लखनऊ: 2017 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाने वाले भाजपा के स्टार प्रचारक डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य खुद सिराथू विधानसभा सीट से चुनाव हार गए हैं. हार के कारणों को लेकर भाजपा हाईकमान के बीच चर्चा शुरू हो गई है और इसको लेकर पूरी रिपोर्ट भी मांगी गई है. सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि समाजवादी पार्टी की 2017 में जब पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी और सपा की लहर थी तब केशव प्रसाद मौर्य सिराथू सीट से भी ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में सफल रहे थे, इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान फूलपुर सीट से भी सांसद निर्वाचित हुए थे लेकिन 2022 का विधानसभा चुनाव भितरघात और तमाम तरह की साजिश के चलते केशव प्रसाद मौर्य हार गए. इसे लेकर बीजेपी नेतृत्व गंभीरता से मंथन कर रहा है और पूरी रिपोर्ट तलब की गई है. रिपोर्ट के बाद कार्यवाही की बात भी पार्टी के उच्च स्तरीय सूत्र कह रहे हैं.
ईटीवी भारत को बीजेपी के बड़े नेताओं और आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारकों से मिली जानकारी के अनुसार केशव प्रसाद मौर्य की हार के कई बड़े कारण सामने आए हैं. सबसे चौंकाने वाली बात जो निकल कर सामने आई है उसके अनुसार बीजेपी के स्थानीय सांसद विनोद सोनकर का केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव में दिलचस्पी न लेना और केशव मौर्य के साथ चुनाव प्रचार न करना बड़ी वजह है.
साथ ही अपना दल की अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल भी अपनी बिरादरी कुर्मी समाज का वोट दिलाने में कामयाब नहीं हो पाई. वहीं. बीजेपी संगठन और सरकार में लगातार बढ़ रहे केशव प्रसाद मौर्य के कद से घबराए स्थानीय सांसद विनोद सोनकर ने अपने समाज यानी दलित समाज के वोटरों को बीजेपी की झोली में लाने का प्रयास नहीं किया, जिससे केशव प्रसाद मौर्य की करीब 7000 वोट से हार हो गई.
स्थानीय सांसद विनोद सोनकर सिर्फ सिराथू ही नहीं अपने संसदीय क्षेत्र की 5 विधानसभा सीटों पर दलित समाज का वोट नहीं दिला पाए जो भाजपा की हार का एक बड़ा कारण रहा. चौंकाने वाली बात यह है कि जिस सिराथू सीट से सपा गठबंधन की पल्लवी पटेल चुनाव जीती हैं, उसी गठबंधन के अंतर्गत अपना दल (कमेरावादी) का कोई अन्य प्रत्याशी उत्तर प्रदेश की किसी सीट पर चुनाव नहीं जीत सका. वहीं चौंकाने वाली बात यह है कि प्रतापगढ़ सीट से सपा गठबंधन ने अपना दल कमेरावादी की अध्यक्ष व पल्लवी पटेल की मां कृष्णा पटेल भी चुनाव मैदान में उतरीं थीं लेकिन वह चुनाव हार गईं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यह जीत हुई तो कैसे हुई.
बीजेपी के कई बड़े नेताओं और आरएसएस के नेताओं का कहना है कि इसके पीछे सोची समझी साजिश है और केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव में भितरघात करते हुए खेल कर दिया गया. वहीं, दूसरी तरफ प्रदेशभर की सभी विधानसभा सीटों पर ताबड़तोड़ चुनावी दौरे करते हुए भाजपा को जिताने की जी-तोड़ मेहनत केशव प्रसाद मौर्य करते रहे, लेकिन अपनी ही विधानसभा सीट पर वह समय नहीं दे पाए. चौंकाने वाली बात तो यह भी है कि जिस दिन 27 फरवरी को सिराथू में मतदान था उस दिन भी वह सिराथू में नहीं थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 27 फरवरी को चुनावी जनसभाओं में सक्रिय रहे और स्टार प्रचारक के रूप में बीजेपी उम्मीदवारों को जिताने की कोशिश करते रहे. ऐसे में खुद की सीट सिराथू पर समय न दे पाना भी एक हार की बड़ी वजह मानी जा रही है.
वहीं, बीजेपी अपना दल गठबंधन भी पटेल बिरादरी के वोट दिलाने में असफल रहा. पटेलों के वोट बैंक पर अपना एकाधिकार जताने वाले अपना दल (सोनेलाल) भी केशव प्रसाद मौर्य को अपने समाज का वोट दिलाने में फेल साबित हुआ. यही नहीं सिराथू और प्रयागराज के आसपास की तमाम सीटों पर पटेल उम्मीदवारों को भी पटेल बिरादरी का वोट नहीं मिला और इससे अपना दल गठबंधन पर भी सवाल उठ रहे हैं. अनुप्रिया पटेल ना सिर्फ सिराथू में केशव प्रसाद मौर्य को अपने समाज का वोट दिला पाईं बल्कि तमाम अन्य सीटों पर भी वह कुर्मी बिरादरी के वोट बीजेपी की झोली में डालने में असफल रहीं. यह भी बीजेपी की कई सीटों पर हार की बड़ी वजह है.
कौशांबी से बीजेपी के सांसद विनोद सोनकर दलित समाज से आते हैं. कौशांबी संसदीय क्षेत्र में 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें बीजेपी सबमें चुनाव हार गई है. 3 विधानसभा सीटों में मंझनपुर चायल सिराथू के अलावा प्रतापगढ़ जिले की कुंडा और बाबागंज सीट भी आती है. क्षेत्र से सांसद विनोद सोनकर बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री भी हैं. विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने और दलित समाज में विनोद सोनकर का कद बढ़ाने के लिए बीजेपी ने उन्हें चुनाव संचालन समिति में भी शामिल किया था लेकिन अपने समाज के वोटरों को लुभाने में विनोद सोनकर पूरी तरह से असफल साबित हुए. पूरे प्रदेश की बात छोड़िए, वह अपने संसदीय क्षेत्र में भी पार्टी हाईकमान के भरोसे पर खरे नहीं उतरे और दलित समाज का वोट भाजपा की झोली में नहीं डलवा पाये, इससे बीजेपी को बड़ी हार का भी सामना करना पड़ा.