानी जिंदगी बनाने में लगी है और वह कहती है कि जिंदगी जिंदा दिली का नाम है. मुर्दा दिल खाक जिया करते हैं और नबी की तालीमात में हैं कि बहुत ज्यादा मत हंसो कि दिल पत्थर हो जाएं. हकीकत कुबूल करे और खुदा के खौफ में आंसू बहाव ताकि दिल नरम पड़े और हकीकत आखिरत जाने की तैयारी करें और अपनी कब्रों को अज़ाब का घड़ा न बनाकर जन्नत नमूना बनाने की कोशिश करें.


मुफ्ती अबुल इरफान मियां फिरंगी महली साहब ने फरमाया कि औलिया अल्लाह की जिन्दगी नमूना है कि असल खाना आखिरत की तैयारी जिसमें दुनियादारी नमक की तरह होती है. जबकि आज की जिंदगी में उल्टी गंगा बहाई जा रही है. गुनाहों और जुल्मो सितम खून रेजी व जफाकारी की वजह से हर तरफ त्राहि त्राहि मची हुई है. जिसको जितना मिल रहा है उसकी हवस खुद अपने व दूसरे के लिए अजाब बनी हुइ है. अल्लाह तआला हम सबको हिदायत व तौफीक से सरफराज फरमाए. आखिर में नमाजे नाफिला की अदायकी के बाद मुफ्ती साहब ने कसीदाबुर्दा शरीफ नहीफ आवाज में पढ़ा और सबके आखिर में कुरान की आयते पढ़ी गई और हुजूर से लेकर आखिर तक सबको ईसाले सवाब हुआ. मुफ्ती साहब की दुआ हुई दरमियान में अस्माए इलाहिया सूरत अलम नशरह व इन्ना अतैनाकल कौसर व कुल हुअल्लाह की कसरत के अलावा दूसरे खानदानी वज़ाएफ नाएब सज्जादा छोटे साहबज़ादे मौलाना अफ्फान अतीक मियां फिरंगी महली ने पूरे कराए.



आखिरी महफिल बाद नमाज मगरिब दरगाह निजामिया बाग मौलवी अनवार रकाबगंज लखनऊ में हुई. जिसमें मुफ्ती इरफान मियां की तिलावत से आगाज हुआ और आप ही की दुआ के शयूख व असातजा, औलाद अहफा मुरीदैन व मुतअल्लिकीन को ईसाले सवाब पहुंचाया गया. खासतौर से अपने बड़े भाई मुफ्ती हबीबुल हलीम साहब और उनके बेटे उस्मान सल्लमहू के अलावा अपने छोटे भाई सलमान मियां मरहूम के लिए भी खुसूसी दुआ, मुल्क सीमा मिल्लत की तरक्की और हिफाजत के लिए भी दुआ की गई. आखिर में मौलाना अफ्फान अतीक फिरंगी महली नाएब सज्जादानशीन फिरंगी महल ने हाजरीन का शुक्रिया अदा किया.

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