कला जगत में लखनऊ का अमूल्य योगदान, ये कलाकार भी बढ़ा रहे शहर का मान
लखनऊ की तहजीब और अदब की रवायत दुनिया में मशहूर है. यहां की कला और संस्कृति का भी देश दुनिया में खास मुकाम है. इसके पीछे लखनऊवासियों के साथ ही तमाम कलाकार हैं जो इस परंपरा का कायम रखे हुए हैं.
लखनऊ : जिस तरह लखनऊ की तहजीब और अदब को पूरी दुनिया में सम्मान मिलता है. उसी तरह यहां की कला और संस्कृति का भी अपना अलग मुकाम है. लखनऊ में कला का विकास नवाबों के समय से शुरू हो गया था, लेकिन इसको प्रसिद्धि और महत्व 1911 में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट के बनने के बाद मिला. लखनवी सरजमीं पर ऐसे बहुत से चित्रकार, मूर्तिकार हुए, जिन्होंने अपने काम से इस कला को ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व में पहचान दिलाई. हम आपको ऐसे ही कलाकारों के बारे में बताने जा रहे हैं. जिन्होंने अपने काम के दम पर न सिर्फ लखनऊ का नाम रोशन किया, बल्कि कला जगत को एक से बढ़कर एक कलाकार भी दिए. शहर ने असित कुमार हालदार, बिरेश्वर सेन, मदनलाल नगर, जय नारायण सिंह जैसे कई अनमोल कलाकारों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है. आने वाली पीढ़ी भी कलाकारी के स्तर को और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं.
छापा कला की आकृति.
परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं : धीरज
मूलरूप से इलाहाबाद के रहने वाले और लखनऊ को अपनी कर्मभूमि मानने वाले धीरज यादव कला जगत में दिग्गजों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.
धीरज को ललित कला दिल्ली से स्कॉलरशिप मिली है. इसके साथ ही उनको एक रीजनल सेंटर भी दिया गया, जहां पर वह काम कर रहे हैं. इसके बाद उनके काम को देखते हुए रेखांकन विधा में 2016 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
यह नेशनल अवार्ड ललित कला दिल्ली भारत सरकार की ओर से मिला था. अभी उनका काम मदर फीगर मैथोलॉजिकल बेस्ड है. पेंटिंग इनका मुख्य काम है. इसमें नई विधाओं को सामने लाने का शोध भी शामिल है.
2017 में राष्ट्रपति भवन में सलेक्शन हुआ, जिसमें पूरे भारत से सिर्फ दो लोग ही सलेक्ट किए गए थे. इसमें से एक धीरज थे. इसके अलावा कई आर्ट एक्जीबिशन हुए. सिर्फ भारत ही नहीं दुबई तक इनके आर्ट एक्जीबिशन लगते हैं.
धीरज ने बताया कि मेरा काम यूपी की कला को आगे लाना है. यूपी में देवी-देवताओं का वास होता है. इसी एनर्जी पर काम करते हैं.
छापा कला की आकृति.
लैक्सिट तकनीक का किया विकास :असित कुमार हालदार अवनींद्र नाथ ठाकुर के शिष्य और 1925 में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट के प्रधानाचार्य बने. हाल्दार उन कलाकारों में थे जो किसी एक शैली में बंध कर नहीं रहे. उन्होंने मध्य अजंता, जोगीमारा, वाष भित्ति चित्रों की अनुकृति की. वे पेंसिल, तूलिका, रेखांकन, जल रंग, वाश शैली, टेम्परा आदि विधाओं में काम करते थे. उनको बचपन से ही चित्रकला के साथ काव्य लेखन में रुचि थी. लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय में उन्होंने जगाई-मधाई व नित्यानंद और भवन निर्माता अकबर का भित्ति चित्र बनाया. उनका प्रमुख पक्ष तकनीक के साथ काम करना था. उन्होंने लकड़ी पर लाख से चित्रण कर लैक्सिट तकनीक का विकास किया.
छापा कला की आकृति.
हर इंसान तक कला को पहुंचाना है मकसद : भूपेंद्र अस्थाना
स्वतंत्र चित्रकार, क्यूरेटर एवं लेखक भूपेंद्र कुमार अस्थाना को ललित कला की आर्ट क्यूरेशन में स्कॉलरशिप मिली.
राज्य ललित कला की ओर से राज्य पुरस्कार भी मिला. भूपेंद्र बताते हैं कि जितने भी पुराने कलाकार हैं, उन्होंने हम जैसे युवाओं को दिशा देने का काम किया है. उनकी परंपरा को आगे बढ़ाना हमारे लिए गर्व की बात है.
