लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार महिलाओं पर होने वाले अपराध व अपराधियों को सजा दिलाने के लिए दावे करती है, जिसके लिए आला अधिकारियों को निर्देश भी दिए जाते हैं. इन तमाम बातों और वादों के बावजूद भी उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में कोई खास गिरावट दर्ज नहीं की गई है और न ही महिला अपराध के मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए सजा दिलाने में सिस्टम कामयाब हो रहा है. गिने-चुने हाइलाइटेड मामले को छोड़ दें तो आज भी महिलाओं को न्याय मिलने में वर्षों का समय लगता है.
हालांकि इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से पूरे उत्तर प्रदेश में महिला अपराध की घटनाएं सामने आई थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस विभाग को सख्त निर्देश दिए थे कि महिला अपराध मामले में कोई लापरवाही नहीं की जाएगी. वहीं ऐसे अपराधों में जल्दी सजा मिल सके इस बात को ध्यान में रखते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन भी किया गया था. एक्सपर्ट का मानना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इन प्रयासों से कुछ गिने-चुने मामले में में जरूर फायदा हुआ है, लेकिन पूरी व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हुई है.
व्यवस्था में परिवर्तन तभी होगी जब थाने स्तर से लेकर कोर्ट तक पूरे तंत्र में परिवर्तन किया जाएगा और महिलाओं के लिए खास कोर्ट व पुलिस विभाग में विंग का गठन किया जाएगा. उत्तर प्रदेश में जो फास्ट ट्रैक कोर्ट काम कर रही हैं. वह सिर्फ महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं है मामलों को इन कोर्ट में ट्रांसफर कराना पड़ता है. कई बार महिला अपराध से जुड़े मामले फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर नहीं हो पाते हैं. व्यवस्थाओं पर नजर दौड़ाई तो पुलिस विभाग में महिला अपराधों पर लगाम लगाने के लिए वूमेन पावर लाइन जैसी सुविधा पूरे उत्तर प्रदेश के लिए उपलब्ध है, जहां पर महिलाएं अपनी शिकायत कर सकते हैं. राजधानी लखनऊ में कमिश्नरेट खुलने के बाद महिलाओं के लिए महिला अपराध व सुरक्षा प्रकोष्ठ का गठन किया गया है, जो अभी काफी नया है.
हालांकि, इस प्रकोष्ठ में तैनात अधिकारियों ने महिलाओं के लिए काम करने के लिए तमाम दावे किए हैं, लेकिन महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध व सुरक्षा के लिए इस तरह का प्रकोष्ठ सिर्फ लखनऊ व गौतम बुद्ध नगर कमिश्नरेट में उपलब्ध है. अन्य जिलों में इस तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जा रही. पुलिस विभाग की बात करें तो महिला अपराध के मामले में अधिकारियों ने तुरंत कार्रवाई के निर्देश दे रखे हैं. इसके बावजूद भी राजधानी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में थाने स्तर में इस बात की शिकायतें आती हैं कि पुलिस महिलाओं की शिकायतों पर ध्यान नहीं देती है और तुरंत कार्रवाई न होने के चलते या मामले बड़े हो जाते हैं. ताजा मामला अमेठी का है, जिसमें पुलिस की लापरवाही निकल कर सामने आई है.
विधानसभा के सामने खुद किया आग के हवाले
अमेठी में मारपीट के मामले में मां सोफिया बेटी गुड़िया ने थाने में एफआईआर दर्ज कराई पुलिस ने मामले को समझने की अपेक्षा दूसरे पक्ष से भी मामला दर्ज कर लिया. बाद में महिलाओं ने लखनऊ पहुंचकर विधानसभा के सामने खुद को आग के हवाले कर दिया, जिसमें से एक महिला मां सोफिया की मौत हो गई. बाद में शासन ने कार्रवाई करते हुए अमेठी की एसएसपी ख्याति गर्व को ट्रांसफर कर दिया. यह मामला उत्तर प्रदेश में खूब हाइलाइटेड हुआ और थानों पर महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस कितनी सक्रिय रहती है.
