लखनऊः रामचरितमानस को लेकर विवाद खड़ा करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को समाजवादी पार्टी ने भले ही राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी हो, लेकिन धीरे-धीरे उनसे समाजवादी पार्टी अब किनारा कर रही है. कोलकाता में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के मुख्य मंच पर स्वामी प्रसाद मौर्य कोई स्थान नहीं मिला. पार्टी के अंदर भी स्वामी प्रसाद मौर्य को लेकर तमाम तरह की चर्चा हो रही है. पार्टी के कई विधायकों ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ विरोध जताया था.
अब समाजवादी पार्टी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेताओं को साफ-साफ संदेश दिया है कि धार्मिक विषयों पर कोई भी नेता बयानबाजी नहीं करेगा. धार्मिक पुस्तक, धार्मिक विषय और संत समाज से जुड़े विषयों पर टीका टिप्पणी नहीं की जाएगी. समाजवादी पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर पिछड़ी जातियों को जोड़ने पर फोकस करेगी.
दरअसल, समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर पूरी तरह से संगठन मजबूती और आगामी रणनीति पर मंथन किया गया. चौंकाने वाली बात यह रही कि समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेताओं को धार्मिक पुस्तकों और धर्म से जुड़े विषयों और संत समाज पर टिप्पणी से बचने की नसीहत दी है. साथ ही आगामी चुनावों को देखते हुए अति पिछड़ों को पार्टी से जोड़ने पर और अधिक फोकस करने की बात कही गई है.
कुछ समय पहले सपा के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस की चौपाइयों को लेकर बवाल खड़ा कर दिया था और शुरू में समाजवादी पार्टी ने इसे आगे बढ़ाने के बारे जरूर सोचा. स्वामी प्रसाद मौर्य का प्रमोशन भी किया और उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया, लेकिन पार्टी के अंदर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान की निंदा हुई और कई विधायकों ने इसके विरोध में बयान दे दिए. खुद सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने भी रामचरितमानस विवाद पर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान को उनका निजी बयान बताया था और कहा कि समाजवादी पार्टी सभी धर्मों का सम्मान करती है.
इसके बाद अब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कोलकाता में आयोजित हो रही है तो एक रणनीति के तहत स्वामी प्रसाद मौर्य को पूरी तवज्जो नहीं दी गई. जबकि शिवपाल सिंह यादव सहित अन्य कई वरिष्ठ नेता अखिलेश यादव के साथ मंच पर मौजूद रहे. स्वामी प्रसाद मौर्य को ज्यादा तवज्जो न देकर रामचरितमानस के विवाद को और आगे बढ़ाना से रोकने की कोशिश की गई है. ऐसे में समाजवादी पार्टी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत स्वामी प्रसाद मौर्य को अब धीरे-धीरे दरकिनार करने का फैसला कर लिया. सबसे खास बात यह है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में धार्मिक मुद्दों को संवेदनशील मुद्दा मानते हुए अब इस पर बयानबाजी करने से पूरी तरह से रोका गया है.
कहा गया है कि धार्मिक पुस्तकों संत समाज और धार्मिक कार्यक्रमों को लेकर कोई भी टिप्पणी पार्टी के किसी भी नेता की तरफ से नहीं की जाएगी. इसके अलावा धार्मिक विषयों पर पूरी तरह से पार्टी नेताओं को चुप रहना है. सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव, आर्थिक प्रस्ताव पेश करते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की गई और लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में समाजवादी पार्टी संगठन को मजबूत करेगी और देशव्यापी अभियान चलाकर जन जागरण अभियान चलाने की तैयारी कर रही है.