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शिक्षा सेवा चयन आयोग के नए नियमों से भड़के शिक्षक, जताया विरोध

उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा सेवा चयन आयोग अधिनियम के नए प्रावधान को लेकर शिक्षकों में रोष बढ़ता जा रहा है. शिक्षकों का आरोप है कि सरकार ने स्कूल प्रबंध तंत्र के इशारे पर अधिनियम में फेरबदल किया है.

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Published : Dec 27, 2019, 5:36 PM IST

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शिक्षा सेवा चयन आयोग

लखनऊ:उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग अधिनियम को सरकार ने पिछले दिनों विधान परिषद से भी पारित करा लिया है. शिक्षक दल का आरोप है कि सरकार ने संशोधन प्रस्ताव पर सदन में चर्चा नहीं कर स्कूल प्रबंधकों के हित का पोषण किया है. सरकार की मनमानी के खिलाफ अब शिक्षक दल के सदस्य माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों के बीच मसले को ले जाएंगे और सरकार की बदनीयती को उजागर करेंगे.

शिक्षक दल के सदस्यों ने दिया धरना.

विधान परिषद में शिक्षक दल के नेता ओम प्रकाश शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि पहले भी प्रबंध तंत्र के शोषण का शिकार शिक्षक होते रहे हैं. प्रबंध तंत्र की मनमानी से बचाव के लिए ही सरकार ने 40 साल पहले माध्यमिक शिक्षा अधिनियम में संशोधन कर यह नियम बनाया था कि जब तक जिला विद्यालय निरीक्षक का पूर्वानुमोदन प्राप्त न हो, तब तक स्कूल प्रबंध तंत्र किसी भी शिक्षक के खिलाफ कोई भी अनुशासनात्मक या दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकेगा.

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ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि सरकार ने जो नया शिक्षा सेवा चयन आयोग अधिनियम बनाया है, इसमें यह प्रावधान जानबूझकर निकाल दिया गया है. शिक्षक दल ने विधान परिषद में विधेयक पेश किए जाने पर इसी तरह का संशोधन सुझाव दिया था, लेकिन सरकार ने इस पर चर्चा नहीं कराई और न ही संशोधन होने दिया. इससे उत्तर प्रदेश के सभी निजी विद्यालय के शिक्षक स्कूल प्रबंध तंत्र की मनमानी के शिकार बन जाएंगे.

वहीं भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि सरकार ने जो कानून बनाया है, वह शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता सुधार के लिए आवश्यक है. सरकार का मानना है कि शिक्षक दल का विरोध निराधार है, सरकार किसी भी शिक्षक के साथ अन्याय नहीं होने देगी.

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