लखनऊ : पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने अपने भतीजे आकाश को पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया है. मायावती की इस घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश की परिवारवाद वाली राजनीति पार्टियों में बसपा का भी नाम जुड़ गया. उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां परिवारवाद से किसी को कोई गुरेज नहीं. जनता भी परिवारवाद के दम पर चल रही पार्टियों को सिर-आंखों पर बिठाती रही है. यदि भारतीय जनता पार्टी को छोड़ दें, तो चाहे प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी हो, राष्ट्रीय दल कांग्रेस पार्टी हो, अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी हो अथवा निषाद पार्टी, यह सभी राजनीतिक दल परिवारवाद के हामी रहे हैं और इनसे कोई एतराज भी नहीं.
काफी हद तक कांशीराम की उम्मीदों पर खरी उतरीं मायावती :बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने 15 दिसंबर 2001 में लखनऊ की एक जनसभा में मायावती को उतना उत्तराधिकारी घोषित किया था. तब कांशीराम ने न अपने परिवार का मुंह देखा और न ही पार्टी की तमाम दावेदारों का. उन्होंने मायावती में वह चेहरा देखा, जो पार्टी गठन के उद्देश्यों को पूरा कर सकती थीं और दलितों के हितों के लिए किसी से भी लोहा ले सकती थीं. मायावती काफी हद तक कांशीराम की उम्मीदों पर खरी उतरीं. एक समय में उन्होंने दलित समाज में जागरूकता लाने के लिए खूब जोश भरा. वह समय भी आया जब समाज का एक बड़ा तबका मायावती को अपना मसीहा मानने लगा. इसी विश्वास और राजनीति कुशलता के दम पर उन्होंने 2007 में वह कर दिखाया, जिसका सपना कभी काशीराम ने देखा होगा. तब मायावती की उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार थी. मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 2012 आते-आते बसपा की धार कुंद होने लगी. उत्तर प्रदेश में जैसे जैसे भाजपा का कद बढ़ा, बहुजन समाज पार्टी रसातल में जाती रही.
2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ एक सीट मिली :2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद मायावती सत्ता से ऐसे फिसलीं कि 2012 में बसपा को सिर्फ 80 सीटों पर संतोष करना पड़ा. 2017 में पार्टी 19 सीटों पर सिमट गई, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ एक सीट मिली. यदि लोकसभा चुनावों की बात करें, तो 2014 में पार्टी का खाता तक नहीं खुला, वहीं 2019 में बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया और उसे 10 सीटों पर जीत हासिल हुई. यह सीटें भी सपा से गठबंधन के कारण मिली थीं, जिसका सपा को नुकसान भी हुआ और वह सिर्फ पांच सीटों पर सिमट गई. अब जबकि कुछ ही महीनों बाद लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में मायावती ने अपने भतीजी आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है. स्वभाविक है कि मायावती ने कांशीराम की परंपरा का पालन नहीं किया और पार्टी को परिवारवाद के हवाले कर दिया. चर्चा यह भी है कि आकाश आनंद की पत्नी भी पार्टी में सक्रिय होंगी.
स्व. मुलायम सिंह व अखिलेश यादव (फाइल फोटो) परिवार ही नहीं बल्कि तमाम रिश्तेदार भी पार्टी में सक्रिय :उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का परिवार ही नहीं बल्कि तमाम रिश्तेदार भी पार्टी में सक्रिय हैं. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, तो दूसरे चाचा राम गोपाल यादव पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा में सपा के नेता भी हैं. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी कन्नौज से सांसद हैं, तो अखिलेश के चाचा अभय राम यादव के पुत्र धर्मेंद्र यादव पूर्व सांसद हैं. राम गोपाल यादव की पुत्र अक्षय भी सांसद रहे हैं. सपा अध्यक्ष के एक और चाचा रतन सिंह से बेटे तेज प्रताप यादव भी पूर्व सांसद हैं. शिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव भी पीसीएफ के चेयरमैन हैं. माना जा रहा है कि वह लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. अखिलेश यादव के चाचा राजपाल यादव के बेटे अंशुल मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. इस परिवार की भावी पीढ़ियां भी राजनीति में आने के लिए तैयार हैं.
निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद (फाइल फोटो) पुत्र राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के अध्यक्ष :भाजपा गठबंधन के साथ ही निषाद पार्टी यानी निर्मल इंडिया शोषित हमारा आम दल के अध्यक्ष हैं संजय निषाद, जो सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. इनके पुत्र राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद के अध्यक्ष हैं. दूसरा पुत्र इसी संगठन में प्रदेश अध्यक्ष है. तीसरे पुत्र को इन्होंने संगठन का प्रदेश प्रभारी बनाया है. पत्नी को महिला मोर्चा का राशि अध्यक्ष नियुक्त किया है. इनके बेटे प्रभु निषाद भाजपा के टिकट पर सांसद हैं, तो दूसरे बेटे सरवन भाजपा के ही टिकट पर विधायक. संजय निषाद अपनी पार्टी से दोनों के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन भाजपा ने उन्हें अपने बैनर तले उतारा. निषाद आगामी चुनाव के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं कि उनके बेटों को भाजपा गठबंधन से उनकी ही पार्टी से टिकट मिल जाए, वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर हैं. उन्होंने अपने बेटे अरविंद राजभर को पार्टी का महासचिव बनाया है. अरविंद के पास पार्टी प्रवक्ता का भी पद है. अपने बेटों को समायोजित कराने के चक्कर में ही राजभर ने भाजपा गठबंधन छोड़ा और अब दोबारा गठबंधन में लौटे हैं.
अपना दल सोनेलाल : भाजपा गठबंधन की एक और सहयोगी पार्टी अपना दल सोनेलाल की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल हैं. वह केंद्रीय मंत्री के पद पर भी आसीन हैं. अनुप्रिया के पति आशीष पटेल राज्य सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर हैं, वहीं के परिवार का दूसरा धड़ा अपना दल कमेरावादी है, जिसकी अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल हैं. कृष्णा पटेल की बड़ी बेटी पल्लवी पटेल सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंची हैं. वह अपनी ही पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन अखिलेश यादव उन्हें अपनी पार्टी का टिकट दे दिया. इसी तरह चौधरी अजीत सिंह ने 1996 में राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की थी. अब इस पार्टी के मुखिया इनकी पुत्र जयंत चौधरी हैं, जो इस वक्त राज्यसभा के सदस्य हैं. कोई ताज्जुब नहीं आने वाले दिनों में इन्हीं नेताओं की पीढ़ियां इन दलों को संभालती दिखाई दें.
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