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जब ऊदा देवी ने पति की हत्या का लिया बदला, 36 अंग्रेजों को सुलाया था मौत की नींद

आजादी की लड़ाई में देश के पुरुष क्रांतिकारियों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अहम भूमिका निभाई है. भारतीय इतिहास में दर्ज लड़ाईयों में महिलाओं का भी खास योगदान रहा है. आज ऐसी ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महिला के बारे में बताएंगे, जिनके पति की हत्या अंग्रेजों ने एक युद्ध के दौरान कर दी थी. इसके बाद पति की मौत का बदला लेने के लिए इस वीरांगना ने प्रण ले लिया था.

फ्रीडम फाइटर ऊदा देवी.
फ्रीडम फाइटर ऊदा देवी.

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Published : Aug 23, 2021, 6:09 AM IST

लखनऊः झांसी की रानी, बेगम हजरत महल, मातंगिनी हजरा, लक्ष्मी सहगल समेत तमाम महिलाओं की बहादुरी के किस्से इतिहास की किताबों में दर्ज हैं. ऐसी ही एक किस्सा लखनऊ की स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऊदा देवी का है. ऊदा देवी पासी जाति से ताल्लुक रखती थीं. ऊदा देवी ने राजधानी में करीब 36 ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार कर पति की मौत का बदला लिया था. पेश है ऊदा देवी की दिलेरी की दास्तान.

उजरियांव गांव में हुआ था जन्म

बताया जाता है ऊदा देवी का जन्म 30 जून 1832 को राजधानी के उजरियांव में हुआ था, इतिहासकारों में भी उनके जन्म की तारीख को लेकर विरोधाभास है. ऊदा के पिता का नाम चौधरी राय साहब था. ऊदा देवी की शादी चिनहट के रहने वाले मक्का पासी नाम के युवक से कम उम्र में ही कर दी गई थी. ऊदा देवी को जगरानी के नाम से भी जाना जाता था. इनके पति मक्का पासी वाजिद अली शाह के दस्ते में थे. वाजिद अली शाह अमजद अली शाह के पुत्र थे. अवध और लखनऊ पर छठवें नवाब के तौर पर वाजिद अली शाह ने गद्दी संभाली थी. देश की आजादी के लिए मक्का पासी को देखकर ऊदा देवी ने प्रेरणा ली थी. बताया जाता है कि इसके बाद वे वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में शामिल हो गई थीं. जानकारों की मानें तो सन 1856 में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर दिया गया था. इस दौरान नवाब वाजिद अली शाह को नवाब के पद से हटाकर कोलकाता भेज दिया गया.

ऊदा देवी की कहानी.

अंग्रेजों के खिलाफ बजाया था बिगुल

सन 1857 ई. में भारतीयों ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया था. इस समय अवध की राजधानी लखनऊ की और वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल और उनके पुत्र बिरजिस कादरी ने अवध की सत्ता पर अपना दावा ठोंक दिया था. अवध की सेना में एक टुकड़ी पासी सैनिकों की भी थी. इस पासी टुकड़ी में बहादुर युवक मक्का पासी भी था. कहा जाता है कि जब बेगम हजरत महल ने अपनी महिला टुकड़ी का विस्तार किया, तब ऊदा की जिद्द और उत्साह देखकर मक्का पासी ने सेना में शामिल होने की इजाजत दी थी. शीघ्र ही ऊदा देवी अपनी टुकड़ी की नेतृत्व कर्ता के रूप में उभरने लगीं. वाजिद अली शाह की ताजपोशी के एक दशक बाद यानी 1857 का साल रहा होगा. देश की आजादी का पहला गदर लगभग शुरू हो चुका था. कहा जाता है 10 जून 1857 को अंग्रेजों ने अवध पर हमला कर दिया.

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लड़ते लड़ते मक्का पासी हो गए थे शहीद

लखनऊ के इस्माइल गंज में अंग्रेजों से भारतीय सैनिक की एक टुकड़ी लड़ रही थी. इस युद्ध में ऊदा देवी के पति मक्का पासी भी थे. अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते मक्का शहीद हो गए. यह खबर जब ऊदा देवी तक पहुंची तो उनका खून खौल उठा. ऊदा ने उसी वक्त अंग्रेजों से पति की हत्या का बदला लेने का फैसला कर लिया था. बात 1857 ई. की ही है, जब राजधानी स्थित सिकंदर बाग में ब्रिटिश फौज और आजादी के दीवानों के बीच युद्द हो रहा था. विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी फौज लखनऊ की तरफ बढ़ रही थी. भारतीय लड़ाके सिकंदराबाद में पोजीशन लिए हुए थे. इसमें ऊदा देवी भी शामिल थीं. ऊदा देवी के सीने में पति की हत्या की आग पहले से ही जल रही थी. अंग्रेजी फौज सिकंदर बाग में प्रवेश करती है, उससे पहले ही ऊदा एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं.

