लखनऊ :आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने गोरखपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा की है. वहीं भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के साढ़ू और बिधूना से पूर्व विधायक प्रमोद गुप्ता को पार्टी में शामिल कराया. इम सबके बीच सपा मुखिया अखिलेश यादव ने पुरानी पेंशन बहाली के साथ ही मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की. उन्होंने जेल में बंद पूर्व मंत्री आजम खान और उनके पुत्र अब्दुल्ला को टिकट देने की घोषणा की. इस बीच कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी कर दी है. इन खबरों के क्या मायने हैं? आइए विस्तार से जानते हैं....
समाजवादी पार्टी से गठबंधन में नाकाम रहे आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर द्वारा योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने की घोषणा दरअसल कहीं न कहीं अपना वजूद बचाने की कोशिश और चर्चा में बने रहने का प्रयास भर मानी जा रही है. चंद्रशेखर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं और पश्चिम के ही कुछ जिलों में उनका प्रभाव है. पूर्वांचल में उनका कोई प्रभाव और आधार नहीं है. ऐसे में गोरखपुर से चुनाव लड़कर उन्हें मीडिया कवरेज तो मिलेगा, लेकिन वह इससे अधिक कुछ हासिल कर पाएंगे इस पर संदेह है. वहीं यह भी माना जा रहा है कि चंद्रशेखर अलग चुनाव लड़कर कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे. स्वाभाविक है कि यह भाजपा के लिए फायदे की बात हैं.
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ने का एलान करके सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है. गौरतलब है कि योगी के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद भाजपा लगातार अखिलेश को मैदान में उतरने की चुनौती दे रही थी. करहल सीट ही नहीं मैनपुरी व आसपास के जिले सपा का गढ़ माने जाते हैं. ऐसे में चुनाव लड़ने के लिए अखिलेश यादव ने सुरक्षित सीट ही चुनी है. हां, यह जरूर है कि उनके मैदान में उतरने से आसपास के जिलों की सीटों पर पार्टी को लाभ होगा. यही नहीं अखिलेश ने जेल में बंद पूर्व मंत्री आजम खान और उनके पुत्र अब्दुल्ला को टिकट देकर मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने का बड़ा दांव चला है. दरअसल रामपुर व आसपास के जिलों में मुस्लिमों की बड़ी तादाद है और इस समुदाय का मानना है कि पिछले पांच सालों में आजम खान के साथ ज्यादती हुई है. स्वाभाविक है कि सपा को लगता है कि यह सहानुभूति वोट बनकर पार्टी की झोली में आएगी. यही नहीं सपा ने पुरानी पेंशन बहाली के बहाने लगभग पंद्रह लाख राज्य कर्मचारियों को रिझाने की कोशिश की है. कर्मचारी काफी समय से पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर रहे हैं. यह वादा सपा को फायदा जरूर दिला सकता है.
अब बात भारतीय जनता पार्टी की. गुरुवार को भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के साढ़ू और बिधूना से पूर्व विधायक प्रमोद गुप्ता को पार्टी में शामिल कराया. इससे एक दिन पहले ही मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने भाजपा का दामन थामा था. दरअसल भाजपा स्वामी प्रसाद मौर्य सहित अन्य नेताओं के सपा में जाने की भरपाई करना चाहती है. उसे लगता है कि सपा कुनबे के कुछ नेता उसके साथ जुड़े तो परिवार में फूट बताने से उसे राजनीतिक लाभ मिलेगा. हालांकि भाजपा की इन कोशिशों को अखिलेश यादव ने परिवार तोड़ने वाली राजनीति बताया है. सपा कुनबे से आकर भाजपा में शामिल हुए दोनों नेताओं का कोई जनाधार नहीं है. न ही इनकी सपा को कोई पूछ हो रही है. फिर भी भाजपा को मनोवैज्ञानिक लाभ तो मिलेगा ही. हालांकि यह देखना होगा कि दोनों नेता भाजपा में कितने दिन रहते हैं. क्योंकि भाजपा बड़ी पार्टी है और यहां इन नेताओं को बहुत तवज्जो मिले यह कह पाना कठिन है.