लखनऊः क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री का जन्म महाराष्ट्र प्रांत में बुल्डाणा जिले के चिखली ग्राम में हुआ था. पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा और माता का नाम कृष्णा बाई था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा चिखली और चंद्रपुर नगर में ग्रहण की. बचपन से ही खत्री के हृदय में देश प्रेम का अंकुर फूटने लगा था. बताया जाता है, उन दिनों देश भर में 'लाल-बाल-पाल' की धूम मची थी.
सन 1917 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अपने राष्ट्रव्यापी दौरे के बीच चिखली में पधारे थे. भला बालक राम कृष्ण यह अवसर कहां छोड़ने वाला थे. रामकृष्ण खत्री के बेटे उदय खत्री बताते हैं कि, अपने ऊपर निगरानी रख रहे परिजनों और स्कूल अध्यापकों की नजर बचाकर रामकृष्ण कुछ सहपाठियों के साथ लोकमान्य तिलक का भाषण सुनने जा पहुंचे. भाषण के बाद मौका पाकर रामकृष्ण लोकमान्य तिलक के पास पहुंचे और हाथ पकड़ कर बोले, मुझे भी अपने साथ ले चलिए. आप जैसा कहेंगे मैं वैसा करूंगा.
इस पर लोकमान्य तिलक ने उन्हें समझाते हुए कहा था, अभी तुम लोग बहुत छोटे हो, पढ़ लिख कर थोड़ा और बड़े हो जाओ तब मातृभूमि को आजाद कराने के लिए अपने आप को लगाना. इस बात को सुनकर रामकृष्ण खत्री रुआसे हो गए. इसी पर रामकृष्ण खत्री ने देश को आजाद कराने कि मन में ठान ली थी.
बेटे उदय खत्री बताते हैं कि, चिखली की पढ़ाई खत्म होते ही पिता रामकृष्ण अपने बड़े भाई मोहनलाल के पास महाराष्ट्र के ही चंद्रपुर चले आए और वहां हाईस्कूल में दाखिला ले लिया. 1920 के 1 अगस्त को लोकमान्य तिलक के निधन के बाद पूरे देश की निगाहें गांधी जी की ओर लग गई थीं. सितंबर 1920 में कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन से पूर्व महात्मा गांधी ने 14 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की. जिसमें वकीलों से वकालत छोड़ने का आह्वान, छात्र-छात्राओं से अंग्रेजी विद्यालयों की पढ़ाई छोड़ देने का आह्वान और प्रबुद्ध जनों से अंग्रेज सरकार द्वारा प्रदत्त उपाधियों-पदवियों का परित्याग कर देने का आह्वान किया.
इस 14 सूत्री कार्यक्रमों के आह्वान पर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी वर्धा (महाराष्ट्र) पहुंचे. सेठ जमुनालाल बजाज के प्रांगण में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया. इसी सभा में रामकृष्ण खत्री भी अपने कुछ छात्र मित्रों के साथ पहुंच गए. भाषण की समाप्ति के बाद जैसे ही गांधीजी ने समूह से कहा कि किसी को किसी प्रकार की शंका का समाधान करना हो तो मुझसे प्रश्न कर सकता है.
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इस पर करीब 18 वर्ष के राम कृष्ण अपने स्थान से उठे और गांधी जी से एक तीखा प्रश्न कर बैठे. रामकृष्ण ने गांधी जी से कहा, आप अंग्रेज सरकार द्वारा स्थापित विद्यालयों से पढ़ाई छोड़ देने के लिए हम विद्यार्थियों से कह रहे हैं, लेकिन लोकमान्य तिलक, रविंद्र नाथ टैगोर और आप सभी नेताओं ने इन्हीं विद्यालय से शिक्षा ग्रहण की है. इस पर गांधी जी ने बड़े शांत भाव से रामकृष्ण को उत्तर दिया. जिसके बाद रामकृष्ण खत्री वह उपस्थित छात्रों ने विद्यालय छोड़ देने की घोषणा कर दी.
उदय खत्री बताते हैं कि पिता रामकृष्ण खत्री ने अपने व्यक्तित्व से कांग्रेस में अपना स्थान बनाया. सन 1920 में ही कोलकाता और नागपुर के कांग्रेसी अधिवेशन में प्रतिनिधि के रुप में सम्मिलित हुए और उसी समय से सेवा दल के कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत रहे. वे बताते हैं कि अगस्त 1921 में राष्ट्र को समर्पित करने के लिए वह गृह त्यागी हो गए. इसी समय वह कनखल (हरिद्वार) जाकर नाग पंचमी के दिन उन्होंने उदासीन अखाड़े में दीक्षा प्राप्त की और साधु हो गए.
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फरवरी 1922 में महात्मा गांधी ने चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था. इस निर्णय से दुखी होकर रामकृष्ण अमृतसर से बनारस चले गए. वहां उन्होंने उदासीन संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया. उदय खत्री बताते हैं 1923 में बनारस में ही वह क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए. उसी के बाद रामकृष्ण एकमात्र ऐसे व्यक्ति से जिन्हें चंद्र शेखर आजाद ने 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' का सक्रिय सदस्य बना लिया. फिर सारा जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया.
9 मार्च 1925 को बिचपुरी गांव में हुए एक्शन और उसके डेढ़ 2 माह बाद प्रतापगढ़ के द्वारिकापुर कस्बे में किए गए एक्शन में सक्रिय रूप से भाग लिया.
6 अगस्त 1925 को क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रांतिकारी साथियों द्वारा लखनऊ के निकट काकोरी ट्रेन डकैती कांड हुआ.