लखनऊ : आस्ताना-ए-हमीदिया फिरंगी महल में मुफ्ती आजम शाह अबुल कासिम मोहम्मद अतीक मियां कुदस सर्रहू के उर्स के सिलसिले में दूसरी नशिस्त साढ़े आठ बजे हुई. जिसका आगाज हजरत पीर-ए-तरीकत मुफ्ती अबुल इरफान मोहम्मद नईमुल हलीम हन्फी कादरी रज़्ज़ाकी फिरंगी महली ने अपनी बसीरत अफ़रोज़ तकरीर से किया. उन्होंने बताया कि आज ही के दिन 28 मई 1977 में आठ जमादि उस्सानी को पीर-ओ-मुर्शिद और वालिद उस्ताद अतीक मियां कुदस सर्रहू फिरंगी महली की तजहीज व तकफीन हुई. जनाजा की दो जगह नमाज होने के बाद बाग मौलवी अनवार रकाबगंज लखनऊ में अपने वालिद हजरत अल्लामा शेख अबुल हमीद फिरंगी महली के पहलू में दफन हुए जो कि उस्ताज हिन्द शेख मुल्ला निज़ामुद्दीन बानी दर्से निजामी कुदस सर्रहू की पांचवी पुश्त में उनके सज्जादानशीन थे आप इदारा ए शरइया फिरंगी महल के संस्थापक, जुलूस ए मोहम्मदी लखनऊ के संस्थापक, मदरसा आलिया कदीमा फिरंगी महल के संस्थापक, फिरंगी महल का कदीम कुतुब खाना जिसमें लगभग 6000 दीनी बेशकीमती मेनू स्क्रिप्ट भी सम्मिलित हैं.
मुफ्ती इरफान मियां साहब ने फरमाया कि आप एक अजीम आलिम, फाजिल, कामिल, कारी, हाफिज व मुफ्ती थे. आपने तकरीबन 40 दिनी वा इल्मी किताबें लिखीं. जिससे लोग आज भी फैंज़याब हो रहे हैं. लिहाजा उनके रुहानी तसकीन के लिए इस वक्त जिक्रे इलाही व जिक्रे रसूल व अस्हाबे किराम करके अपने लिए भी जखीरा आखिरत बनाने के लिए थोड़ी कोशिश कर लें.
मुफ्ती इरफान मियां साहब ने फरमाया कि एक मोमिन की जिन्दगी उस शरियत का आईनादार होती है. जिंदगी जिंक्रे खुदा का नाम है. मुर्दा दिल दुनिया में डूबा शख्स है और खासतौर से औलिया अल्लाह और ओलेमा रब्बानी तो अपनी जिंदगी का कोई पहलू गफलतों में नहीं गुजारा करते थे और इल्म के हुसूल के बाद अमल आवरी और बकद्रे जरूरत दुनियादारी में करते थे मुफ्ती साहब ने फरमाया कि आज दुनिया तालीमे रसूल से गाफिल होकर आखिरत की जन्नत के बजाए दुनिया के फानी जन्नत, फानी जिंदगी बनाने में लगी है और वह कहती है कि जिंदगी जिंदा दिली का नाम है. मुर्दा दिल खाक जिया करते हैं और नबी की तालीमात में हैं कि बहुत ज्यादा मत हंसो कि दिल पत्थर हो जाएं. हकीकत कुबूल करे और खुदा के खौफ में आंसू बहाव ताकि दिल नरम पड़े और हकीकत आखिरत जाने की तैयारी करें और अपनी कब्रों को अज़ाब का घड़ा न बनाकर जन्नत नमूना बनाने की कोशिश करें.