मैंने आटर्स कॉलेज से 2012 में प्रिंट मेकिंग में पास आउट किया था. इसके बाद ललित कला स्टूडियो में काम किया. अब स्वतंत्र चित्रकार के रूप में काम कर रहा हूं. आज सिर्फ पेपर पेन कलर ही नहीं रहा. आज मीडियम कोई भी हो बस कलाकार की भावनाएं उसके काम में दिखनी चाहिए.
हमारा यही फोकस रहता है कि जो वर्क है, उसको लोग देखें. आम जनता तक जब कलाकार की भावनाएं नहीं पहुंचेंगी, तब तक उसका कोई मकसद नहीं.
मैंने ऑनलाइन कई कार्यक्रम किए हैं, जिसमें दुबई तक के बच्चे और लोग शामिल हुए. इसमें कई ऐसे बच्चे है, जिनका काम अच्छा है और उनकी हम आर्थिक मदद भी करते हैं.
अमेरिका के कई संग्रहों में हैं कलाकृतियां : जय कृष्ण अग्रवाल छापा कला यानी ग्राफिक विधा के कलाकारों में जय कृष्ण अग्रवाल का नाम अहम स्थान रखता है. ललित कला में प्रवेश लेने के बाद उनकी रुचि छापा कला की ओर बढ़ने लगी. उस समय के प्राचार्य सुधीर खास्तागीर ने उनको दिल्ली के आर्ट कॉलेज के ग्राफिक कला विभाग के अध्यक्ष सोमनाथ होर से मिलने की सलाह दी. स्पष्टता, शुद्धता, छाया प्रकाश का क्रमिक परिवर्तन उनकी सबसे बड़ी विशेषता है. उनकी काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी कृतियां आधुनिक कला दीर्घा व अमेरिका के कई संग्रहों में संग्रहीत हैं. उन्होंने अपनी कला के माध्यम से कई युवा कलाकारों को आकर्षित किया. इनमें गोपालदत्त शर्मा, संदीप भाटिया, किरन सिंह समेत कई नाम शामिल हैं.
चित्रकारी से दिखाते है प्रकृति सौंदर्य : संजय
संजय कुमार राज उत्तर प्रदेश से हमीरपुर जिले के चंडौत के रहने वाले हैं. इनकी कला की शिक्षा कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ से हुई है. वर्तमान में लखनऊ मे रहते हुए कला सृजन मे तल्लीन हैं.
संजय बताते हैं कि मैं बचपन से ही प्रकृति के बहुत करीब रहा हूं और मैंने इसके सभी तत्वों का अवलोकन किया है.
मेरी धारणा और अनुभवों के माध्यम से प्रकृति अपने आप में बहुत रचनात्मक है. यह अपने रूप बदलता रहता है. इसकी असीम कोमलता और गर्माहट गांवों और कस्बों में महसूस की जा सकती है. निर्माण, आधुनिकीकरण, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण और इसके प्रभाव आज के समय में हमारा पर्यावरण और इको-सिस्टम, और कोविड-19 समय से बहुत प्रेरित रहा है.
यही मेरी प्रमुख चिंताएं जिन्हें मैं अपने चित्रों के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास करता हूं.
कला में दिखाई प्रयोगशीलता : जय नारायण सिंह लखनऊ कला जगत में जय नारायण सिंह का नाम लिए बिना बात पूरी ही नहीं हो सकती. मूर्तिकार के रूप में उन्होंने स्वतंत्र विचारों को अपनाया. जय नारायण ने अपनी कला में काफी प्रयोगशीलता दिखाई, जब व्यक्तिमूर्ति, अलंकारिक मूर्ति शिल्प हो रहा था, तब उन्होंने संकेतों, उपमानों, विचारों को आधार मानकर मूर्तिकला करनी शुरू की. उन्होंने इसकी कहीं से शिक्षा नहीं हासिल की. केवल अभ्यास और अपनी प्रयोगशीलता से इसको आगे बढ़ाया. वे प्लास्टर ऑफ पेरिस, सोपस्टोन, ग्रेनाइट, फायरवुड आदि को माध्यम बनाकर अपनी कृतियों को बनाया करते थे. वे अधिकतर खुरदरे टेक्स्चर में काम करते थे. लखनऊ में इस तरह के वे पहले कलाकार थे. दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में उनकी मूर्तिशिल्प कमांड को दूसरा पुरस्कार मिला था, जबकि उस आयोजन में प्रथम पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया था. भारत-चीन युद्ध के समय निर्मित युद्ध पर शांति की विजय उनके प्रयोगों का एक उत्कृष्ट नमूना है.