दोस्त को ही भेज दिया जेल
वहीं महिलाओं के प्रति कार्रवाई करने में उत्तर प्रदेश पुलिस कितनी सक्रिय है. अधिकारियों के निर्देशों का कितना पालन किया जाता है. इस बात का अंदाजा गोमती नगर थाने में दर्ज एक पास्को एक्ट के मामले से लगाया जा सकता है. गोमती नगर में रहने वाली एक नाबालिग पीड़िता से क्षेत्र के ही रहने वाले अतुल बाबा व अतुल गुप्ता दो लोगों ने दुष्कर्म किया. पीड़िता की भाभी ने गोमती नगर थाने में दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने कार्रवाई करते हुए जहां दोनों आरोपी युवकों को गिरफ्तार किया तो वहीं मौके पर पीड़िता की मदद करने वाले उसके दोस्त संदीप कश्यप को भी पुलिस ने जेल भेज दिया. पीड़िता लगातार पुलिस से कहती रही कि तीसरे युवक संदीप कश्यप जिसने उसकी जान बचाई थी वह निर्दोष है, जिसके बाद भी पुलिस ने संदीप कश्यप को जेल भेज दिया. मीडिया में मामला सामने आया जिसके बाद उच्च अधिकारी मामले की जांच कर रहे हैं.
पुलिस करती टालमटोल
महिलाओं के लिए काम करने वाली उषा विश्वकर्मा ने ईटीवी से बातचीत करते हुए बताया कि सामान्यता देखा जाता है कि जब महिलाएं अपनी शिकायत लेकर थाने पहुंचती हैं तो पुलिस टालमटोल करती है. पुलिस कोशिश करती है कि इस मामले को बातचीत कर रखा दफा किया जाए और एफआईआर न लिखनी पड़े, जब तक मीडिया का दबाव नहीं होता है पुलिस एफआईआर लिखने से बचती है, जब पुलिस का रवैया शुरुआत से ही महिलाओं के प्रति नकारात्मक रहता है तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस महिला अपराध को लेकर कितना सक्रिय रहती है. सरकार के दावे जमीन पर देखने को नहीं मिलते हैं.
नाबालिग के साथ दुष्कर्म
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के तहत पुलिस सिर्फ हाईलाइट मामले में ही कार्रवाई करती है. वर्ष 2019 में राजधानी में पुराने लखनऊ क्षेत्र में एक नाबालिग के साथ एक युवक ने दुष्कर्म व हत्या की घटना को अंजाम दिया. इस घटना को मीडिया ने खूब हाईलाइट किया. अधिकारी लगातार इस घटना को मॉनिटर कर रहे थे. लिहाजा पुलिस ने 21 दिन में 4 सीट लगाई और 4 महीने के अंदर कोर्ट ने आरोपी को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई. मामला हाईलाइट होने के चलते पुलिस ने सक्रियता से सबूत जुटाए व समय रहते कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, जिसके चलते लखनऊ की विशेष कोर्ट के जज अरविंद मिश्रा ने इस घटना को दुर्लभ अपराध बताते हुए आरोपी बबलू उर्फ अरफात को सजा-ए-मौत की सजा दी.
राजधानी लखनऊ का महिला सुरक्षा व अपराध प्रकोष्ठ किस तरह से काम कर रहा है. इस बारे में ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं के बाद एफआईआर दर्ज कराने से लेकर पैरवी के दौरान महिलाओं की मदद व कोर्ट में आरोपी को सजा दिलाने तक की जिम्मेदारी इस प्रकोष्ठ को दी गई है. राजधानी लखनऊ में प्रकोष्ठ के सक्रिय होने के बाद पोस्को एक्ट, दुष्कर्म, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा जैसे मामलों के निस्तारण में कुछ तेजी आई है.
घरेलू हिंसा के तमाम मामले पेंडिंग
विभागीय आंकड़ों की बात करें तो कमिश्नरेट सिस्टम लागू न होने से पहले दुष्कर्म पोस्को एक्ट घरेलू हिंसा के तमाम मामले पेंडिंग पड़े थे. साल की शुरुआत में इस प्रकोष्ठ ने महिला अपराध से जुड़े इन विभिन्न मामलों की लिस्ट तैयार की और विवेचना अधिकारियों को नोटिस जारी कर तत्काल प्रभाव से विवेचना पूरी करने के निर्देश दिए. राजधानी लखनऊ में वर्ष 2020 की शुरुआत में धारा 376 यानि की महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों के मामले में बड़ी संख्या में जांच लंबित है. राजधानी लखनऊ की बात करें तो धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत विभिन्न थानों में दर्ज 107 मुकदमा लंबित थे, जिनमें से 50 फिसदी से अधिक मामलों का निस्तारण कर दिया गया है. अधिकारियों का कहना है कि लॉकडाउन व कोरोना संक्रमण के चलते कोर्ट बंद है. यदि कोर्ट बंद न होते तो अब तक सभी विवेचना को पूरा कर लिया जाता.
