लखनऊ: कोरोना संकट के बीच उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दल विधानसभा चुनावों को लेकर अपने-अपने तरीके से रणनीति बनाने में जुटे हैं. मंगलवार को जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष तौकीर रजा के बयान राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने रहे. वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव 300 यूनिट निशुल्क बिजली की घोषणा करते हुए इसे लोगों के बीच ले जाने की घोषणा की. दूसरी ओर दलित वोटों को लेकर भी प्रदेश में खूब राजनीति गरमाई. आइए जानते हैं इन खबरों के क्या हैं मायने...
पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती अपने बयान को लेकर उत्तर प्रदेश में आज सुर्खियों में रहीं. उन्होंने कहा 'सत्तर साल पहले देश अंग्रेजों से आजाद हुआ था. आज हमारे पास मौका है बीजेपी से जान छुड़ाने का. यह आजादी उससे भी बड़ी आजादी होगी.' वहीं इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष तौकीर रजा के बयान पर भाजपा ने कांग्रेस को घेरा. उन्होंने मुस्लिम धर्म संसद बुलाकर कहा था 'मुझे डर लगता है उस वक्त से जिस दिन ये कानून अपने हाथ में लेने पर मजबूर हो जाएंगे. और जिस दिन उन्होंने कानून अपने हाथ में ले लिया मुल्क में खाना जंगी होगी, गृहयुद्ध होगा और मैं गृहयुद्ध अपने देश में किसी भी हाल में नहीं होने देना चाहता.' दरअसल तौकीर रजा ने हाल ही में कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया है. भारतीय जनता पार्टी आज दोनों नेताओं को लेकर मुखर रही. भाजपा नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दोनों नेताओं को घेरा महबूबा के बयान पर भाजपा ने कहा कि यह विघटनकारी ताकतों की बौखलाहट है. वहीं गृह युद्ध की धमकी देने वाले तौकीर रजा से गठबंधन को लेकर कांग्रेस को आड़े हाथों लिया. दरअसल, भाजपा को ऐसे मुद्दे चुनावों में फायदा पहुंचाने वाले लगते हैं. एक ओर जहां प्रदेश में महबूबा की छवि कट्टर और पाकिस्तान परस्त नेता की है, वहीं तौकीर रजा का बयान ध्रुवीकरण में भाजपा को लाभ दे सकता है. यही कारण है कि इन दोनों को लेकर भाजपा ने जोरशोर से अपना विरोध जताया. कट्टरता वाले संप्रदायिक बयान भाजपा को पहले भी लाभ पहुंचाते रहे हैं. महबूबा मुफ्ती का भाजपा के खिलाफ बयान भी ध्रुवीकरण को हवा देकर भाजपा को लाभ पहुंचा सकता है.
अब बात दलित वोटों पर सियासत की करते हैं. समाजवादी पार्टी से गठबंधन में नाकाम आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर ने प्रदेश की 33 विधान सभा सीटों पर प्रत्याशी उतारने का एलान किया है. इनमें ज्यादातर सीटें सुरक्षित हैं. उन्होंने अखिलेश यादव पर धोखा देने का आरोप भी लगाया. दूसरी ओर भाजपा का दलित चेहरा और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने सपा अध्यक्ष पर आतंकियों और अपराधियों के साथ खड़े होने का आरोप लगाया. दरअसल चंद्रशेखर पश्चिमी उप्र में युवा दलितों का लोकप्रिय चेहरा बन चुके हैं. वह सपा से अपनी पार्टी के लिए आठ सीटें मांग रहे थे, लेकिन बात नहीं बनी. इसलिए उन्होंने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है. समाजवादी पार्टी को भले ही लगता हो कि उन्हें इससे कोई नुकसान नहीं है, लेकिन वह बड़े लाभ से भी चूक गए हैं. कुछ सीटों पर हजार-दो हजार मत भी निर्णायक हो सकते हैं. यदि सपा कुछ सीटें कम अंतर से हारती है, तो उसे बाद में इस निर्णय पर पछताना होगा. बृजलाल ने भी अखिलेश को गुंडों का हिमायती बताकर भाजपा के लिए दलित मत साधने का प्रयास किया है.
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समाजवादी पार्टी ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली के लिए कल यानी बुधवार से रजिस्ट्रेशन कराने की बात कही है. इसके लिए सपा कार्यकर्ता जनसंपर्क करेंगे. दरअसल, सपा को लगता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार की तरह 'मुफ्त की घोषणाओं' से वह भी उत्तर प्रदेश की सत्ता में आ सकती है. जिसके बाद अखिलेश ने यह बड़ा दांव चला है. हालांकि प्रदेश की राजनीति में अब तक जातीय समीकरण अन्य घोषणाओं पर भारी पड़े हैं.