बाग में नहीं करने दिया था प्रवेश

वीरांगना ऊदा देवी ने लगातार गोलियां बरसाते हुए अंग्रेजी सेना को बाग में प्रवेश करने से रोके रखा. पेड़ की आंड़ में गोली चलाने की वजह से अंग्रेजी सेना को समझ नहीं आ रहा था कि गोलियां कहां चल रही हैं. ऊदा देवी ने करीब 36 अंग्रेजी सैनिकों को एक-एक कर मौत के घाट उतार दिया. अंग्रेजों को सैनिकों के मारे जाने की खबर मिलते ही जब देखा तो पता चला की गोलियां पेड़ से चलाईं जा रही हैं. जिसके बाद अंग्रेजों ने पेड़ पर ही गोलियां चलाना शुरू कर दिया. ताबड़तोड़ गोलीबारी में ऊदा की सिकंदरबाग में मौत हो गई. इतिहासकार बताते हैं कि उस दौरान अंग्रेजी सैनिक की अगुवाई जनरल कॉल्विन कैंबल कर रहे थे.

सिकंदर बाग में हुआ था सबसे बड़ा नरसंहार

हजरतगंज के बाद दूसरा चौराहा सिकंदर बाग का है. चौराहे के ठीक बगल में एक दरवाजा है, जिसे सिकंदरबाग का दरवाजा कहते हैं. लखनऊ का सबसे बड़ा नरसंहार सिकंदर बाग में हुआ था. जहां पर 1857 में अंग्रेजी फौजों ने लगभग 2200 आजादी के दिवानों को गोलियों से मौत के घाट उतार दिया था. कहा जाता है कि इनकी लाशें यहां तब तक पड़ी रही, जब तक उनको चील-कौवों ने पूरी तरह से नोंच नहीं लिया था. इस बाग का निर्माण नवाब सआदत अली खान ने लगभग अट्ठारह सौ में शुरू किया था. यह बाग करीब साढ़े 4 एकड़ में फैला हुआ है. नवाब वाजिद अली शाह ने इसका नाम अपनी बेगम सिकंदर महल के नाम पर रखा था. कहा जाता है कि सिकंदरबाग को बनवाने के लिए वाजिद अली शाह ने 50,0000 खर्च किए थे. इसमें एक मंडप, छोटी सी मस्जिद और रहने के लिए कोठी बनवाई. इसमें तीन दरवाजे थे. एक दरवाजा गोमती नदी की तरफ था. जिसे अंग्रेजों ने ध्वस्त कर दिया. मौजूदा वक्त में केवल एक ही दरवाजा है. दरवाजे पर दो मछली बनी हुई हैं. वाजिद अली शाह के दरबार में चित्र कला में महारत हासिल करने वाले काशीराम हुआ करते थे. कहा जाता है काशीराम की चित्रकारी आज भी दरवाजों के अंदर बनी हुई है, जिसे देखा जा सकता है. बाग में ऊदा देवी की एक मूर्ति भी स्थापित की गई है. जिस पेड़ पर चढ़कर ऊदा देवी ने अंग्रेजों को मौत की नींद सुलाया था, उस पेड़ का नामोनिशान खत्म हो चुका है.

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हुई पीएसी बटालियन बनाने की घोषणा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महिला सुरक्षा की दिशा में कदम उठाते हुए वीरांगना ऊदा देवी और अवंती बाई के नाम पर पीएसी की महिला बटालियन के गठन की घोषणा की है. लखनऊ, गोरखपुर व बदायूं में पीएसी की तीन महिला पुलिस बटालियन की स्थापना की जानी थी. पीएसी की एक महिला बटालियन में 1262 पदों पर तैनाती की जानी है. इनमें एक सेनानायक, 3 उप सेनानायक, 9 सहायक सेनानायक के साथ एक शिविर पाल, 24 इंस्पेक्टर, 75 सब इंस्पेक्टर, 108 हेड कांस्टेबल व 842 कांस्टेबल के साथ सफाई कर्मी और रसोईया आदि के पद शामिल हैं.

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