लखनऊ : बहुत कम लोग जानते होंगे कि सिफलिस घातक यौन संचारित रोगों में से एक है. यह बीमारी ट्रेपोनेमा पैलिडम नामक जीवाणु के कारण फैलता है. इस यौन संचारित रोग का मुख्य कारण संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है. महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रंजना खरे बताती हैं कि एक सर्वे के अनुसार भारत में सलाना एक लाख लोग सिफलिस से ग्रसित होते हैं. यह रोग सिफलिस से संक्रमित स्त्री-पुरुष के साथ संबंध बनाने से स्वस्थ व्यक्ति को आसानी से हो जाता है. ज्यादातर एक से अधिक स्त्री-पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाने वाले व्यक्ति, वेश्या और कॉलगर्ल्स इस रोग से पीड़ित होते हैं. यह रोग चुम्बन से भी फैल सकता है. यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को होता है. सिफलिस से पीड़ित व्यक्ति जब तक ठीक नहीं हो जाता, तब तक उसे सेक्सुअल रिलेशन बनाने से दूर रहना चाहिए.
असुरक्षित यौन संबंध है फैलने की वजह
हजरतगंज स्थित झलकारीबाई महिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ रंजना खरे ने बताया कि सिफलिस एक खतरनाक यौन संचारित रोग है, जो असुरक्षित शारीरिक संबंध बनाने से फैलता है. पहले से किसी यौन संचारित रोग से ग्रसित पार्टनर के साथ असुरक्षित यौन संबंध बनाने से ये रोग महिलाओं तक पहुंच सकता है. ये बैक्टीरियल इंफेक्शन संक्रमण योनि, मौखिक या गुदा के माध्यम से आपको संक्रमित कर सकते हैं. सिफलिस रोग की जांच ब्लड टेस्ट के माध्यम से की जा सकती है. वहीं इलाज करके इसे ठीक किया जा सकता है. लेकिन अगर आप इसका इलाज नहीं करवाते हैं तो यह समस्या गंभीर हो जाती है.
सिफलिस बीमारी के बारे में जानकारी देतीं महिला रोग विशेषज्ञ डॉ रंजना खरे
शुरुआती लक्षण में पड़ते हैं चकत्ते डॉ खरे बताती हैं कि सिफलिस रोग से संक्रमित होने के लगभग एक माह बाद इस रोग के प्रथमावस्था के लक्षण लिंग पर लाल रंग के चकत्ते के रूप में दिखाई पड़ता है, जो बाद में धीरे-धीरे बढ़ता जाता है. स्पर्श करने पर यह थोड़ा कड़ा होता है, जिसके कारण इसे हार्ड शेंकर कहा जाता है, जिसमें दर्द नहीं होता है. पुरुषों में जहां ये चकत्ते लिंग के अंदर या बाहर होते हैं, वहीं स्त्रियों में योनि द्वार और गर्भाशय के मुख पर होते हैं. जरा-सा घर्षण होने से ये चकत्ते घाव बन जाते हैं.
एचआईवी से बिल्कुल अलग है यह रोग
डॉ. ने बताया कि सिफलिस रोग एचआईवी से बिल्कुल अलग है. सिफलिस के लक्षण 3 से 6 सप्ताह बाद दिखना शुरू होते हैं. इसमें जीवाणु और उसका विष सारे शरीर में पहुंच जाता है. जिसके कारण त्वचा पर लाल-लाल चकत्तों का उभरना, उसमें जख्म बनना, जख्मों में दर्द या खुजली न होना, सिरदर्द, गले में दर्द, भूख न लगना, पाचन तंत्र की गड़बड़ी, हीमोग्लोबिन की समस्या, जोड़ की ग्रंथियों में सूजन, बुखार आना, मुंह, होंठ, जननांग और मलद्वार के आस-पास घाव होना जैसी तकलीफें होने लगती हैं. सिफलिस में जो घाव होते हैं, उसे गम्मा नाम से भी जाना जाता हैं. त्वचा, मांसपेशियों, अंडकोष, हड्डियों तक के इससे प्रभावित होने के कारण ये बहुत घातक होते हैं. शरीर के अंग इन घावों के कारण बदरंग होने लगते हैं. इसके कारण आंखों की रोशनी भी जा सकती है. यहां तक कि बच्चे विकलांग या दृष्टिहीन पैदा होते हैं.
इलाज न होने पर होता है संक्रामक
डॉ. खरे बताती हैं कि अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो तकलीफ का इलाज संभव है. ब्लड टेस्ट के द्वारा सिफलिस बीमारी का पता लगाया जाता है. अस्पताल में आ रही सभी गर्भवती महिलाओं का सिफलिस जांच जरूर होता है, ताकि डिलीवरी के समय कोई समस्या न हो. समय पर पूरा इलाज करवाने से बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है. किसी भी व्यक्ति को महिला हो या पुरुष इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर इलाज करवाने में देर नहीं करनी चाहिए. यह बीमारी अत्यधिक बढ़ जाने पर लकवा, स्नायु दुर्बलता, मेरूमज्जा का क्षय, नपुंसकता, कैंसर और मिर्गी जैसी बीमारियों की संभावना रहती है.