लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अंडर ट्रायल अभियुक्त के जमानत के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अभियुक्त का लंबे समय से जेल में बंद होना मात्र जमानत का आधार नहीं होता. न्यायालय ने कहा कि लंबे समय से जेल में बंद होना जमानत का एक आधार हो सकता है, लेकिन यह मामले के तथ्यों व परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है. यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने गोविंद की जमानत याचिका को खारिज करते हुए दिया. याची पर एक 8 साल की बच्ची के साथ ओरल सेक्स करने का आरोप है.
याची के अधिवक्ता बीएम सहाय ने दलील दी कि मामला 2017 का है और अभियुक्त एक सितंबर, 2017 से ही जेल में है. इस प्रकार अभियुक्त 4 साल और 7 महीने जेल में बिता चुका है. बहस के दौरान यह भी दलील दी गई कि वास्तव में वर्तमान मामला मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद का है. पीड़िता के माता-पिता अभियुक्त के घर में किराएदार थे. राज्य सरकार की ओर से जमानत का विरोध किया गया.