लखनऊ. सहकारी बैंकों में जरा सी चूक में करोड़ों रुपए ट्रांसफर हो सकते हैं. बैंकों में पैसा ट्रांसफर करने का सिस्टम सिक्योर नहीं है. पिछले दिनों फर्जी तरीके से ऑपरेटिव बैंक में ₹146 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने का मामला सामने आया था. पहले भी कई बार सहकारी बैंकों में फर्जीवाड़ा (fraud in co operative banks) की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. जिससे सहकारी बैंकों की विश्वसनीयता भी संकट में है.
यूपी में सहकारी बैंकों में फर्जीवाड़ा कोई नई बात नहीं है. पूर्व में कई घटनाएं हुई हैं जिनसे यह बात सामने आई है कि सहकारी बैंकों में रखा पैसा सुरक्षित नहीं है. हालांकि सहकारी बैंकों के प्रबंधन का दावा है कि वित्तीय लेनदेन पूरी तरह से सुरक्षित है और अगर कहीं कोई घटना यानी धांधली होती है तो उस मामले में कड़ी कार्रवाई की जाती है. कुछ गलत लोगों की वजह से ऐसे घटनाएं सामने आती हैं. दरअसल, सहकारी बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों और अफसरों की ही मिलीभगत से भी पूर्व में बैंक से पैसा ट्रांसफर करने की घटनाएं हुई हैं. ऐसे में कर्मचारियों और अफसरों की लॉगिन पासवर्ड की पड़ताल उच्च स्तर से कराई जाएगी. खासकर बैंक के ज्यादातर ग्राहक ग्रामीण परिवेश से आते हैं, ऐसे में ज्यादा सतर्कता बरतने को लेकर भी फोकस है.
यूपी सहकारी बैंक के एमडी वरुण मिश्रा ने ईटीवी भारत से फोन पर कहा कि हम वित्तीय लेनदेन को पूरी तरह से सिक्योर बना रहे हैं. पहले से भी लेनदेन सुरक्षित है और साइबर क्राइम को रोकने के साथ वित्तीय लेनदेन पूरी पारदर्शिता से हो, इसके लिए एक नई प्लानिंग कर रहे हैं. इसको लेकर एक सॉफ्टवेयर डेवलप कर रहे हैं, जिससे हर वित्तीय लेनदेन की प्रतिदिन उच्च स्तर से मॉनिटरिंग की जा सके और कहीं भी अगर कोई गड़बड़ी हो तो उसे तत्काल रोका जा सकेगा. इसके अलावा बड़े लेनदेन पूरी तरह से उच्चाधिकारियों के संज्ञान में लाते हुए ट्रांसफर करने वाले और जहां पैसा ट्रांसफर हो रहा है उसकी पूरी जानकारी की जाएगी. ट्रांसफर आईडी आदि की जानकारी विस्तृत ढंग से जांची जाएगी, जिससे कहीं कोई गड़बड़ी न होने पाए. इसके अलावा बड़े ट्रांजेक्शन का अलर्ट अब आरबीआई तक भेजने की व्यवस्था कराई जा रही है. जिससे हर बड़ा ट्रांजेक्शन सिक्योर हो सके.
सहकारिता विशेषज्ञ सुनील दिवाकर ने बताया कि सहकारी बैंकों में पूर्व में कई घटनाएं फर्जीवाड़े की हुई हैं. सरकार की तरफ से कार्रवाई की गई है. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए और साइबर फ्राॅड न हो उसको लेकर सरकार इस दिशा में काम कर रही है. जिससे बैंकों से फर्जीवाड़ा न होने पाए. सरकार को इसके बारे में नई रणनीति बनानी चाहिए, जिससे बैंकों से पैसा न हड़पा जा सके.
सहकारी बैंक की स्थिति
- उप्र कोआपरेटिव बैंक की स्थापना जिला सहकारी बैंकों की शीर्ष सहकारी संस्था के रूप में निबन्धन संख्या 811 के अंतर्गत 20 नवम्बर 1944 को हुई थी.
- उप्र कोआपरेटिव बैंक भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की द्वितीय अनुसूची में सूचीबद्ध है और यह एक अनुसूचित बैंक है.
- सहकारी संस्था के रूप में उप्र सहकारी समिति अधिनियम 1965 एवं उप्र सहकारी समिति नियमावली 1968 तथा बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के अधीन बैंकिंग के रुप में विनियमित होता है.
- नई बैंक शाखा खोलने के आरबीआई से अनुमति लेकर सहकारी बैंक काम करती है.
- मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किसान, खासकर गन्ना किसानों को मूल्य भुगतान और ऋण देने के लिए इन बैंकों का उपयोग किया जाता है.
- किसानों को फसली ऋण देने की भी सुविधा है.