ट्राइबल म्यूजियम के बारे में जानकारी देतीं आर्किटेक्चर कालेज की प्राचार्य व डीन प्रो. वंदना सहगल.
लखनऊ : मध्य प्रदेश की श्यामला हिल्स पर बने जनजातीय संग्रहालय की तर्ज पर लखनऊ में प्रदेश का पहला ट्राइबल म्यूजियम बनेगा. केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय की सहयोग से प्रस्तावित म्यूजियम के अंदर जनजातीय समुदाय के हर परिदृश्य समाहित रहेंगे. इस म्यूजियम में मौजूदा जनजातियों के अलावा विलुप्त हो चुकी जनजातियों की संस्कृति उनके रहन-सहन खानपान रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हुए चीजों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व डिजिटल तकनीक की सहायता से जीवंत किया जाएगा. जिससे यहां आने वाले लोग जनजातीय संसार के वास्तविक जीवन से परिचित हो सकें.
यूपी में निवास करने वाली कुछ जनजातियां. लखनऊ में बनेगा प्रदेश का पहला ट्राइबल म्यूजियम.
20 करोड़ के करीब का प्रस्ताव शासन को भेजा : इस म्यूजियम के लिए पर्यटन विभाग के सहयोग से चंद्रिका देवी मंदिर के पास तकरीबन दो एकड़ जमीन चिन्हित की गई है और इसे साकार करने की जिम्मेदारी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग को सौंपी गई है. जिम्मेदारी मिलने के बाद काॅलेज की तरफ से तकरीबन 20 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कर शासन को अनुमोदन के लिए भेजा गया है. संग्रहालय के निर्माण को लेकर आर्किटेक्चर काॅलेज की प्राचार्य व डीन प्रो. वंदना सहगल का कहना है कि संग्रहालय में थ्री डी बेस पर तैयार करने की योजना है. जिससे संग्रहालय परिसर में प्रवेश करने के बाद दर्शक जनजातीय और उनके प्रतीकों से रूबरू हो सकें.
लखनऊ में बनेगा प्रदेश का पहला ट्राइबल म्यूजियम. लखनऊ में बनेगा प्रदेश का पहला ट्राइबल म्यूजियम.
थारू व अन्य 18 जनजातियों से जुड़ी चीजें संग्रहालय में रखी जाएंगी :प्रो. वंदना सहगल ने बताया कि इस म्यूजियम में उत्तर प्रदेश के मौजूदा सभी जनजातियों के बारे में बताने के साथ ही उनके देवी-देवता और पूजा-पाठ की शैली, रहन-सहन, पहनावा, तीज-त्यौहार, जन्म-मृत्यु, विवाह संस्कार से जुड़ी उनकी संस्कृति आदि को दर्शाया जाएगा. प्रदेश की थारू व अन्य 18 जनजातियों से जुड़ी चीजें संग्रहालय में रखी जाएंगी. संग्रहालय को खूबसूरत तरीके से सजाया जाएगा. आदिवासी कलाकृतियों की खूबसूरती को लेकर आधुनिक लाइटों का प्रयोग किया जाएगा. संग्रहालय में एक ओर प्राकृतिक उपादानों मसलन पुआल, पत्ते, पत्थर, मिट्टी, बांस, लकड़ी, लोहा, सूखे वृक्षों-टहनियों आदि का उपयोग किया जाएगा. दूसरी ओर आधुनिक औजारों, तकनीक, दृश्य-श्रव्य माध्यमों, प्रकाश संयोजन आदि का भी इस्तेमाल किया जाएगा. इसके अलावा संग्रहालय में समय-समय पर कार्यशालाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि भी आयोजित किए जाएंगे.
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