लखनऊ : बेसिक शिक्षा विभाग के परिषदीय विद्यालयों की 69000 शिक्षक भर्ती उत्तर प्रदेश सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. योगी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में साल 2018 में यह भर्ती प्रक्रिया शुरू किया था. आज पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार इस भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने के बाद भी इसमें व्याप्त चुनौतियों को समाप्त नहीं कर पा रही है. एक ओर जहां इस भर्ती प्रक्रिया में परीक्षा में पूछे गए शैक्षिक परिभाषा प्रश्न को गलत ठहराते हुए न्यायालय की शरण में आए अभ्यर्थियों को एक अंक देते हुए मेरिट के अनुसार चयन करने के 9 नवंबर 2022 के उच्चतम न्यायालय के अंतिम आदेश के अनुपालन नहीं हो पाया है. वहीं इस प्रक्रिया के तहत चयनित किए गए 6800 अभ्यर्थियों के आरक्षण के मामले में हुई गलती के कारण अब उन पर भी नौकरी जाने का संकट खड़ा हो गया है. ऐसे में विभाग इस भर्ती प्रक्रिया को लेकर जो भी जटिलताएं सामने आ रही हैं उसे हल करने के बजाय लगातार टलती जा रही हैं.
भर्ती को लेकर दो धड़े लगातार कर रहे प्रदर्शन :69000 शिक्षक भर्ती में मेरिट में एक नंबर जोड़ने और आरक्षण नियमों को लागू करने में कोई गड़बड़ी के कारण 6800 अभ्यर्थियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है. ऐसे में इस बढ़ती प्रक्रिया में जो अभ्यर्थी नौकरी पाए गए हैं. वह जो नौकरी पाने से वंचित रह गए हैं वह लगातार अपने-अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. जहां मेरठ में एक नंबर जोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर लखनऊ के इको गार्डन में 46वें दिन भी धरना प्रदर्शन जारी रहा. दूसरी तरफ 6800 अभ्यर्थी जिन पर गलत आरक्षण के कारण नौकरी से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है. वह लगातार बेसिक शिक्षा निदेशालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, सहित विभिन्न मंत्रियों व उपमुख्यमंत्रियों के कार्यालय व आवास का घेराव कर रहे हैं. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी बेसिक शिक्षा परिषद इन अभ्यर्थियों को केवल आश्वासन पर आश्वासन ही दे रही है.
सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट में 34 बार सुनवाई के बाद आया था फैसला :प्रसून दीक्षित ने बताया कि जब हमने इस सवाल को लेकर आपात टी उठाया तो सरकार ने उसे साफ मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद हम इस मामले की सुनवाई के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जिस पर 25 अगस्त 2021 को इलाहाबाद हाई कोर्ट डबल बेंच ने इस भर्ती परीक्षा के एक शैक्षिक परिभाषा प्रश्न पर एक अंक प्रदान करते हुए मेरिट के अनुसार चयन करने का आदेश पारित किया था. यह आदेश उसे समय इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुनेश्वर नाथ भंडारी और अनिल ओझा की बेंच ने दिया था.