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क्या ट्विटर पर सियासी युद्ध के जरिये योगी के किले को ढहा पाएगा विपक्ष?

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पार्टियां और उनके प्रमुख सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय रहते हैं. विपक्षी पार्टियां तो बीजेपी को नीचा दिखाने के लिए पुरजोर कोशिश करती हैं. राजनीतिक विश्लेषक अनिल भारद्वाज इस मामले में कहते हैं कि ट्विटर या सोशल मीडिया पर सियासी जंग लड़ना किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छा साबित नहीं हो सकता.

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राजनीतिक पार्टियां.

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Published : Dec 6, 2019, 7:57 PM IST

लखनऊ:सोशल मीडिया का क्रेज इतना बढ़ गया है कि सियासी लोग भी उसके आश्रित होते जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति की बात करें तो यहां सभी विपक्षी दल ट्विटर पर ही सियासी लड़ाई लड़ते दिख रहे हैं. बहुजन समाज पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्तासीन होने के सपने तो देख रही है, लेकिन बसपा अध्यक्ष मायावती सरकार के किसी भी फैसले के खिलाफ जमीन पर संघर्ष नहीं करना चाहती हैं.

वह जमीन पर उतरने के बजाय ट्वीट करके काम चला रही हैं. ट्विटर की इस रेस में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हों या फिर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी कोई भी पीछे नहीं हैं. सभी विपक्षी नेता ट्विटर पर कुछ शब्दों के माध्यम से जनता को अपने पाले में खींचने की कवायद में लगे हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या बिना संगठन को मजबूत किए सियासी रण जीता जा सकता है.

ट्विटर है जनता तक पहुंचने का माध्यम.

ट्विटर पर खूब सक्रिय रहती हैं मायावती
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का केंद्र की मोदी सरकार हो या यूपी की योगी सरकार, इनके फैसलों, इनकी सरकारों में हो रही घटनाओं पर बराबर ट्वीट आता है. इसमें वे देरी नहीं करतीं. हां इतना जरूर है कि आजकल वह भाजपा सरकार को घेरने के बजाए सलाह देती ज्यादा नजर आती हैं. कभी-कभी तो जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के शिथिल किए जाने जैसे फैसलों पर मायावती सरकार के साथ खड़ी नजर आ रही हैं.

यह बात अलग है कि उन्हें इसको लेकर सफाई भी देनी पड़ी. अनुच्छेद 370 पर मायावती का सरकार के साथ खड़े होने का फैसला उनके समर्थकों को अच्छा नहीं लगा. यह बात मायावती तक पहुंची. इसके बाद केंद्र सरकार ने जब नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया तब मायावती ने इसका विरोध किया. इसके साथ ही उन्होंने अनुच्छेद 370 पर सरकार के साथ खड़े होने को लेकर सफाई भी दी. मायावती ने कहा कि यदि सरकार का फैसला उचित होगा तो बसपा उसके साथ खड़ी होगी.

प्रियंका गांधी के ट्वीट पर दिखती है योगी सरकार की सक्रियता
विपक्षी दल के नेता ट्वीट करके सरकार को घेरने की कवायद में जुटे हैं. किसी नेता के ट्वीट पर आमतौर पर सरकार हरकत में नहीं आती. यही ट्वीट जब कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी करती हैं तो उस पर योगी सरकार में सक्रियता साफ दिखाई पड़ती है. प्रियंका गांधी की सक्रियता और उनके ट्वीट पर सरकार का हरकत में आना कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के लिए उत्साहजनक है. कांग्रेसी कार्यकर्ता इसे अपनी उपलब्धि समझकर आने वाले दिनों में बेहतरी की उम्मीद कर रहे हैं.

ट्विटर है जनता तक पहुंचने का माध्यम
कांग्रेस प्रवक्ता अंशू दीक्षित का कहना है कांग्रेस हमेशा सरकार के हर गलत फैसले, उसकी गलत नीतियां और ध्वस्त कानून व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करती आई है आगे भी करती रहेगी. रही बात ट्विटर की तो सोशल मीडिया लोगों तक पहुंचने का बड़ा माध्यम है. देश के करीब 80 करोड़ लोग फेसबुक से जुड़े हैं तो करीब 25 करोड़ लोग ट्विटर पर हैं. कांग्रेस केवल ट्वीट ही नहीं करती. प्रियंका जी सोनभद्र से लेकर तमाम घटनाओं पर खुद वहां तक गईं. कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू किसानों से लेकर बिगड़ी कानून व्यवस्था के खिलाफ लगातार आंदोलन करते हैं.

भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी
वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता संजय राय का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी लगातार जनता के बीच में रहती है. भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी है. विपक्ष में रहते हुए उत्तर प्रदेश भाजपा ने करीब डेढ़ दशक तक संघर्ष किया. इसके बाद हम सत्ता में आए. विपक्ष कोई भी हो उसे सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आंदोलन करने का अधिकार है करना भी चाहिए. यूपी में विपक्ष केवल ट्विटर पर है, इससे साफ है कि योगी सरकार में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है. विपक्ष को सरकार ने कोई मौका ही नहीं दिया कि विपक्ष संघर्ष करे.

ट्विटर पर सियासी जंग लड़ना किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छा साबित नहीं हो सकता. वह चाहे समाजवादी पार्टी हो, कांग्रेस हो या बहुजन समाज पार्टी हो. इनकी जमीनी निष्क्रियता से कार्यकर्ताओं में निराशा है. कार्यकर्ता हतोत्साहित हैं. रही बात बहुजन समाज पार्टी की तो मायावती इस वक्त केवल ट्विटर पर हैं. उनके बहुत बार ट्विटर पर ऐसे बयान आते हैं, जिसमें वह भाजपा के साथ खड़ी हुई नजर आती हैं. यह न तो पार्टी के लिए अच्छा होगा और न ही कार्यकर्ता के लिए.
-अनिल भारद्वाज, राजनीतिक विश्लेषक

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