लखनऊ:लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी शुक्रवार को संपन्न हुई. संगोष्ठी के अंतिम दिन कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर गंगाधर पंडा एवं शिल्पकार्न यूनिवर्सिटी बैंकॉक के संस्कृत अध्ययन केंद्र के निर्देशक डॉ. सोम्बत् मांगमीसुखश्री विशिष्ट वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए. संगोष्ठी का संचालन डॉ. अशोक कुमार शतपथी एवं संयोजक डॉ. प्रयाग नारायण मिश्र ने किया.
सभा के प्रारंभ में आयोजक पद्मश्री प्रोफेसर बृजेश कुमार शुक्ला ने ज्योतिर्विज्ञान की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ग्रहों की कक्षा में चतुर्थ कक्षा के ग्रह के नाम पर उस दिन का नामकरण किया जाता है. अतः आज शुक्रवार ही क्यों है, इसका वैज्ञानिक कारण कालहोरा के सिद्धांत के रूप में ज्योतिष में बताया गया है. राहु को पृथ्वी की छाया मानने का सिद्धांत भास्कराचार्य ने बताया है. भास्कराचार्य ने लीलावती में पाई के स्थूल तथा सूक्ष्म मान पर प्रकाश डाला है
प्रोफेसर बृजेश कुमार शुक्ला ने बताया कि बृहत्संहिता के भूगर्भ विज्ञान के सूत्र विद्यमान है. अनेक जलशिराओं का वर्णन प्रयोग सिद्ध है. परीक्षण नलिका (टेस्ट ट्यूब) से शिशु उत्पादन की विधि भी संस्कृत वाङ्मय में बताया गया है. वसन्तराज शकुन ग्रंथ में पशु-पक्षियों की चेष्टाओं का वर्णन है. चरक संहिता में वनस्पतियों तथा वृक्षों का स्वरूप लक्षण तथा स्वास्थ्य चिकित्सा में उनका उपयोग वर्णित है. भवन निर्माण, मंदिर निर्माण तथा विमान शास्त्र का वैज्ञानिक निरूपण संस्कृत वाङ्मय में निरूपित है.