लखनऊ:लॉकडाउन के दूसरे चरण में प्रदेश सरकार के माध्यमिक स्कूलों में ऑनलाइन शिक्षा शुरू हुई है, लेकिन इससे सभी विद्यार्थियों को लाभ नहीं मिल रहा है. वहीं कई ऐसे विद्यार्थी भी हैं, जिनके पास स्मार्ट मोबाइल फोन या कंप्यूटर की सुविधा नहीं है, जिसके चलते वे ऑनलाइन शिक्षा हासिल करने से वंचित हैं. ऐसे विद्यार्थियों के अभिभावक भयभीत हैं कि ऑनलाइन रेस में उनके बच्चे कहीं पीछे न छूट जाएं.
राजधानी लखनऊ में निर्बल वर्ग के ऐसे हजारों विद्यार्थी हैं जो ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने में नाकाम हैं, इसकी वजह संसाधनों का अभाव है. विद्यार्थियों के परिवार में किसी भी सदस्य के पास स्मार्ट मोबाइल फोन नहीं है और न ही कंप्यूटर या लैपटॉप की सुविधा है. इस वजह से ऑनलाइन शिक्षा शुरू होने के बावजूद ऐसे परिवारों के होनहार बच्चे अपने घर में रहकर केवल पुराने पाठ का अभ्यास ही कर पा रहे हैं. पढ़ने की आदत छूट न जाए, इसलिए ऐसे परिवारों के बच्चे हर रोज कई घंटे बैठकर अकेले पढ़ाई करते हैं. वहीं दूसरी ओर बच्चे यह सोचकर बेचैन भी हैं कि उनके दूसरे सहपाठी ऑनलाइन तरीके से शिक्षा हासिल कर रहे हैं. पढ़ाई की दौड़ में पीछे छूट रहे इन विद्यार्थियों का दर्द है कि अगर ऑनलाइन शिक्षा के आधार पर परीक्षा हुई तो उनका क्या होगा ?
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बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का सपना लेकर बाराबंकी में रहने वाली सीमा अपने बेटे अजय को लेकर लखनऊ आईं. यहां किराए के एक कमरे वाले मकान में रहकर बेटे को पढ़ा लिखाकर बड़ा बनते हुए देखना चाहती हैं, लेकिन संसाधनों के अभाव ने उनकी नींद गायब कर रखी है.
ऐसा ही हाल हरदोई की निवासी और लखनऊ में किराए के मकान में रहकर बेटे आशीष सिंह तोमर को शिक्षा दिला रही रेनू सिंह का भी है. ऑनलाइन शिक्षा की बात चलने पर वह कहती हैं कि जब से यह पता चला है कि बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है, तबसे मन बहुत व्यथित है. लैपटॉप या स्मार्ट मोबाइल फोन की बात क्या करें मेरे पास तो साधारण फोन भी नहीं है. ऐसे में बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलाने का जो सपना लेकर लखनऊ आए थे, वह कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन की इस त्रासदी में ऑनलाइन शिक्षा सुविधा के पहाड़ से टकराकर टूटता दिखाई दे रहा है.