साथी प्रोजेक्ट
सेक्सुअल ऑफेंस के मामले में महिलाएं मजबूती से अपनी लड़ाई लड़ सके व उन्हें सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाएं समय पर मिल सके. साथ ही अपराधियों को समय रहते सजा मिल सके. इन बातों को ध्यान में रखते हुए राजधानी लखनऊ में साथी प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत पीड़िता के साथ एक महिला कर्मचारी को 'साथी ऑफिसर' के तौर पर लगाया जाता है जो एफआईआर दर्ज होने के बाद महिलाओं को संबंधित केस में पैरवी करने में मदद करती है. साथ ही महिलाओं को सरकारी सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ कोर्ट में पैरवी में भी मदद करती है. बीते दिनों राजधानी लखनऊ में 45 विवेचना में साथी प्रोजेक्ट के तहत पीड़िता के साथ महिला कॉन्स्टेबल को साथी ऑफिसर के तौर पर तैनाती दी गई है.
पैरवी सेल का गठन
राजधानी लखनऊ में महिला अपराधों के मामले में आरोपी को सही समय पर न्याय मिल सके. इस बात को ध्यान में रखते हुए पैरवी सेल का गठन किया गया है. यह सेल महिला पीड़िता की मदद करने के साथ ही न्यायालय में सबूत उपलब्ध कराने में भी मददगार होते हैं. पैरवी सेल की जिम्मेदारी महिला के मनोबल को बढ़ाना है. जिससे कि वह अपने साथ हुए अपराध को लेकर आवाज उठा सके. साथ ही पैरवी सेल महिला के साथ मिलकर पुलिस की कार्रवाई पर नजर रखती है कि महिला के बयान के आधार पर पुलिस सबूत जुटाने का काम कर रही है या नहीं और. यह सबूत जुटाकर कोर्ट के सामने पेश किए गए हैं या नहीं. महिला के बयानों के आधार पर सबूत कोर्ट में पेश करवाने की जिम्मेदारी भी पैरवी सेल निभाता है. ऐसे में अगर पुलिस की ओर से कोई हीला हवाली होती है तो यह पैरवी सर उच्च अधिकारियों को सूचित करता है.
कुटुंब प्रोजेक्ट
कुटुंब प्रोजेक्ट के तहत पुलिस सोशल पुलिसिंग का भी काम कर रही है. कुटुंब प्रोजेक्ट के तहत पारिवारिक विवादों को काउंसलिंग की मदद से सुलझाने का काम किया जाता है. परिवार में आपसी तनाव को लेकर पति पत्नी या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा एक दूसरे पर आरोप लगाए जाने पर कुटुंब प्रोजेक्ट के तहत उनकी काउंसलिंग की जाती है. परिवार का यह आपसी विवाद आपराधिक गतिविधियों में परिवर्तित हो इससे पहले ही विवाद के निपटारे के लिए प्रयास किए जाते हैं. काउंसलिंग की मदद से लोगों के आपसी मनमुटाव व विवाद को निस्तारित किया जाता है. अब तक राजधानी लखनऊ में दो दर्जन से अधिक परिवारों को कुटुंब प्रोजेक्ट के तहत काउंसलिंग कर विवादों को निस्तारित किया गया है.
महिलाओं के मामले में अलग से सुनवाई
हाईकोर्ट के वकील व पूर्व विधि सलाहकार राज्यपाल सीबी पांडे नई दिल्ली से खास बातचीत में कहा कि महिलाओं के प्रति अपराध कम करने वाला प्राणियों को सजा दिलाने के लिए भले ही तमाम वादे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. पिछले कुछ वर्षों में प्रयास जरूर हो गए हैं. महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में पुलिस सक्रियता से काम करें और कोर्ट में समय रहते चार्ज सीट व सबूत उपलब्ध कराए जाएं, जिससे समय रहते फैसला दे सके. कोर्ट में भी ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ेगी कि महिलाओं के मामले में अलग से सुनवाई की जाए, जिससे महिलाओं को न्याय मिल सके.
कई प्रोजेक्ट शुरू
डीसीपी वूमेन क्राइम व सेफ्टी शालिनी ने ईटीवी से खास बातचीत में बताया कि महिला अपराधों में कमी लाने व अपराधियों को सजा दिलाने के लिए राजधानी लखनऊ में वूमेन क्राइम व सेफ्टी की ओर से लगातार काम किए जा रहे हैं. हमने कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, जिसका प्रभाव राजधानी लखनऊ में देखने को मिल रहा है, जहां महिला अपराध में गिरावट आई है तो वहीं कई मामलों में पुलिस द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर न्यायालय ने आरोपी को गंभीर सजा दी हैं. हम साथी कुटुंबा पैरवी सेल जैसे प्रोजेक्ट की मदद से महिलाओं को सुरक्षा व सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं.