लखनऊ : इंदिरानगर के मानस इन्क्लेव निवासी 48 वर्षीय व्यक्ति को कोरोना हो गया. उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने पर केजीएमयू में भर्ती कराया गया. 14 दिन में उनका कोरोना निगेटिव हो गया. इसी बीच वेंटीलेटर पर भर्ती मरीज में बैक्टीरिया ने हमला बोल दिया. शरीर में संक्रमण बढ़ने से अंगों का कार्य करना बाधित हो गया, जिससे मरीज की मौत हो गई.
एक और मामला हरदोई जिले से है. यहां 38 वर्षीय व्यक्ति को कोरोना हुआ. स्थानीय कोविड अस्पताल में 12 दिन इलाज के बाद चार दिन पहले केजीएमयू रेफर किया गया. यहां वेंटीलेटर पर इलाज चला. इस दौरान मरीज की कोविड की रिपोर्ट निगेटिव आ गई. मगर, हालत में सुधार नहीं हुआ. ब्लड की जांच में मार्कर बढ़े हुए पाए गए. शरीर के ब्लड में इन्फेक्शन फैल गया और सोमवार की रात मरीज की मौत हो गई.
मरीजों में सेकेंड्री इंफेक्शन के मामले
यूपी के ये दो मामले तो मात्र उदाहरण भर हैं. केजीएमयू, एसजीपीजीआई, लोहिया संस्थान समेत कोविड आईसीयू में भर्ती मरीजों में सेकेंड्री इंफेक्शन के तमाम मामले आ रहे हैं. यानी वायरस से जूझ रहे मरीज एकाएक बैक्टीरिया-फंगस की गिरफ्त में आ रहे हैं. यह अंदर ही अंदर पूरे शरीर को संक्रमण की जद में ला देता है. ऐसे में कम प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों के लिए यह जानलेवा साबित हो जाता है. केजीएमयू की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. शीतल वर्मा ने इसे 'सुपर इंफेक्शन' बताया. साथ ही जानलेवा भी कहा है. उन्होंने कहा कि सुपर इंफेक्शन की वजह से मरीज शॉक में जाने के साथ-साथ मल्टी ऑर्गन फेल्योर भी हो रहे हैं. ऐसे में आईसीयू में भर्ती मरीजों की समय-समय ब्लड मार्कर व कल्चर टेस्ट आवश्यक है.
सेप्टिसीमिया को लेकर रहें अलर्ट
डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक, कोरोना वायरस मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देता है. ऐसे में आइसीयू में भर्ती मरीजों में बैक्टीरिया-फंगस का हमला करना आसान हो जाता है. लिहाजा, सुपर इंफेक्शन की चपेट में आए मरीजों में सेप्टिसीमिया (Septicemia) हो जाता है. यह जान पर भारी पड़ जाता है.
ये बैक्टीरिया-फंगस बन रहे घातक
डॉ. शीतल वर्मा बताती हैं कि गंभीर मरीजों में ई-कोलाई, क्लेबसिएला, स्टेफाइलोकोकस, स्युडोमोनाज, ए सिनेटो बैक्टर बैक्टीरिया घातक बन रहे हैं. इसके साथ ही केंडिडा फंगस भी जानलेवा बन रहा है. इनसे मरीज का शरीर सेप्टिसीमिया का शिकार हो रहा है. ऐसे में जहां मरीज भर्ती हैं, वह हॉस्पिटल, डिवाइस, उपकरण, हेल्थ वर्कर और मरीज में हाईजीन को बनाए रखना बेहद आवश्यक है. इसके अलावा मरीज की समय-समय पर कल्चर जांच कराएं. उसका ब्लड शुगर कंट्रोल रहे. जरूरत पड़ने पर तत्काल आवश्यक एंटीबायोटिक दी जाएं.