लखनऊ: प्रदेश में सड़क दुर्घटनाएं रोकने में नााकाम 'रोड सेफ्टी सेल' अब गूगल की शरण में पहुंच गया है. चौराहों की इंजीनियरिंग सुधार कर हादसे रोकने के बजाय अब लोगों को गूगल के माध्यम से ब्लैक स्पॉट की जानकारी करनी होगी. जनता को ऐसे खतरनाक रास्तों से खुद ही सुरक्षित निकलना होगा. प्रदेश भर के ब्लैक स्पॉट की टैगिंग किए जाने की कवायद शुरू हो गई है. इसके लिए एक एजेंसी को जिम्मेदारी सौंपी गई है.
एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल पल्ला झाड़ रहे विभाग
विभागीय अधिकारियों के अनुसार टैगिंग सिर्फ इसलिए कराई जा रही है, जिससे यह पता चला सके कि ब्लैक स्पॉट वाली वह जगह किस विभाग के हिस्से में आती है, जिससे वह विभाग उसे ठीक कराएं. आलम यह है कि पिछले छह सालों में अब तक यही तय नहीं हो सका है कि जिन जगहों पर दुर्घटनाएं अधिक हो रही हैं, उस रोड का निर्माण कार्य किसने करवाया है. अब यह काम गूगल को दिया गया है. वह ब्लैक स्पॉट की टैगिंग कर यह भी बताएगा कि इस सड़क का निर्माण और मेंटेनेंस किसके हवाले है. ऐसे में उस क्षेत्र में आने वाले ब्लैक स्पॉट्स को ठीक करने की जिम्मेदारी तय हो सकेगी.
ब्लैक स्पॉट की जानकारी देगा गूगल
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक यह काम पूरा होने के बाद गूगल से यह भी करार किया जाएगा कि रोड पर चलने वालों को मोबाइल के माध्यम से ब्लैक स्पॉट के बारे में एलर्ट किया जा सके. जैसे गूगल पर रोड देखते हुए जाने वाला व्यक्ति जैसे ही ब्लैक स्पॉट के इर्द-गिर्द पहुंचेगा वैसे ही मोबाइल ड्राइवर को सावधान कर देगा कि आप दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र में चल रहे हैं.
ब्लैक स्पॉट की संख्या बढ़ी
सड़क सुरक्षा सेल से जुड़े परिवहन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार पिछले तीन सालों में प्रदेश में ब्लैक स्पॉट्स की संख्या 1,057 से बढ़कर 1,200 से ऊपर पहुंच गई है. लखनऊ में ब्लैक स्पॉट्स 67 हो गए हैं. दुर्घटनाएं न हों इसे लेकर परिवहन विभाग ने दुर्घटना बहुल्य क्षेत्रों में साइन बोर्ड भी लगवाएं हैं.