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कड़ी धूप में निकलना है तो रखें इन बातों का ख्याल, वरना सुंदर त्वचा झुलसने का रहेगा मलाल

गर्मी के दिनों में कड़ी धूप में निकलना कई बार मजबूरी हो जाता है. ऐसे में त्वचा का बचाव करना जरूरी है. वरना जरा सी लापरवाही से त्वचा के कैंसर जैसी भयानक बीमारियों से जूझना पड़ सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार शरीर के लिए धूप काफी अहमियत रखती है, लेकिन धूप की मात्रा और टाइमिंग का काफी ख्याल रखना होता है.

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Published : Apr 28, 2023, 9:18 PM IST

कड़ी धूप में निकलना है तो रखें इन बातों का ख्याल, वरना सुंदर त्वचा झुलसने का रहेगा मलाल.

लखनऊ : चिलचिलाती धूप से हर किसी का हाल बेहाल हो जाता है. ऐसे में हर कोई जानना चाह रहा है कि धूप में अगर आपकी त्वचा टैन हो जाती है तो उसे किस तरह से सही करें. पर्यावरणविद् विपिन श्रीवास्तव का कहना है कि धूप से निकलने वाली किरणें त्वचा के लिए काफी ज्यादा खतरनाक होती हैं. धूप एक सीमित मात्रा में प्राप्त हो तो यह शहद का काम करती हैं, लेकिन अगर अत्यधिक धूप प्राप्त हो तो त्वचा कैंसर भी हो सकता है.

त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. उस्मानी का कहना है कि मौजूदा समय में धूप काफी ज्यादा भयानक हो रही है जो कि सीधे त्वचा को जलाती है. उन्होंने बताया कि गर्मियों में हमेशा अस्पताल की ओपीडी में टैनिंग के केस आते रहते हैं. इसके अलावा सनबर्न के मरीज आते हैं. इसमें मरीज की त्वचा पर छोटे-छोटे काले धब्बे आ जाते हैं और इन छोटे दानों के चारों ओर पीले दाग हो जाते हैं. स्किन ड्राई हो जाती है. पिंपल्स हो जाते हैं और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी वैसे ही इस तरह के केस अस्पताल में बढ़ते जाते हैं. इसको रोकने के लिए दो बहुत महत्वपूर्ण बातें हैं. जिसमें से एक है फोटो प्रोटेक्शन और दूसरा मर्सराइजेशन है. फोटो प्रोटेक्शन बहुत आसान तरीका है.

अगर आपके दिमाग में यह बात है कि मुझे धूप से बचना है या मुझे एलईडी लाइट से बचना है तो सड़क पर जिस ओर छाए हो या फिर पेड़ पौधे लगे हों तो उसकी छाया के सहारे रास्ते पर चलें. सूर्य लाइट के संपर्क में आप न निकलिए. दूसरे आप दुपट्टे का इस्तेमाल कर सकते हैं. तीसरा सूर्य की रोशनी चेहरे पर न पड़ें. इसके लिए आप अपने चेहरे का बचाव कैप से कर सकते हैं. चौथा आप अंब्रेला को फैशन स्टेटमेंट बना सकते हैं और इन चारों चीजों को मिलाकर फोटो प्रोटेक्शन होता है और आखिरी चीज सनस्क्रीन आती हैं. सनस्क्रीन नॉर्थ इंडिया में और सेंट्रल यूपी में एसपीएफ 30 की स्किन होती है वह सफिशिएंट होती हैं, लेकिन सनस्क्रीन लगाने का एक तरीका होता है. बाहर निकलने से 15 से 20 मिनट पहले लगाएंगे तो तब उसका मॉलिक्यूल एडजस्ट करते हैं तब जाकर वह बचाव करता है और ज्यादातर सनस्क्रीन तीन से चार घंटे ही असर करती हैं. अगर आप इससे ज्यादा धूप में है तो आपको दोबारा से सनस्क्रीन लगानी पड़ेगी. पहले चेहरे में जो कुछ भी लगा है. उसको अच्छे से साफ करना होगा उसके बाद सनस्क्रीन अप्लाई करनी चाहिए. इन पांचों तरीकों को मिलाकर के फोटो प्रोटक्शन बनता है. इसमें कोई भी एकलौता तरीका धूप से त्वचा को बचाने कोई लिए कामयाब नहीं होता है.

