लखनऊ. उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जहां पर उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने दूरसंचार नेटवर्क सुविधा विनियमावली-2022 रूपी नया कानून पारित कर दिया गया है. विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह (RP Singh, Chairman, Electricity Regulatory Commission) व सदस्य बीके श्रीवास्तव ने कानून को अंतिम रूप देते हुए हस्ताक्षर कर दिए हैं. अपर मुख्य सचिव ऊर्जा को अधिसूचना जारी करने के लिए पत्र भेज दिया गया है. यह एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत बनाए गए किसी भी कानून की महज एक औपचारिकता होती है. यह वही कानून है जिसके तहत अब प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों में, चाहे वह शहरी क्षेत्र का मामला हो या ग्रामीण क्षेत्र का, बिजली खंभों और टावरों पर अब कोई भी प्राइवेट या सरकारी दूरसंचार कंपनी, ब्रॉडबैंड, डिस ऑपरेटर, 5जी नेटवर्क या अन्य कोई भी अपना सिस्टम उस पर किसी भी तार केबल का उपयोग करेगा तो अब उसे उसका शुल्क देना होगा.
नियामक आयोग ने सुरक्षा मानकों को देखते हुए अपने कानून में यह भी व्यवस्था की है कि 33 केवी लाइन टावरों को छोड़कर ही यह कार्य किया जाएगा. प्रदेश की बिजली कंपनियां इस कानून के प्रावधानों के तहत टेंडरिंग प्रोसेस से इस कार्य को आगे बढ़ाएंगे. टेंडर के माध्यम से दूरसंचार कंपनियों को कार्य दिया जाएगा. उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग की तरफ से नया कानून पारित किए जाने के तत्काल बाद उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा (Awadhesh Kumar Verma, President of Uttar Pradesh State Electricity Consumers Council) ने नियामक आयोग के चेयरमैन आरपी सिंह से मुलाकात की.
बता दें, 21 अक्टूबर को इस पर आम जनता की सुनवाई हुई थी जिस पर उपभोक्ता परिषद (consumer council) ने अनेकों उपभोक्ता हित संबंधी व्यवस्था को कानून में लागू करने की मांग उठाई थी. अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि इस कानून को पारित होने के बाद प्रदेश की बिजली कंपनियां पारदर्शी तरीके से टेंडर के माध्यम से जो भी दरें तय होंगी उसके हिसाब से दूरसंचार कंपनियों (telecommunication companies) से वसूली करेंगे. कानून में यह भी प्रावधान किए गए हैं कि दूरसंचार कंपनियां सुरक्षा के किसी भी मानक से खिलवाड़ नहीं कर सकतीं. इससे प्राप्त होने वाला राजस्व गैर टैरिफ आय में शामिल किया जाएगा, जिसका 70 प्रतिशत आय उपभोक्ताओं की बिजली दर में पास किया जाएगा. आयोग की तरफ से बनाए गए इस नए कानून में इस बात की भी पूरी व्यवस्था की गई है कि किसी एक टेलीकॉम कंपनी का वर्चस्व न हो पाए. प्रदेश की बिजली कंपनियों को कम से कम तीन साल में एक बार किराया शुल्क में संशोधन करना होगा.