लखनऊ:उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने ईटीवी भारत को दिए के साक्षात्कार में दावा किया कि स्वतंत्रता के बाद पहली बार प्रदेश में सबसे ज्यादा संख्या में शिक्षकों की भर्ती योगी सरकार में की गई हैं. उनका कहना था कि प्रदेश में रोज ही भर्तियां की जा रही हैं. उपमुख्यमंत्री के दावे की जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है. असल में प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों की स्थिति बेहद खराब है. यहां बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं. स्कूलों में गणित, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान जैसे विषय पढ़ाने के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं है. ईटीवी भारत की पड़ताल में कुछ स्कूल ऐसे भी मिले जहां हिंदी और अंग्रेजी के शिक्षकों को गणित जैसे विषय पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है. डॉक्टर आरपी मिश्रा की मानें तो प्रदेश में सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों की संख्या करीब 4500 है. जिनमें शिक्षकों के पद 93 से 94000 तक है. हैरानी की बात यह है कि इनमें 40,000 से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं.
यह है लखनऊ के स्कूलों का हाल
- सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय योगेश्वर ऋषि कुल इंटर कॉलेज में छात्र-छात्राओं की संख्या 400 से 500 के बीच में है. वर्तमान में स्कूल में प्रिंसिपल समेत कुल 8 शिक्षक मौजूद है. हैरानी की बात यह है कि गणित और विज्ञान जैसे विषयों में वर्ष 2010 से कोई शिक्षक उपलब्ध नहीं है.
- योगानंद बालिका विद्यालय की स्थिति तो इससे भी ज्यादा खराब है. यहां पढ़ने वाली छात्राओं की संख्या करीब एक हजार है. पढ़ाने के लिए प्रिंसिपल के साथ केवल एक शिक्षक उपलब्ध है.
- महात्मा गांधी इंटर कॉलेज मलिहाबाद में प्रिंसिपल के साथ कुल 8 शिक्षक उपलब्ध हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चों की संख्या करीब 1200 है.
- काशीश्वर इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या करीब दो हजार है, लेकिन यहां इंटरमीडिएट में अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, अंग्रेजी, भूगोल और कंप्यूटर जैसे विषय पढ़ाने के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं है.
80% से ज्यादा स्कूलों की हालत खराब
यह चार उदाहरण सिर्फ बानगी भर हैं.राजधानी लखनऊ में सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों की संख्या करीब 99 है. 80 परसेंट से ज्यादा स्कूलों की स्थिति खराब है. योगेश्वर ऋषि कुल इंटर कॉलेज के शिक्षक डॉ आरके त्रिवेदी ने बताया कि उनके स्कूल में वर्ष 2010 से गणित और विज्ञान जैसे विषयों के शिक्षक उपलब्ध नहीं है. मजबूरन, फाइनेंस मोड पर शिक्षक रखकर छात्रों का सिलेबस पूरा कराया जाता है. लखनऊ इंटरमीडिएट कॉलेज के शिक्षक और माध्यमिक शिक्षक संघ के आय-व्यय निरीक्षक विश्वजीत सिंह ने बताया कि लखनऊ के ज्यादातर स्कूलों में यही स्थिति देखने को मिल रही है.