लखनऊ :प्रदेश में चुनावी बिगुल बजने के बाद दल-बदल का सिलसिला लगातार जारी है. आज यानी मंगलवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने पाला बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया. आरपीएन सिंह का शुमार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दबदबे वाले नेताओं में किया जाता है. इधर लंबे अर्से से प्रचार अभियान से दूर बसपा प्रमुख मायावती ने आखिरकार रैली करने की घोषणा कर दी है. मायावती के चुनाव प्रचार अभियान में न उतरने को लेकर प्रायः सवाल किए जाते रहे हैं. दूसरी ओर एक बार फिर समाजवादी पार्टी में असंतोष देखने को मिला. टिकट न मिलने से नाराज कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया. आइए इन खबरों के विषय में विस्तार से जानते हैं....
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति में सुधार न होता देख पार्टी के बड़े नेता एक-एक कर सुरक्षित ठिकाना तलाश रहे हैं. इसी कड़ी में पूर्वांचल के कुशीनगर जिले से आने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता आरपीएन सिंह का नाम भी जुड़ गया. उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है. इससे पहले जितिन प्रसाद, ललितेश पति त्रिपाठी और इमरान मसूद ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था. प्रदेश में लगभग तीन दशक से कांग्रेस सत्ता से बाहर है. तमाम नेताओं को नहीं लगता कि प्रदेश में फिलहाल कांग्रेस की हालत में कोई सुधार हो सकता है. दिल्ली में बैठ कर राहुल और प्रियंका उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को चमकाने का सपना तो देखते हैं, पर जमीनी स्तर पर संगठन नदारद है. ऐसे में सपनों का मूर्तरूप ले पाना असंभव सा है. यही कारण है कि यह नेता पाला बदल कर अपना भविष्य सुरक्षित कर रहे हैं. पडरौना राजपरिवार से आने वाले आरपीएन सिंह का कुशीनगर और आसपास खासा प्रभाव माना जाता है. वह ओबीसी जाति से आते हैं. भाजपा को लगता है कि वह पार्टी के लिए लाभकारी साबित होंगे. दूसरी ओर पांच साल मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य जो अब सपा में चले गए हैं, के सामने आरपीएन सिंह के रूप में एक चुनौती भी होगी. भाजपा स्वामी को पराजित कर एक संदेश भी देना चाहती है.
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बसपा प्रमुख मायावती ने लंबे समय बाद जनसभा करने का एलान किया है. दरअसल मायावती के चुनावी मैदान से लंबे समय से गायब रहने को लेकर सवाल उठने लगे थे. वैसे भी बहुजन समाज पार्टी पूरे पांच साल जनता के मुद्दों को उठाने के मामले भी हाशिए पर रही है. पार्टी की ओर से विज्ञप्तियां और प्रेस कॉन्फ्रेंस ही हुईं. ऐसे में जनता में भी पार्टी की वह स्वीकार्यता नहीं रही. शायद इस बात का एहसास मायावती को भी है. यही कारण है कि उन्होंने रैली करने की बात कही है. दूसरी ओर पार्टी के तमाम कद्दावर नेता पलायन कर चुके हैं. सतीश मिश्रा का नाम छोड़ दें, तो पार्टी में बड़े नेताओं का टोटा ही दिखाई देता है. ऐसे में मायावती के सामने खुद ही कमान संभालने की चुनौती भी है. अब देखना होगा कि मायावती कितनी सक्रियता दिखा पाती है और पार्टी इस चुनाव में कहां पहुंच पाएगी.