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नानकशाही मठ में रखी बग्गी की कहानी, महंत करते थे इस पर सवारी - story of victoria buggy

राजधानी लखनऊ के डालीगंज में स्थित नानकशाही मठ कई प्राचीन मान्यताओं को अपने आप में समेटे हुए है. नानकशाही मठ हजारों वर्ष पुराना है. यह मठ देश-दुनिया में चर्चा का विषय भी है. नानकशाही मठ में एक बग्गी रखी हुई है. जो श्रद्धालु मठ में दर्शन के लिए आते हैं, वह इस बग्गी के भी देखना नहीं भूलते हैं.

नानकशाही मठ
नानकशाही मठ

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Published : Feb 2, 2021, 7:40 PM IST

लखनऊ:राजधानी केडालीगंज स्थित नानकशाही मठ को सबसे प्राचीन मठ में शुमार किया जाता है. नानकशाही मठ हजारों वर्ष पुराना है. इसको लेकर वेदों और पुराणों में कई मान्यताएं भी हैं. वहीं इस मठ में दूर-दूर से दर्शन करने दर्शनार्थी पहुंचते हैं.

जानकारी देते महंत धर्मेंद्र दास महाराज.

बता दें कि नानकशाही मठ अपने आप में कई राज समेटे हुए है. मठ में एक विक्टोरिया बग्गी रखी हुई है, जिससे जुड़े कई किस्से हैं. इस विक्टोरिया बग्गी को 1720 से 1730 के बीच अंग्रेजों के शासन काल में नानकशाही मठ में लाया गया था. इससे जुड़ी हुई मान्यताओं के बारे में वर्तमान महंत धर्मेंद्र दास महाराज ने जानकारी दी.

महंत धर्मेंद्र दास ने बताया कि विक्टोरिया बग्गी को अंग्रेजों के समय में सनातन धर्म के श्री महंत द्वारा लाया गया था. उस समय मठ के मठाधीश विशेष कार्यक्रम में इस बग्गी पर सवार होकर लोगों के बीच जाया करते थे. इस बग्गी को मठ से बाहर ले जाते समय एक मुहूर्त को निर्धारित कर ही लोगों के बीच महंत इस पर सवार होकर जाते थे.

मुहूर्त के कालक्रम के अनुसार ही इस बग्गी पर सवार महंत बग्गी की खिड़कियां खोल लोगों से मिलते और उनका अभिवादन किया करते थे. यदि मुहूर्त शुभ न हो तो बग्गी की खिड़की बंद ही रहती थी और महंत अपने रास्ते मठ को वापस चले जाते थे.

इस विक्टोरिया बग्गी पर सवार होकर समनदास जी महाराज, राजाराम दास जी महाराज, आत्मा दास जी महाराज और परमेश्वर दास जी महाराज होली जैसे विशेष कार्यक्रमों में जाया करते थे. ये सभी महाराज इस बग्गी पर सवार होकर मिश्रिख और कल्ली पश्चिम के गांव में जाते थे. महंत धर्मेंद्र दास महाराज ने बताया कि इस बग्गी को म्यूजियम की तरह सुरक्षित रखा गया है. दूर-दूर लोग इसके दर्शन करने आते हैं.

शुरुआती दिनों में इस बग्गी को बैल के द्वारा चलाया जाता था. इसके पहिये रबड़ के हुआ करते थे. धीरे-धीरे समय के परिवर्तन के साथ ही इस बग्गी के पहियों में टायर ट्यूब लगा दिया गया और घोड़े का प्रयोग किया जाने लगा. जब महंत इस पर सवारी करते थे तो इस बग्गी में रखी लालटेन को जला दिया जाता था.
-धर्मेंद्र दास महाराज, महंत

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