लखनऊः उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में विभिन्न छोटे दलों ने साथ मिलकर तीसरा मोर्चा गठित कर जनता के सामने एक विकल्प बनने का प्रयास तो किया लेकिन इसमें मजबूत थर्ड फ्रंट बनकर कोई भी सामने नहीं आ पाया. छोटे दलों के बड़े नेताओं के साथ आने से पहले ही बिखराव हो गया और बड़ा थर्ड फ्रंट बनने से पहले ही बिखर गया. ऐसे में सवाल उठ रहा है सियासी रणभूमि में ये क्या गुल खिला पाएंगे.
दरअसल, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले थर्ड फ्रंट बनने की कोशिश तो कई सारे नेताओं ने की लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई. सबसे पहले राजभर के नेतृत्व में ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद साथ हैं, लेकिन इनकी आपसी सहमति नहीं बनी और थर्ड फ्रंट बनने की उम्मीद चकनाचूर हो गई. अब मुख्य रूप से दो बड़े नेताओं ने अलग-अलग थर्ड फ्रंट का गठन तो किया है लेकिन यह फ्रंट चुनाव में विकल्प बनकर उभर पाएगा यह कहना मुश्किल है.
आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने थर्ड फ्रंट बनाकर खड़ा किया है. इस मोर्चे में राजभर से दूर हुए एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मुख्य रूप से शामिल है. सामाजिक परिवर्तन मोर्चा नाम के इस फ्रंट में कुल 30 और संगठनों को चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथ जोड़ा है. संगठन की सहमति से ही चंद्रशेखर आजाद ने गोरखपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने उम्मीदवार बनने का फैसला लिया. इस गठबंधन में मुख्य रूप से पीस पार्टी सहित कई अन्य छोटे दल शामिल हैं.
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आजाद समाज पार्टी के नेतृत्व में बने गठबंधन में जो पार्टियां प्रमुख रूप से शामिल हैं, उनमें लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी, आजाद समाज पार्टी, मजदूर किसान यूनियन पार्टी, वंचित समाज इंसाफ पार्टी, अखिल भारतीय गरीब पार्टी, भारतीय वीर दल, न्याय पार्टी, पिछड़ा समाज पार्टी, दिल्ली डेमोक्रेटिक अलायंस, सम्यक पार्टी, सर्वजन लोक शक्ति पार्टी, हरित क्रांति पार्टी,भारतीय सर्वोदय क्रांति पार्टी, राष्ट्रीय कृषक दल, इंडियन नेशनल लीग, राष्ट्रीय जनवादी सोशलिस्ट पार्टी, , वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, न्याय पार्टी, मुस्लिम मजलिस, भारतीय एकता मंच, भारतीय सबका दल, अखिल भारतीय गरीब पार्टी, राष्ट्रीय समाज पार्टी, अखंड समाज पार्टी, राष्ट्रीय उदय पार्टी, किसान दल व गरीब समाज पार्टी शामिल हैं.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में तीसरे मोर्चे के रूप में जन भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने का बीड़ा उठाया था. उन्होंने इस मोर्चे में एआईएमआईएम मुखिया असदुद्दीन ओवैसी, आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद और अन्य छोटे दलों को शामिल करना शुरू किया था, लेकिन उन्हें जैसे ही समाजवादी पार्टी से ग्रीन सिग्नल मिला, जनभागीदारी संकल्प मोर्चा भंग हो गया. राजभर के सपा के साथ जाने के बाद आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम अकेले पड़ गए थे.
इसके बाद ओवैसी और चंद्रशेखर आजाद को समाजवादी पार्टी से जोड़ने के प्रयास भी ओमप्रकाश राजभर ने किए लेकिन यह कवायद भी परवान नहीं चढ़ पाई और आखिरकार ओवैसी और आजाद समाज पार्टी की भी राहें अलग-अलग हो गई आज की तारीख में असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश में बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी के साथ चुनाव मैदान में उतरे हुए हैं. ओवैसी ने बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी और वामन मेश्राम के भारत मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन किया है. इस गठबंधन ने करीब दो दर्जन से अधिक प्रत्याशी भी घोषित कर दिए हैं.
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दो अलग-अलग थर्ड फ्रंट बने हैं. इनमें भले ही कम जनाधार वाले संगठन शामिल हों, लेकिन इन संगठनों के भी अपने-अपने क्षेत्रों में अहमियत है. लिहाजा, कुछ हद तक दोनों थर्ड फ्रंट अपने-अपने क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इनमें पीस पार्टी के पहले दो विधायक भी रह चुके हैं. बाबू सिंह कुशवाहा मायावती सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं तो इन दोनों ही नेताओं का कद ऊंचा है. इसी में अगर आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद को देखें तो फिर दलितों की राजनीति करने वाले आजाद बसपा के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. इससे कुछ हद तक बसपा को भी नुकसान हो सकता है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तीसरे मोर्चे की कवायद क्या कोई गुल खिला पाती है.
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