इन सबके अलावा एक महत्वपूर्ण चीज मर्सराइजेशन भी होती है. त्वचा अगर बहुत ज्यादा ड्राई हो जाती है तो इसके लिए आप पानी अधिक से अधिक पिएं. 5 से 7 लीटर गर्मियों में पानी पीना चाहिए और शाम के समय मर्सराइजर को अच्छे से लगा सकते हैं. ताकि इसके हाइड्रेट हो सके अगर प्राइजेस महंगा पड़ रहे हैं नहीं ले पा रहे हैं तो आप गैलरी में गुलाब जल मिलाकर घरेलू मर्सराइजर बना सकते हैं. जब टैनिंग शुरू होती है तो इसके अंदर कई चीजें मिली होती हैं. एक पॉलीमोरफिक लाइट एरिया जहां चेहरे में जिस तरफ यूनिफार्म नहीं होती है. जहां चेहरे के उभार ज्यादा होते हैं, वहां सूरज की किरणें ज्यादा आ जाती हैं और वह हिस्सा ज्यादा जल जाते हैं तो उसमें काले-काले धब्बे पड़ जाते हैं. इन धब्बों के किनारे रीम ऑफ ब्राइटनेस होती है. कभी-कभी उसमें खुजली होती है और कभी-कभी उसमें महीन महीन दाने भी हो जाते हैं.

झाई और टैनिंग में अंतर : दोनों के बीच में बहुत से टेक्निकल अंतर होते हैं और दोनों ही अलग चीजें हैं. झाई को टेक्निकल भाषा में मेलास्मा कहते हैं और यह मेलास्मा रेगुलर गर्मी के कारण होने वाली टैनिंग से अलग होती है. इसमें बहुत से फैक्टर्स होते हैं जिसकी वजह से बॉडी के जो मीलेनोसाइड होते हैं. जिसकी वजह से बॉडी के जो मीलेनिम बनाने लगते हैं. उन जगहों पर बनाते हैं जो चेहरे के उभार हैं जहां पर ज्यादा लाइट मिल जाती हैं उससे वह एक्साइट हो जाते हैं और फिर वहां पर काले-काले धब्बे पड़ जाते है. मिलाजमा 30 वर्ष से अधिक लोगों को होता है. इससे कम उम्र के लोगों को यह बीमारी नहीं होती है, क्योंकि 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का स्किन बैरियर कमजोर हो जाता है उस वक्त वह मेलास्मा के ज्यादा प्रोन हो जाते हैं. मेलास्मा में चेहरे के जो उधार वाले हिस्से होते हैं जैसे गाल, नाक, माथा और ठुड्डी पर होते हैं. इसके अंदर जो मार्जिंस होती हैं वह स्ट्रेट लाइन में नहीं होती हैं. उसके अंदर बीच-बीच में गड्ढे होते हैं. मेलास्मा को पहचानना जरूरी हो जाता है. टैनिंग से डिफरेंट हो जाता है. टैनिंग कुछ समय के लिए होता है और यह समस्या दूर भी हो जाती है.

हमारे देश में बहुत कम लोग हैं जो विटामिन डी ठीक तरीके से लेते हैं. विटामिन डी ठीक तरीके से लेने का तरीका ही लोगों को नहीं पता होता है. जब भी आप विटामिन डी लेते हैं तो सुबह का समय सबसे अच्छा होता है. जब सूर्य की किरणें निकलती हैं. उस समय शरीर में तेल लगा कर सूर्य की किरणों के सामने बैठना होता है. मौजूदा समय में लोग फुल कपड़े पहनकर बैठे होते हैं. पूरा शरीर ढका होता है. जिस कारण विटामिन डी अच्छी तरह से व्यक्ति को नहीं लग पाता है. पहले के समय में लोग अच्छे से विटामिन डी लेते थे. सुबह के समय उठते थे. शरीर में तेल से मसाज करते थे और धूप में ही लेटा करते थे. जिससे विटामिन डी अच्छी तरह से लगती थी.

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